महिला अधिकारियों की ‘योग्यता’ पर मत करें शंका

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2020 01:14 AM

do not doubt the  qualification  of women officers

17 साल लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद सेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब आर्मी में महिलाओं को पुरुष अफसरों से बराबरी का अधिकार मिल गया है। अभी तक आर्मी में 14 साल तक शार्ट सर्विस कमीशन...

17 साल लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद सेना में महिलाओं को बराबरी का हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब आर्मी में महिलाओं को पुरुष अफसरों से बराबरी का अधिकार मिल गया है। अभी तक आर्मी में 14 साल तक शार्ट सर्विस कमीशन (एस.एस.सी.) में सेवा दे चुके पुरुष सैनिकों को ही स्थायी कमीशन का विकल्प मिल रहा था लेकिन महिलाओं को यह हक नहीं था। 

चौंका देने वाली बात यह है कि सरकार भी, जो अदालतों में इस मांग का विरोध कर रही थी, ने इस आदेश का स्वागत किया है। जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ तथा जस्टिस अजय रस्तोगी ने फैसला देते हुए कहा है कि उन सभी महिला अधिकारियों को 3 माह के अंदर आर्मी में स्थायी कमीशन दिया जाए जो इस विकल्प को चुनना चाहती हैं। अदालत ने केन्द्र की उस दलील को निराशाजनक बताया, जिसमें महिलाओं को कमांड पोस्ट न देने के पीछे शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मापदंडों का हवाला दिया गया था। 

कुछ अधिकारियों के एक वर्ग जोकि सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने निरंतर ही यह मुद्दा उठाया कि जूनियर लैवल पर सैन्य अधिकारियों की रचना में ग्रामीण पृष्ठभूमि के व्यक्ति शामिल हैं तथा वे मानसिक तौर पर महिला अधिकारियों से कमांड लेने को तैयार नहीं। उनका यह भी कहना है कि युद्ध के मैदान में महिलाएं गम्भीर शारीरिक जोखिम नहीं सह सकतीं। दोनों ही तर्क त्रुटिपूर्ण हैं। सैन्य बलों, तथा पुलिस में गैर-योद्धा भूमिकाओं सहित प्रत्येक क्षेत्र में महिला अधिकारियों ने अपनी योग्यता को सिद्ध किया है तथा अपने अधीनस्थों से सत्कार प्राप्त किया है। यदि सैनिकों के कुछ वर्ग में अभी भी शंका है जैसा कि सोचा गया था, तब यह सेना का कत्र्तव्य है कि अपनी सोच को नई दिशा दें। 

दूसरा तर्क यह कहना कि महिलाएं युद्ध के मैदान में शारीरिक चोट नहीं झेल सकती हैं, का भी आधार नहीं है क्योंकि महिलाएं तोपखाना तथा बख्तरबंद बटालियनों जैसे जुझारू यूनिटों का हिस्सा अभी नहीं हैं। अब वे दिन भी नहीं रहे जब एक के सामने एक की लड़ाई होती थी क्योंकि युद्ध के तौर-तरीकों तथा तकनीक में बड़ा बदलाव आ चुका है। यहां यह भी स्पष्ट कर देना ठीक होगा कि कई देशों में कमांड में महिलाओं को अनुमति मिली हुई है। उन देशों में वे युद्ध में फ्रंट लाइन में अपनी सेवाएं दे रही हैं। ऐसे देशों में अमरीका, इसराईल, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा नीदरलैंड्स शामिल हैं। हालांकि पाकिस्तान ने महिला अधिकारियों को युद्ध में भूमिका देने की अनुमति नहीं दी। इसने फाइटर विंग्स में महिला पायलटों को शामिल किया है। 2013 में प्रथम महिला फाइटर को शामिल किया गया था। 

एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा है कि कोई भी राष्ट्र बढिय़ा नेता नहीं प्राप्त कर सकता यदि हम इसमें से आधी प्रतिभा को निकाल दें। महिला अधिकारियों को वूमैन स्पैशल एंट्री स्कीम के तहत सुरक्षा बलों में कुछ चुङ्क्षनदा धाराओं जैसे शिक्षा, इंजीनियरिंग तथा इंटैलीजैंस के तहत शामिल किया जा रहा है। आखिरकार लंबी लड़ाई के बाद सरकार महिला अधिकारियों को सेना, वायु सेना तथा नौसेना में जज, वकील तथा शिक्षा की शाखाओं में स्थायी कमीशन देने के लिए राजी हुई। 

हालांकि कुछ अन्य शाखाओं की महिला अधिकारियों ने दिल्ली हाईकोर्ट का 2003 में रुख किया था ताकि वे स्थायी कमीशन पा सकें। उन्होंने 2010 में अपने हक में फैसला पाया मगर आदेश को अभी तक लागू नहीं किया गया तथा सरकार द्वारा इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। जबकि कानूनी प्रक्रिया जारी है, सरकार ने पिछले वर्ष सेना की 8 शाखाओं में महिलाओं को स्थायी कमीशन प्रदान करने के लिए एक आदेश पारित किया मगर महिलाओं को अभी भी कमांड नियुक्तियों से वंचित रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अब यूनिटों की कमांडिंग के लिए रास्ता साफ कर दिया है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस फैसले का फौरन स्वागत किया
सरकार उन महिला अधिकारियों की याचिका का विरोध कर रही है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था मगर केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस फैसले का फौरन स्वागत किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्थायी कमीशन के विचार का समर्थन किया है। ऐसी बातों ने उन अटकलों को विराम दिया है जिनमें यह कहा जा रहा था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ के फैसले को चुनौती दे सकती है। महिला अधिकारियों ने कई सीमाओं को पार किया तथा बाधाओं को तोड़ा है। 26 जनवरी परेड के दौरान युवा महिला अधिकारी लैफ्टीनैंट भावना कस्तूरी ने पहली बार पुरुष टुकड़ी का नेतृत्व किया। 

कुछ वर्ष पूर्व लैफ्टीनैंट ए. दिव्या ने 170 पुरुषों तथा 57 महिला अधिकारियों जिन्होंने उसके बैच से पास आऊट किया था, के बीच में से आफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी में सोर्ड ऑफ ऑनर प्राप्त किया था। सेना निश्चित तौर पर एक परिचालन चुनौती झेलेगी क्योंकि जहां तक महिला अधिकारियों का संबंध है वे इतनी प्रशिक्षित नहीं कि कमांड पोस्टों को ले सकें। तीन माह के भीतर कम से कम एक बैच में प्रशिक्षण देने के लिए क्रैश कोर्स का प्रस्ताव देना होगा। ऐसी डैडलाइन सुप्रीम कोर्ट ने दे रखी है। रैंकों में उन लोगों तक यह संदेश भी भेजना होगा कि वे लोग महिलाओं की योग्यता पर शंका न करें।-विपिन पब्बी

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