गुजरात चुनाव में हुई गलतियां कांग्रेस भविष्य में न दोहराए

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Dec, 2017 03:21 AM

do not repeat the congress mistakes in gujarat elections

किसने यह सोचा था कि मणि शंकर अय्यर द्वारा कही गई कोई बात मुद्दा बन जाएगी और शायद गुजरात चुनाव पर यही मुद्दा छा जाएगा। मैंने तो निश्चय ही ऐसा नहीं सोचा था और न ही मेरा मानना है कि यह इतना बड़ा मुद्दा है कि जितना गुजरात से बाहर के लोग इसे समझ बैठे...

किसने यह सोचा था कि मणि शंकर अय्यर द्वारा कही गई कोई बात मुद्दा बन जाएगी और शायद गुजरात चुनाव पर यही मुद्दा छा जाएगा। मैंने तो निश्चय ही ऐसा नहीं सोचा था और न ही मेरा मानना है कि यह इतना बड़ा मुद्दा है कि जितना गुजरात से बाहर के लोग इसे समझ बैठे हैं। 

जब मैंने इस सनसनीखेज टिप्पणी के बारे में सुना तो मैंने गुजराती भाषी शब्दकोष की सहायता ली जिसमें ‘नीच’ शब्द का अर्थ ‘दुष्ट’ बताया गया है। इसका अंग्रेजी पर्याय है “wicked”, “vile” एवं “mean”। क्या अय्यर को यह शब्द प्रयुक्त करना चाहिए था। नहीं, राजनीतिक विमर्श तथा हर तरह की चर्चा भद्र भाषा में ही होनी चाहिए। लेकिन क्या इसका ऐसा अर्थ है जिसके कारण इसे जाति से जोड़ा जाए? नहीं। 

दूसरी बात है मोदी की जाति का मुद्दा। प्रधानमंत्री एक बहुत ही सफल समुदाय ‘घांची’ से संबंध रखते हैं। यह लोग आमतौर पर किरयाने की दुकानें चलाते हैं, तेल के कोल्हुओं के मालिक हैं और दुकानों पर अनाज बेचने के अलावा चाय भी बेच लेते हैं। ‘मोदी’ शब्द का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो आपके पड़ोस में किरयाना स्टोर का मालिक है और इसका संचालन करता है। ‘गांधी’ शब्द का भी यह अर्थ है। घांची बिरादरी को गुजरातियों द्वारा पिछड़ी जाति के रूप में नहीं देखा जाता। इसे पिछड़ी जाति या ओ.बी.सी. का दर्जा 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा ही मिला था। इसलिए अधिकतर व्यक्तियों की नजरों में शब्द ‘नीच’ अपने आप ही प्रधानमंत्री के लिए जाति सूचक गाली नहीं बन जाता। इन्हीं कारणों से मेरा मानना है कि इस मुद्दे को बहुत अधिक उछाला गया है और यह चुनावी हथियार के रूप में कोई विशेष प्रभावी नहीं होगा। 

इसका उत्तर तो समय ही देगा। वैसे स्वाभाविक रूप में हमारे पास यह जानने का कोई विशिष्ट तरीका नहीं कि कौन से मुद्दे भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे (या जिनसे भाजपा जीतने की उम्मीद कर सकती है) और कौन से मुद्दे केवल मीडिया द्वारा ही गुब्बारे की तरह बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किए जा रहे हैं। एक समाचार, जिसे मैंने विशेष तौर पर आहत करने वाला माना था वह था सोमनाथ रजिस्टर का मामला। बाद में हुई रिपोर्टिंग में दिखा दिया गया कि असली कहानी वह नहीं थी जो मीडिया में दिखाई गई थी लेकिन यह बात तो निश्चय ही कई गुजरातियों के लिए दिलचस्पी भरी होगी और इस बात से चिंतित होंगे कि गांधी ने गैर-हिन्दू के तौर पर अपना पंजीकरण करवाया था जोकि सत्य नहीं था लेकिन वह कहानी इतिहास बन चुकी है और मीडिया को इसमें कोई रुचि नहीं रह गई।

फिर यह खबर मीडिया के हाथ लग गई जिसमें अय्यर ने राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदोन्नति को शाहजहां और औरंगजेब के राजतिलक से उपमा दे डाली। वैसे बाद में टिप्पणी करने वाले अधिकतर लोगों ने उनकी पूरी बात का संदर्भ नहीं दिया था। मैं भी ऐसे लोगों में ही शामिल था। फिर भी अय्यर को यह सोचना चाहिए था कि जिस भी चीज में गांधी और औरंगजेब का नाम आएगा, मोदी उसका लाभ उठाने से नहीं चूकेंगे और हुआ भी ऐसा ही। वैसे मोदी का आरोप किस हद तक प्रभावी हुआ होगा? एक बार मैं फिर  यह कहना चाहूंगा कि लोग इस तरह की बातों के आधार पर वोट देने का फैसला नहीं लेते। फिर भी इस बात से भाजपा को यह मौका मिल गया कि वह राज्य में अपने दो दशकों के शासन दौरान अपनी कारगुजारी की बजाय कांग्रेस के बारे में टिप्पणियां कर सके।

इससे पहले भाजपा ने एक अस्पताल के बारे में रिपोर्ट लीक की थी जिसके ट्रस्टियों में से एक अहमद पटेल हैं और जिसमें एक ऐसा कर्मचारी या पूर्व कर्मचारी था जो आतंकवाद के एक मामले में आरोपी था। यह किस्सा पूरी तरह मनघडंत था क्योंकि अहमद पटेल और आरोपी व्यक्ति के बीच किसी प्रकार का संबंध नहीं था। इस मुद्दे को केवल इसलिए तूल दी गई थी कि भाजपा अक्सर कांग्रेस को आतंकवाद के विरुद्ध नरम रुख अपनाने वाले रूप में दर्शा कर लाभान्वित होती है। वैसे इतिहास और आंकड़े इसके बिल्कुल विपरीत तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। 

फिर कुछ ही दिन पूर्व कपिल सिब्बल के बारे में समाचार आ गया। वह कांग्रेसी हैं और वकालत करते हैं। उन्होंने सुप्रीमकोर्ट को कहा था कि बाबरी मस्जिद मामले का फैसला 2019 के चुनावों से पहले न सुनाया जाए। इससे मोदी को खबरों का एक नया वावेला खड़ा करने का मौका मिल गया क्योंकि उन्हें बिल्कुल तैयार-बर-तैयार सामग्री हाथ लग गई। अयोध्या विवाद ने ही भाजपा को एक राष्ट्रीय पार्टी बनाया था लेकिन यह मुद्दा राजनीतिक तौर पर मर चुका है। फिर भी जानबूझ कर इसे प्रमुखता से उछाला गया। 

सुर्खियों पर छाने वाले नवीनतम समाचार में प्रधानमंत्री ने अय्यर के विरुद्ध आरोप जड़ दिया। अय्यर एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने स्वयं यह स्वीकार किया है कि अपना मुंह बंद रखने की उनमें शून्य काबिलियत है। मोदी ने आरोप लगाया कि अय्यर ने पाकिस्तानियों को कहा था कि वे मोदी की हत्या के लिए ‘सुपारी’ ले लें। वैसे यह बात सच नहीं है। यदि प्रधानमंत्री सचमुच इस बात पर विश्वास करते हैं तो यह चिंता का विषय है और यदि केवल चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए ऐसा शिगूफा छोड़ रहे हैं तो भी यह चिंता का विषय है।

जैसा कि प्रत्यक्ष देखा जा सकता है सभी या अधिकतर महत्वपूर्ण मुद्दे जो समाचारों में चर्चित हुए हैं वे ऐसी बातें हैं जो मीडिया की सहायता से भाजपा ने कांग्रेस के विरुद्ध प्रत्यारोपित की हैं। यह आशंकाओं और तोहमतबाजियों का एक नकारात्मक अभियान है। इसके बारे में उल्लेखनीय बात यह है कि भाजपा में अब 2014 जैसा सकारात्मक अभियान चलाने की कोई अभिलाषा ही नहीं बची। वह अभियान गवर्नैंस और अच्छे दिनों के मुद्दे पर चलाया गया था। 

यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन हमारे उपमहाद्वीप में राजनीति का यही तौर-तरीका है। जहां भी भाजपा ऐसे हथकंडे प्रयुक्त कर सकती होगी, यह निश्चय ही करेगी। यह सोचना कांग्रेस की जिम्मेदारी है कि इसके लिए कौन-सी बातें मुद्दा हैं जो मीडिया के लिए भी आकर्षक हों। कांग्रेस ऐसी बातों को आगे बढ़ाने का प्रयास करे और यह भी निश्चय ही कांग्रेस की जिम्मेदारी है कि यह जानबूझ कर ऐसी गलतियां न करे जो इस चुनाव के दौरान इसने की हैं।-आकार पटेल

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