आपदा प्रबंधन ही ‘आपदा’ बना

Edited By Pardeep,Updated: 21 Aug, 2018 04:04 AM

disaster management becomes a disaster

ईश्वर का अपना देश केरल आपदाग्रस्त क्षेत्र की तरह लगता है क्योंकि सम्पूर्ण राज्य बाढ़ की चपेट में है जिसमें 350 से अधिक लोग मारे गए हैं और लाखों लोग 1568 राहत शिविरों में रह रहे हैं। सम्पूर्ण राज्य में यही स्थिति बनी हुई है। शहर जलमग्न हैं, गांव के...

ईश्वर का अपना देश केरल आपदाग्रस्त क्षेत्र की तरह लगता है क्योंकि सम्पूर्ण राज्य बाढ़ की चपेट में है जिसमें 350 से अधिक लोग मारे गए हैं और लाखों लोग 1568 राहत शिविरों में रह रहे हैं। सम्पूर्ण राज्य में यही स्थिति बनी हुई है। शहर जलमग्न हैं, गांव के गांव डूब गए हैं, सड़कें टूट गई हैं, फसलें बर्बाद हो गई हैं, शव तैरते हुए दिखाई दे रहे हैं, रेल सेवाएं बाधित हैं, एयरपोर्ट बंद हैं, सारा जन-जीवन और अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई है। कल मुंबई की बारी थी तो आज कोच्चि की है और कल कोलकाता, गुवाहाटी आदि की होगी। 

यह बताता है कि हमारी सरकार वर्षा और उसके प्रभाव की भविष्यवाणी करने में विफल है। कुल मिलाकर आपदा प्रबंधन आपदा बन गया है। सरकार की आपराधिक उदासीनता और काम चलाऊ दृष्टिकोण और अधिकारियों के छोड़ दो यार रुख, बेलगाम निर्माण, नदी-नालों की सफाई न होना, नदियों और नालों के किनारों पर झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों का अतिक्रमण, वर्षा जल प्रबंधन का अभाव, सड़कों की खुदाई, नालों की सफाई न होना आदि ने समस्या और बढ़ा दी है। 

विकास कार्यों ने हरित क्षेत्रों और मैनग्रोव वनों को नष्ट कर दिया है जिसके कारण बाढ़ नियंत्रण का प्राकृतिक संरक्षण तंत्र विफल हो गया है। मानव निर्मित जल प्रवाह प्रणाली प्राकृतिक प्रणाली का मुकाबला नहीं कर सकती है। अति वर्षा को ईश्वर की मर्जी कहा जा सकता है किंतु इसके बाद उपजी अव्यवस्था मानव निर्मित है। इसका एक उदाहरण तमिलनाडु है जहां पर पिछले 8 वर्षों में 13 भीषण तूफान आए हैं, इसलिए अपेक्षा की जाती है कि राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन दल आपदा से निपटने के लिए तैयार होंगे किंतु वास्तविकता ऐसी नहीं है। राज्य की विभिन्न एजैंसियों के बीच समन्वय का अभाव है और आपदा के समय केवल परिवार के लोग ही एक-दूसरे की सुध लेते हैं। 

13 राज्यों में भारी बाढ़ के कारण भारी आर्थिक नुक्सान हुआ है और लाखों लोगों की परेशानियां बढ़ी हैं। प्रश्न उठता है कि हमारा देश आपदाओं से निपटने के लिए तैयार क्यों नहीं है? हर वर्ष आने वाली इन आपदाओं से निपटने के लिए दीर्घकालीन उपाय क्यों नहीं किए गए? इस बात की व्यवस्था क्यों नहीं की गई कि इन आपदाओं में बचने वाले लोग भुखमरी के शिकार न हों। क्या हमें आपदा प्रबंधन की बुनियादी बातें पता हैं? क्या हम अक्षम हैं या अत्यधिक आलसी हैं और यह दृष्टिकोण अपनाते हैं कि ‘की फरक पैंदा है’। 

अब तक विभिन्न राज्यों में बाढ़ के कारण 2000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 4.20 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। किंतु आपदा से निपटने की हमारी तैयारी ठीक नहीं है। लगता है केन्द्र और राज्य सरकारें इस बात पर निर्भर रहती हैं कि भावी आपदाएं इतनी विनाशकारी नहीं होंगी। हमारा प्रशासन दीर्घकालीन उपायों को लागू नहीं करता है। हमारा राष्ट्र अल्पकालिक उपायों पर विश्वास करता है। कोई भी आपदा प्रबंधन या इनके स्थायी समाधान के बारे में नहीं जानता है। हमारे नेताओं को इसकी जानकारी नहीं है। उन्हें आपदा प्रबंधन का कोई ज्ञान नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत प्रति वर्ष आपदाओं से निपटने के लिए 1 करोड़ डालर खर्च करता है। क्या हम इस राशि को आपदा प्रबंधन के लिए खर्च नहीं कर सकते थे? 

सम्पूर्ण विश्व में आपदा प्रबंधन को शासन और विकास नियोजन का एक अभिन्न अंग माना जाता है किंतु भारत में ऐसी स्थिति नहीं है। स्थानीय स्तर पर जोखिम के आकलन का अभाव है, मानकों और विनियमनों को लागू नहीं किया जाता है, जोखिम कम करने के प्रयास नहीं किए जाते हैं। बाढ़ की संभावना और भविष्यवाणी का कोई तंत्र नहीं है। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। जोखिम कम करने के लिए प्रशिक्षण और समन्वय का अभाव है। साथ ही हम लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि विकास और आपदाओं के बीच एक विशिष्ट संबंध है क्योंकि आपदाएं विकास के लिए आघात हो सकती हैं और आपदा के बाद का परिदृश्य भी विकास के अवसर पैदा करता है। 

विकास के कारण जोखिम कम हो सकता है किंतु यह जोखिम बढ़ा भी सकता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना खूब जोर-शोर से की गई थी और आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय राज्य और जिला स्तरीय व्यवस्था की गई थी और इस संबंध में दिशा-निर्देश और नीतियां बनाई गई थीं किंतु यह सब कागजों तक सीमित रहा। वर्ष 2013 की नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को आपदा प्रबंधन संबंधी कार्यों और सूचनाओं की जानकारी नहीं होती है और न ही यह विभिन्न परियोजनाओं को लागू करने में सफल रहता है। सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में यह अप्रभावी रहा है। 

प्राधिकरण विशेषज्ञों की अपनी सलाहकार समिति के बिना कार्य कर रहा है जिसे आपदा प्रबंधन के विभिन्न क्षेत्रों में सलाह देनी थी। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इस प्राधिकरण का विफल होना निश्चित था क्योंकि संगठन का शीर्ष स्तर भारी है और उसे आपदा के विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त नहीं है। यह आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 में निर्धारित अनेक कार्यों को नहीं कर रहा है। दीर्घकालीन रणनीति विकसित नहीं की गई है और प्राधिकरण मानता है कि धन स्वीकृत कर उसने अपना कार्य कर दिया है। इस स्थिति में किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा? स्थिति यह है कि आज आपात संचालन केन्द्र नहीं हैं, न ही प्रशिक्षित कर्मी हैं जो लोगों की सलाह पर बचाव कर सकें और इसका कारण धन का अभाव नहीं है क्योंकि 2010 से केन्द्र सरकार ने आपदा प्रबंधन के लिए 5 अरब डालर का बजट दिया है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि धरती के तापमान में वृद्धि के कारण जलवायु में अत्यधिक उतार-चढ़ाव का तात्पर्य है कि भारत को संभावित आपदाओं के लिए तैयार रहना चाहिए। संचार और कनैक्टिविटी की सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिएं। आपदा के दौरान उपग्रह से तस्वीरों से हमें आपदा प्रभावित क्षेत्रों का पता चलता है किंतु हमें इससे अधिक स्पष्ट तस्वीरों की आवश्यकता है। इसके लिए हमारे नेताओं को विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों की सहायता लेनी चाहिए जो पारिस्थितिक समस्याओं का आकलन करें और उनका अध्ययन कर नीति निर्माण में सहायता करें। 

जनसंख्या वृद्धि के कारण उत्पन्न समस्याओं और स्थानीय पारितंत्र पर इसके प्रभाव पर विशेष ध्यान देना चाहिए। समस्या यह है कि न तो राज्यों और न ही केन्द्र में निर्णय  लेने के लिए सुदृढ़ प्रणाली है। यदि मौसम विभाग भारी वर्षा की भविष्यवाणी करता है तो इसके क्या प्रभाव होते हैं। इन लोगों को कहां सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जाना चाहिए? साधारण भविष्यवाणी की बजाय हमें प्रभावी भविष्यवाणी सुनिश्चित करनी चाहिए और आपदा के समय संचार प्रणाली पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि उसे सबसे पहले नुक्सान पहुंचता है। समय आ गया है कि हम राहत केन्द्रित व्यवस्था की बजाय तैयारी केन्द्रित व्यवस्था करें और बाढ़ भविष्यवाणी के संबंध में अधिक निवेश करें। 

पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि प्रभावित लोगों को सुरक्षित ढांचे उपलब्ध कराए जाएं तो इसका प्रभाव कम पड़ सकता है किंतु प्राधिकारी अभी ऐसा सुनिश्चित नहीं कर सके। इसके अलावा राज्यों को क्षेत्रीय पारस्परिक सहायता केन्द्रों का निर्माण करना चाहिए जिनमें त्वरित कार्रवाई दल हों। यदि बाढ़ की भविष्यवाणी और इसकी मैपिंग सही हो तो नुक्सान कम हो सकता है। किंतु जलवायु परिवर्तन के कारण जटिलताएं बढ़ रही हैं। जहां पहले बाढ़ नहीं आती थी और वर्षा नहीं होती थी वहां भी अब अभूतपूर्व वर्षा और बाढ़ आ रही है। 

इस संबंध में अब तक नमो की प्रतिक्रिया दबंग रही है। उन्होंने प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण किया और प्रधानमंत्री राहत कोष से धन आबंटित किया है किंतु यह पर्याप्त नहीं है। भारत को दीर्घकालीन नियोजन पर ध्यान देना होगा। दृष्टिकोण में बदलाव के बिना प्रत्येक आपदा सरकार और प्रभावित लोगों को निराश ही करेगी। कठिन परिस्थितियों में कठोर कदम उठाने होते हैं। सरकार को केवल सब्जबाग नहीं दिखाना चाहिए। जीवन केवल एक संख्या नहीं है अपितु हाड़-मांस का ढांचा है। हम यह कहकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते कि क्या हुआ। आपदा प्रबंधन-क्या आपने कभी इसके बारे में सुना है?-पूनम आई. कौशिश

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