राजनीति में ‘अपराधीकरण’ को न करें नजरअंदाज

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2020 01:09 AM

do not ignore criminalization in politics

दागी नेताओं के चुनाव लडऩे के महत्वपूर्ण सवाल पर बोलने के लिए सर्वोच्च न्यायालय बधाई की पात्र है। 24 जनवरी को न्यायाधीश आर.एस. नारीमन तथा एस. रविन्द्र भट्ट की पीठ ने कहा कि नेताओं के अपराधीकरण को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय हित में कुछ किए जाने...

दागी नेताओं के चुनाव लडऩे के महत्वपूर्ण सवाल पर बोलने के लिए सर्वोच्च न्यायालय बधाई की पात्र है। 24 जनवरी को न्यायाधीश आर.एस. नारीमन तथा एस. रविन्द्र भट्ट की पीठ ने कहा कि नेताओं के अपराधीकरण को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय हित में कुछ किए जाने की जरूरत है। पीठ ने  चुनाव आयोग, भाजपा याचिकाकत्र्ता अश्विनी उपाध्याय तथा अन्य को सहयोग की भावना रखते हुए इकट्ठे चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने पीठ को कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के पहले आदेश के बावजूद इस मामले को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रभाव नहीं दिखा क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में 43 प्रतिशत जीतने वाले सांसदों का आपराधिक रिकार्ड रहा है तथा उनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। यह एक बेहद गम्भीर मामला है तथा इसको नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। 

राजनीति के सभी खंडों में सिफारिश वाला वातावरण
भारतीय राजनीति में अपराधीकरण के कैंसर वाले सैल इसके शरीर को खा रहे हैं और इसकी तरक्की रोके हुए हैं। इसकी जड़ें और गहरी होती जा रही हैं। असली सवाल यह है कि इस कैंसर की प्रकृति क्या है। आखिर किसने राष्ट्रीय चरित्र में इस कैंसर को पनपने दिया। दशकों से ये सवाल लोगों के मनों में बैठे हुए हैं। मगर अफसोसजनक बात यह है कि इन सवालों के कोई तसल्लीबख्श जवाब कोई भी सरकार नहीं दे पाती। अप्रभावी तथा पतनशील राजनीति उन राजनेताओं को भाती है जो इसकी शुरूआत करते हैं। बुद्धिमानी की आवाजें आजकल अपने कदम पीछे की ओर किए बैठी हैं। राजनीति के सभी खंडों में सिफारिश वाला वातावरण व्याप्त है। इसमें कोई शक नहीं कि प्रभाव तथा पैसे के बल पर व्यक्ति चुनावी ढांचे को अपने उद्देश्य के लिए आसानी से कुतर सकते हैं। यह अफसोसजनक बात है कि लोग मूकदर्शक बने हुए हैं। लोग गलत चुनावी कानूनों, भ्रष्टाचार, अवगुण वाले ढांचे को बिना जाने चुनावों पर अपना गुस्सा अक्सर निकाल देते हैं। लोगों को अब सुधारों के लिए सम्भावनाओं को तलाशना पड़ता है। इसी कारण हमारी उम्मीदें बेहतर भविष्य के लिए जागती रहती हैं। 

कुछ कानून तथा नियम मात्र कागजों के पन्नों पर ही 
अगर पीछे की ओर देखें तो हमारे देश ने हमारे शासकों की आपसी लड़ाई के चलते बहुत कुछ झेला है। इन्हें अब मुश्किलों का दृढ़निश्चय के साथ सामना करना होगा। सुधारों के नाम पर कुछ कानून तथा नियम इस तरह गढ़े गए हैं कि वे मात्र कागजों पर ही नजर आते हैं। उनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है मगर ऐसा क्या किया जा सकता है कि हमारा सारा सिस्टम ही पैसा उन्मुख हो जाए। 

राजनीतिक प्रणाली में ढांचागत दरारें 
बेशक भारतीय चुनावी प्रणाली विस्तृत और जटिल भी है। भारतीय लोकतंत्र की राजनीतिक प्रणाली में कुछ ढांचागत दरारें तथा कुछ कार्य संबंधी कमजोरियां हैं। पैसा अपराधियों तथा राजनेताओं के मेलजोल में एक ङ्क्षचता का विषय है। राजनीति में काला धन उंडेल कर ज्यादा से ज्यादा काला धन कमाया जा रहा है। लोकतंत्र की पुष्टि करने के लिए चुनावी प्रणाली की प्रक्रिया में करोड़ों रुपए लगाए जाते हैं। 

राजनेताओं ने स्मगलरों, अंडरवल्र्ड डॉन से संबंध स्थापित किए 
बड़ी सम्भावनाओं पर नजर दौड़ाएं तो कई मुद्दों को हम देख सकते हैं। सबसे पहली बात यह है कि वर्तमान चुनाव प्रणाली ने आज की राजनीति को पैसे का स्रोत बना डाला है। दूसरा यह कि पैसे के बढ़ते प्रभाव ने हमारे विधायकों तथा सांसदों की गुणवत्ता को बुरी तरह से प्रभावित किया है। तीसरी बात यह है कि पैसे के बल ने राजनीति में ईमानदारी से खेलने तथा न्यायोचित तरीकों का स्तर गिरा दिया है। चौथा यह है कि पैसे की राजनीति ने राजनेताओं का स्मगलरों, अंडरवल्र्ड डॉन से संबंध स्थापित कर दिया है। इसमें कोई शंका की बात नहीं कि कई सांसदों का आपराधिक रिकार्ड रहा है। 

पांचवीं बात यह है कि पैसे वाला मुद्दा धीरे-धीरे हमारी लोकतंत्र प्रणाली में शिक्षित तथा ईमानदार भारतीयों का भरोसा कम कर रहा है। इस भरोसे का गिरना चुनावी प्रणाली में बेहद खतरनाक हो सकता है। इसके लिए जल्द ही कोई उपाय ढूंढे जाने चाहिएं। वास्तव में शासन तथा उसकी जवाबदेही में संतुलन बनाया जाना चाहिए। मेरा प्रधानमंत्री मोदी पर पूरा भरोसा है और मुझे आशा है कि वह जल्द ही चुनावी सुधारों के प्रश्र पर बोलेंगे। चौंकाने वाली बात यह है कि अपने मंत्रियों तथा सांसदों के बढ़ते आपराधिक रिकार्डों के बावजूद मोदी काफी हद तक इस मुद्दे पर उदासीन हैं। 

राजग में शामिल 57 मंत्रियों में से 22 के खिलाफ आपराधिक मामले 
एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी की नई कैबिनेट में 2014 की तुलना में आपराधिक मामलों वाले मंत्रियों की गिनती ज्यादा है। 2019 में मोदी नीत राजग सरकार में शामिल 57 मंत्रियों में से 22 के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। मतलब कि 39 प्रतिशत आपराधिक रिकार्ड वाले मंत्री हैं। इनमें से 16 मंत्रियों के खिलाफ बेहद संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2014 में 34 प्रतिशत आपराधिक मामलों वाले सांसद चुने गए। 2019 की लोकसभा में 539 सांसदों में से 233 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए गए। यदि आपराधिक मामलों की बात करें तो ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 

यह बड़ी चिंताजनक बात है कि 4000 से ज्यादा आपराधिक मामले वर्तमान तथा पूर्व सांसदों तथा राज्य विधानसभाओं के विधायकों के खिलाफ लंबित हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से पूछा है कि राजनीति में अपराधीकरण का उपचार किया जाए और इसके लिए कोई ठोस कानून बनाया जाए ताकि संगीन आपराधिक मामले झेल रहे लोग राजनीतिक अखाड़े में न उतर सकें। सर्वोच्च न्यायालय ने संसद को यह भी परामर्श दिया है कि राजनीति की दूषित नदी को स्वच्छ किया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि राजनीति का अपराधीकरण कोई लाइलाज बीमारी नहीं मगर इस मुद्दे से जल्द ही निपटना होगा इससे पहले कि यह लोकतंत्र के लिए घातक बन जाए। भारतीय लोकतंत्र ने अपराधीकरण का बढ़ता हुआ स्तर देखा है। यह संविधान की प्रकृति को ठेस पहुंचा सकता है। लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार कर सकता है तथा क्या इसके चलते भारतीय नागरिकों को झेलना पड़ सकता है।-हरि जयसिंह
 

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!