Edited By Pardeep,Updated: 03 Sep, 2018 02:41 AM
हम भारत में आमतौर पर ये वाक्य सुनते हैं कि ‘मुझे न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास है’ तथा ‘कानून अपना काम करेगा।’मैं इन वाक्यों का इस्तेमाल नहीं करता और मुझे न्यायिक प्रणाली में बहुत कम विश्वास है। कानून भारत में अक्सर अपना काम नहीं करता। राज्य हमेशा...
हम भारत में आमतौर पर ये वाक्य सुनते हैं कि ‘मुझे न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास है’ तथा ‘कानून अपना काम करेगा।’मैं इन वाक्यों का इस्तेमाल नहीं करता और मुझे न्यायिक प्रणाली में बहुत कम विश्वास है। कानून भारत में अक्सर अपना काम नहीं करता। राज्य हमेशा नागरिक को नुक्सान पहुंचाने का प्रयास करता है और न्यायपालिका आम तौर पर इसका विरोध नहीं करती। मैं इसका खुलासा एक ऐसे मामले के मद्देनजर करता हंू जो इन दिनों हम बहुत सुन रहे हैं, पांच व्यक्तियों की गिरफ्तारी जिन्हें यह सरकार तथा इसका मीडिया ‘शहरी नक्सल’ कहते हैं।
मैं पाठकों से कहूंगा कि वह इन व्यक्तियों बारे अपनी राय दबा कर रखें। विशेषकर उस आधार पर जो कुछ वह मीडिया में सुन तथा पढ़ रहे हैं। यह बेवकूफी है। व्यक्तियों को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए था और किसी भी सभ्य लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता क्योंकि सभ्य लोकतंत्रों में कार्यशील न्याय पालिकाएं होती हैं जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती हैं। राज्य जो कुछ भी उनके सामने पेश करता है जो हमारे अधिकारों का उल्लंघन करता है, वे उस पर रबड़ स्टैम्प बनने को उत्सुक नहीं होतीं। मैं स्वीकार करता हूं कि वर्तमान घटना में यह खुद न्याय पालिका भी है जिसने अपने भीतर समस्याओं का खुलासा किया है।
मेरा मतलब सुप्रीम कोर्ट नहीं बल्कि दिल्ली हाईकोर्ट से है। दो जजों की पीठ पांच व्यक्तियों में से एक गौतम नवलखा की गिरफ्तारी तथा उसके ट्रांजिट रिमांड को देख रही थी। इस मुद्दे पर अदालत का आदेश, जो जस्टिस एस. मुरलीधर ने पढ़ा, एक उल्लेखनीय दस्तावेज है और इसे सभी नागरिकों को पढऩा चाहिए। ये स्पष्टता, सटीकता तथा लालित्य के 10 पृष्ठ हैं।
यह निम्रलिखित कहानी बताता है:
28 अगस्त को गौतम नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के पास कोई सर्च वारंट नहीं था और उन्हें उसके घर में जाने की इजाजत नहीं थी। वे वापस गए और वारंट के साथ लौटे। इस केस का आधार 31 दिसम्बर 2017 को आयोजित एक कार्यक्रम को लेकर दाखिल एफ.आई.आर. थी। एफ.आई.आर. में गौतम का नाम नहीं था। उसका कहना है कि वह तो उस बैठक में भी उपस्थित नहीं था। गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (जो एक ऐसा कानून है जिसका इस्तेमाल सरकार आतंकवाद के खिलाफ करती है) के आरोपों का मूल एफ.आई.आर. में शुरू में जिक्र नहीं था। इसमें केवल वैमनस्य फैलाने संबंधी धाराएं थीं। गिरफ्तारी के बाद गौतम को पुणे ले जाया गया।
दिल्ली में साकेत के चीफ मैट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट मनीष खुराना ने उसे पुणे ले जाने के लिए ट्रांजिट रिमांड की आज्ञा दी। ट्रांजिट रिमांड का आवेदन ङ्क्षहदी में बनाया गया था। यद्यपि जो दस्तावेज मैजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किए गए वे अधिकतर मराठी में थे। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ‘इन दस्तावेजों से यह पता लगाना संभव नहीं है कि याचिकाकत्र्ता के खिलाफ वास्तव में मामला क्या है।’ नागरिक होने के नाते हमें यह प्रश्र पूछना चाहिए कि तब मैजिस्ट्रेट द्वारा ट्रांजिट रिमांड के लिए आज्ञा क्यों दी गई? हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की सुनवाई अगले दिन की जाएगी और मैजिस्ट्रेट को दिखाए गए दस्तावेजों का मराठी से अनुवाद किया जाना चाहिए। इस बीच गौतम को उस स्थान पर वापस ले जाया जाना था, जहां से पुलिस ने उसे उठाया था।
सुबह को पुलिस के वकील ने कहा कि अनुवाद करने में अधिक समय लग रहा है और अदालत ने इसके लिए दोपहर बाद का समय दिया है। दोपहर बाद 2.15 बजे अदालत को कुछ पृष्ठ दिखाए गए जिनमें अंग्रेजी में अनुवाद की गई एफ.आई.आर. भी शामिल थी मगर अधिकतर सामग्री अभी भी मराठी में थी। पुलिस के वकील ने और अधिक समय की मांग की है जो कोर्ट ने नहीं दिया। अदालत ने तब जो कहा वह था ‘गिरफ्तारी की वैधता को लेकर चिंतित हैं’ तथा ‘विद्वान सी.एम.एम. द्वारा पारित ट्रांजिट रिमांड की वैधता को लेकर।’
इसने कहा कि एफ.आई.आर. में नवलखा का जिक्र नहीं है तो सी.एम.एम. के सामने क्या सबूत पेश किया गया था? इसने उपस्थित महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारियों से यह प्रश्र पूछा कि ‘क्या विद्वान सी.एम.एम. के सामने कार्रवाई के दौरान किसी भी समय विद्वान सी.एम.एम. ने केस डायरी देखने को कहा जिसमें कथित रूप से याचिकाकत्र्ता के शामिल होने संबंधी उचित सामग्री शामिल थी।’व पुलिस कर्मी ने न कहा। यह खुलासा हुआ कि केस डायरी भी मराठी में थी। तब पुलिस के वकील ने कहा कि गौतम नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है और यहीं पर असल समस्या थी।
इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि यू.ए.पी.ए. के अंतर्गत नियमित जमानत ‘अत्यंत कठिन होगी, जब तक कि कम से कम आरोप पत्र दाखिल नहीं कर दिया जाता।’ 29 अगस्त को इसी चरण पर पुलिस के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल दिया है। तब हाईकोर्ट ने कहा कि उसके लिए ट्रांजिट रिमांड की वैधता को लेकर सुनवाई जारी रखने का कोई औचित्य नहीं होगा। जैसा कि अब हम जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट 6 सितम्बर को इस पर फिर सुनवाई करेगी। हम में से बहुत से लोग बहुत उत्सुकता के साथ देखेंगे कि वह क्या करेगी।-आकार पटेल