महिलाओं तथा बच्चों में साम्प्रदायिकता व हिंसा का बीज मत बोएं

Edited By ,Updated: 25 Jan, 2020 04:12 AM

do not sow the seeds of communalism and violence among women and children

राजधानी दिल्ली का शाहीन बाग इन दिनों देश में तो सुर्खियां बना ही हुआ है, सुर्खियां ही झूठ, भ्रम, गैर-जानकारी, नासमझी, पाखंड, साम्प्रदायिक सोच तथा भाजपा, संघ एवं नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के प्रति एक बड़े वर्ग के अंदर व्याप्त नफरत की सम्मिलित परिणति...

राजधानी दिल्ली का शाहीन बाग इन दिनों देश में तो सुर्खियां बना ही हुआ है, सुर्खियां ही झूठ, भ्रम, गैर-जानकारी, नासमझी, पाखंड, साम्प्रदायिक सोच तथा भाजपा, संघ एवं नरेन्द्र मोदी व अमित शाह के प्रति एक बड़े वर्ग के अंदर व्याप्त नफरत की सम्मिलित परिणति है। भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियां और संगठन भी इस तरह की नफरत और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने मेें भूमिका निभा रहे हैं। 

झूठ यह है कि नागरिकता संशोधन कानून मुसलमानों के खिलाफ है। कई लोग कहते मिल जाएंगे कि मोदी और शाह मुसलमानों को बाहर निकालना चाहते हैं या हमें कैद में रख देंगे। यह भ्रम है जिसे योजनापूर्वक फैलाया गया है। गैर जानकारी का तो साम्राज्य है। ज्यादातर को पता ही नहीं कि नागरिकता कानून, एन.पी.आर. या एन.आर.सी. क्या है। जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते वे बातें वहां सुनने को मिल जाएंगी। नासमझी यह है कि इसके पीछे भूमिका निभाने वाले कुछ लोग मानते हैं कि इससे मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनेगा एवं यह समय के पूर्व ही गिर जाएगी। 

इस लेखक को टी.वी. पर लगातार दिखने वाले एक मौलाना ने स्वयं कहा कि सरकार अब जाने वाली है। पाखंड यह कि इसके पीछे गंदी राजनीति है, इस पर आने वाले भारी खर्च को अदृश्य शक्तियां वहन कर रही हैं और कहा जा रहा है कि लोग खर्च कर रहे हैं। साम्प्रदायिक सोच के बारे में तो प्रमाण देने की जरूरत ही नहीं है। आप पूरी व्यवस्था देख लीजिए, इतना भारी संसाधन बिना पूर्व योजना के आ ही नहीं सकता। इसका वित्तपोषण भी एक रहस्य बना हुआ है कि आखिर कौन इतना खर्च कर रहा है। 

सबसे भयावह स्थिति इस तथाकथित आंदोलन में छोटे-छोटे बच्चों का दुरुपयोग है। उनके अंदर किस तरह का जहर भरा जा रहा है, यह उनके बयानों एवं नारों से मिल जाएगा। एक बच्चा-बच्ची जिसे आजादी का अर्थ नहीं मालूम, उसे रटवाकर नारा लगवाया जा रहा है। एक बच्ची को पूरा बयान रटा दिया गया है जिसमें वह कह रही है कि मोदी और शाह हमें मारने वाला है, हम उसको मार डालेंगे। इस बहुप्रचारित धरने, जिसे भारत के सबसे बड़े आंदोलन की संज्ञा दी जा रही है, का यही सच है। इसमें छ: श्रेणी के लोगों की भूमिका है। ऐसे लोग हैं जिनके अंदर वाकई यह भय पैदा कर दिया गया है कि मोदी सरकार पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ काम कर रही है इसलिए हमको अपनी रक्षा के लिए वहां जाना चाहिए। दूसरी श्रेणी में वे लोग हैं जिनको पूरा सच मालूम है लेकिन मोदी और भाजपा से नफरत के कारण उन्होंने यह आग लगाई है और वे वहां डटे हुए हैं ताकि आग बुझे नहीं। 

तीसरी श्रेणी में वे हैं जिनका आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं। वे या तो अपने नेता, मालिक या अन्य के कहने या फिर पैसे एवं अन्य लालच में आते हैं। चौथी श्रेणी नेताओं की है जो वहां इसलिए जा रहे हैं ताकि वे मुसलमानों के हमदर्द बनकर उनका वोट पा सकें। पांचवीं श्रेणी उनकी है जो जे.एन.यू. से लेकर जामा मस्जिद एवं कई जगहों पर देश विरोधी नारों से लेकर उत्पात के कारण बने हैं और उनको लगता है कि इसके साथ जुड़कर वे ज्यादा ताकतवर होंगे एवं सरकार पर दबाव बढ़ेगा। छठी श्रेणी मजहबी कट्टरपंथियों की है जो देश में अपनी सोच का जेहादी माहौल पैदा करने लिए सक्रिय रहे हैं। 

अगर इन सबको साथ मिला दें तो सकल निष्कर्ष यह है कि हर हाल में मोदी सरकार को मुसलमान विरोधी, साम्प्रदायिक, लोकतंत्र का हनन करने वाला करार देकर देश एवं दुनिया में बदनाम करना तथा कमजोर करना है। हालांकि इसमें सफलता मिलने की संभावना इसलिए नहीं है कि ऐसे झूठ और फरेब पर आधारित प्रदर्शनों से मोदी सरकार का समर्थन ज्यादा बढ़ेगा। 

मुस्लिम समुदाय के अंदर यह भाव पैदा हो गया है कि इस कानून से हमारा कोई लेना-देना नहीं
आज की स्थिति यह है कि राजधानी दिल्ली का बड़ा वर्ग जिसकी संख्या लाखों में है, वह इस धरने के कारण लगने वाले जाम से परेशान होकर इसके खिलाफ है। लोग विरोध में प्रदर्शन भी करने लगे हैं। मीडिया के बड़े समूह द्वारा तथ्य सामने रखने तथा अलग-अलग संगठनों द्वारा मोहल्ला सभाओं में नागरिकता कानून का सच बताने से मुस्लिम समुदाय के अंदर भी यह भाव पैदा हो रहा है कि इस कानून से हमारा तो कोई लेना-देना है नहीं। यह भाव जैसे-जैसे बढ़ रहा है मोदी विरोधी अभियानकत्र्ता एन.पी.आर. एवं एन.आर.सी. की बात करते हुए बता रहे हैं कि एन.पी.आर. में तुमसे पहचान मांगी जाएगी, तुम्हारे खानदान का विवरण मांगा जाएगा और नहीं देने पर तुम्हारे नाम के सामने सब लिख दिया जाएगा तथा एन.आर.सी. में तुम्हारा नाम नहीं होगा। इस तरह तुम भारत के नागरिक नहीं रहोगे। यहां तक दुष्प्रचार है कि उसके बाद तुमको जिस सैंटर में रखा जाएगा वहां मोदी और शाह केवल एक शाम तुमको भोजन देंगे। आप अगर शाहीन बाग नहीं गए हैं तो आपको इस पर सहसा विश्वास नहीं होगा लेकिन वहां चले जाइए तो आपका इन महान विचारों से सामना हो जाएगा। 

महिलाओं तथा बच्चों को आगे रखने की रणनीति
इस तरह बच्चों के अंदर साम्प्रदायिकता और हिंसा का बीज बोने वाले आखिर देश को कहां ले जाना चाहते हैं? इन बच्चों का क्या दोष है? लेकिन यह भी रणनीति है। बच्चों और महिलाओं को आगे रखो ताकि दुनिया का मीडिया यह सुने और इन पर कोई कार्रवाई हो तो फिर हमें छाती पीटने का मौका मिल जाए कि महिलाओं और बच्चों के साथ बर्बरता की गई। इनके नेताओं के मुंह से बार-बार यही निकलता है कि महिलाएं यहां अपने अधिकारों के लिए और संविधान की रक्षा के लिए लड़ रही हैं तो उनके बच्चे कहां जाएंगे। वे बच्चे जो कह रहे हैं वह उन्होंने वहां देखा है, उन्हें किसी ने सिखाया नहीं है। एक बच्चा नारा लगा रहा है कि जो हिटलर की चाल चलेगा तो उसके साथ सब बोल रहे हैं कि वो हिटलर की मौत मरेगा। कोई बच्चा बिना सिखाए यह नारा बोल सकता है क्या? महिलाओं को आगे रखने की रणनीति के तहत दिल्ली में ही कई जगहों पर ऐसे धरने आयोजित किए जा रहे हैं तथा देश के कुछ दूसरे हिस्सों में भी। ये बच्चे कितनी खतरनाक मानसिकता से बड़े होंगे और क्या करेंगे, यह सोचकर ही भय पैदा हो जाता है। 

किसी विरोध या आंदोलन का तार्किक आधार होना चाहिए
प्रश्न है कि यह ऐसे ही चलेगा या इस पर पूर्ण विराम लगाया जाएगा? यह कहना कि विरोध-प्रदर्शन-आंदोलन हमारा संवैधानिक अधिकार है, इस खतरनाक अभियान का सरलीकरण करना है। सबसे पहले तो किसी विरोध या आंदोलन का ताॢकक आधार होना चाहिए। नागरिकता कानून मुसलमानों के खिलाफ  है नहीं। एन.पी.आर. 2010 में हुआ, 2015 में उसको अद्यतन किया गया। कोई समस्या नहीं आई। वह मूल जनगणना का भाग है एवं सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए आवश्यक है। एन.आर.सी. अभी आया नहीं। जब आएगा और उसमें कुछ आपत्तिजनक बातें होंगी तो उसका विरोध किया जाएगा। इस समय ऐसा कुछ है नहीं। तो जिस विरोध का कोई ताॢकक आधार नहीं है, जो विरोध दूसरे के अधिकारों का हनन कर रहा है, जिसमेें बच्चों का रैडिकलाइजेशन किया जा रहा है, जिसमें एक समुदाय को भड़काने जैसे साम्प्रदायिकता के तत्व साफ दिख रहे हैं, जिसका पूरा उद्देश्य ही कुत्सित राजनीति है यानी मोदी-शाह को बदनाम कर सरकार को फासीवादी साबित करो...वह संवैधानिक अधिकार के तहत नहीं आ सकता। संविधान में मौलिक अधिकार के साथ मौलिक कत्र्तव्य भी हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि अधिकारों के नाम पर ऐसी स्थिति पैदा कर दें जिनसे दूसरे के लिए कत्र्तव्यपालन कठिन हो जाए और वह भी सुनियोजित राजनीतिक साजिश के तहत। 

साफ है कि शाहीन बाग का अंत नहीं होगा तो इसका जहरीला विस्तार और जगह हो सकता है। कारण, इसमें अलग-अलग कुत्सित उद्देश्य से लगे लोग जानते हैं कि इसे जगह-जगह फैलाए बिना वे मोदी सरकार को खलनायक बना देने में कामयाब नहीं होंगे इसलिए ज्यादा विस्तार से पहले ही इसे रोकना होगा। इसके कारण देश के बड़े वर्ग में गुस्सा पैदा हो रहा है। तो खतरा यह है कि कहीं प्रतिक्रिया में वह वर्ग इनको चुनौती देने लगा तो फिर स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। इसलिए जरूरी है कि इसे अभी रोका जाए। इस बात की चिंता किए बिना कि ये क्या दुष्प्रचार करेंगे, ये आगे क्या करेंगे और राजनीतिक पाॢटयां इसे किस तरह लेंगी, इसका कानूनी तरीके से अंत किया जाए।-अवधेश कुमार

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!