सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों को चपड़ासी न समझें

Edited By Pardeep,Updated: 22 Oct, 2018 05:10 AM

do not think policemen deployed in security

पिछले हफ्ते एक जज की पत्नी और बेटे को हरियाणा पुलिस के सुरक्षाकर्मी ने दिन-दिहाड़े बाजार में गोली मार दी। जज की पत्नी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। लड़के को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया। तमाशबीन बड़ी तादाद में तमाशा देखते रहे, पर किसी की हिम्मत...

पिछले हफ्ते एक जज की पत्नी और बेटे को हरियाणा पुलिस के सुरक्षाकर्मी ने दिन-दिहाड़े बाजार में गोली मार दी। जज की पत्नी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। लड़के को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया। तमाशबीन बड़ी तादाद में तमाशा देखते रहे, पर किसी की हिम्मत उसे रोकने की नहीं हुई। हत्या करने के बाद सिपाही ने जज को और अपने घर फोन करके घरवालों तथा मित्रों को कहा कि उसने यह कांड कर दिया है। बाद में गिरफ्तार होने पर उसने पुलिस को बताया कि उसने जज की पत्नी और बेटे के दुव्र्यवहार से तंग आकर यह जघन्य कांड किया। 

उल्लेखनीय है कि उस पुलिस वाले की ड्यूटी जज महोदय की सुरक्षा के लिए लगाई गई थी, जबकि घटना के समय जज साहिब ने उसे अपनी निजी गाड़ी का ड्राइवर बनाकर अपनी पत्नी और बेटे को शॉपिंग करा लाने को कहा था, जो कि उसकी वैधानिक ड्यूटी कतई नहीं थी। अगर इस बीच कोई घर में घुसकर जज की हत्या कर देता तो इस पुलिस वाले की नौकरी चली जाती। उस पर ड्यूटी में लापरवाही करने का आरोप लगता, जबकि वह उसका अपराध नहीं होता। 

यह पहली घटना नहीं है। देशभर में राजनेताओं, विशिष्ट व्यक्तियों, अधिकारियों और न्यायाधीशों की सुरक्षा में सरकार की ओर से समय-समय पर पुलिस सुरक्षा दी जाती है। इन सुरक्षाकर्मियों का काम ‘पीपी’ (प्रोटैक्टेड पर्सन) की सुरक्षा करना होता है, न कि उसका बैग उठाना या उसके मेहमानों को चाय पिलाना या उसकी गाड़ी चलाना या दूसरे घरेलू नौकरों की तरह काम करना, पर देखने में यह आया है कि बहुत कम ‘पीपी’ ऐसे होते हैं, जो सरकार द्वारा प्रदत्त सुरक्षाकर्मियों को उनकी ड्यूटी पूरी करने देते हैं। प्राय: सभी ‘पीपी’ और उनके परिवार इन सुरक्षा पुलिसकर्मियों से बेगार करवाते हैं। 

इसके कई पहलू हैं। सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी चाहे तो ऐसी बेगार करने को मना कर सकता है।  कोई ‘पीपी’ उन्हें इसके लिए बाध्य नहीं कर सकता, पर ताली एक हाथ से नहीं बजती। होता यह है कि पहले तो ‘पीपी’ इन सुरक्षाकर्मियों का अनुचित लाभ उठाते हैं और फिर ये सुरक्षाकर्मी अपने वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी के बिना ‘पीपी’ की सहमति से अपनी ड्यूटी में फेरबदल करते रहते हैं। उनसे सिफारिश करवाकर कभी अपने निजी काम भी करवा लेते हैं। जब कभी ‘पीपी’ कोई बहुत अधिक साधन सम्पन्न या भ्रष्ट नेता होता है तो उसकी ओर से इन सुरक्षाकर्मियों की खूब खिलाई-पिलाई होती है। यानी इनके बढिय़ा खाने-पीने, आराम से रहने और खर्चे के लिए भी अतिरिक्त धन उस ‘पीपी’ द्वारा मुहैया कराया जाता है। 

ऐसे ‘पीपी’ के संग प्राय: सुरक्षाकर्मी बहुत खुश रहते हैं क्योंकि उनके भत्ते खर्च नहीं होते, उलटा उनकी आमदनी बढ़ जाती है, पर सब पुलिस सुरक्षाकर्मी ऐसे नहीं होते। वे अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से करना चाहते हैं और इस तरह की बेगारी को अपने मन के विरुद्ध मजबूरी में करते हैं। ‘जैन हवाला कांड’ उजागर करने के दौरान मुझ पर 1993-96 के बीच कई बार प्राणघातक हमले हुए। उसके बाद कहीं जाकर भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने मुझे ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की जिसमें एक प्लस चार की गार्ड मेरे घर की रखवाली करती थी या जिस शहर में मैं जाता था, मेरे शयन कक्ष की रखवाली करती थी। 

पिस्टल और बंदूक लेकर 2 सुरक्षाकर्मी मेरे साथ रहते थे। एक जीप में कुछ पुलिसकर्मी मेरी गाड़ी के आगे एस्कॉर्ट करके चलते थे। उन दिनों लगभग रोजाना देशभर में मेरे व्याख्यान और जनसभाएं हुआ करती थीं इसलिए राज्य सरकारें भी इसी तरह सुरक्षा की व्यवस्था करती थीं। यह व्यवस्था मेरे साथ कई वर्ष तक रही, पर मुझे याद नहीं कि मैंने कभी इतने सारे सुरक्षाकर्मियों के साथ दुव्र्यवहार किया हो या उनसे बेगार करवाई हो इसलिए उन सबसे आज तक स्नेह संबंध बना हुआ है। यह उल्लेख करना इसलिए जरूरी है कि वह सुरक्षा व्यवस्था मेरी जान की रक्षा के लिए तैनात की गई थी, जिस पर लाखों रुपए महीना देश का खर्च होता था। ये सब सुरक्षाकर्मी मेरे निजी कर्मचारी नहीं थे और न ही मेरे परिवार के लिए बेगार करने को तैनात किए गए थे।

चलिए हम तो पत्रकार हैं, इसलिए संवेदनशीलता के साथ उनसे व्यवहार किया, पर सत्ता, पद और पैसे के मद में रहने वाले ‘पीपी’ और उनके परिवार इन सुरक्षाकर्मियों को अपना निजी स्टाफ समझते हैं, जो एक घातक प्रवृत्ति है। जिस तरह गुडग़ांव के पुलिसकर्मी ने एक खतरनाक कदम उठाया और ‘पीपी’ के परिवार को ही खत्म कर डाला, उसी तरह कब किस सुरक्षाकर्मी को ‘पीपी’ के परिवार के ऐसे गलत व्यवहार की बात बुरी लग जाए और वह ऐसा घातक कदम उठा ले, इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। इसलिए गुडग़ांव की इस घटना से सभी को सबक लेना चाहिए और जिनकी सुरक्षा में पुलिसकर्मी तैनात हैं, उन्हें इनको अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से करने देनी चाहिए। इनसे बेगार लेकर इनका दोहन और अपमान नहीं करना चाहिए।-विनीत नारायण

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