क्या वित्त मंत्री को प्याज का ‘स्वाद’ याद है

Edited By ,Updated: 02 Feb, 2020 01:37 AM

does the finance minister remember the  taste  of onions

माननीय राष्ट्रपति का सम्बोधन, आर्थिक सर्वे तथा बजट ये तीन दस्तावेज हैं। इसके साथ-साथ यह सरकार की नीतियों तथा लक्ष्यों को बताने का मौका भी होता है। अन्य मुद्दों को एक ओर रखते हुए मैंने राष्ट्रपति के सम्बोधन की तरफ देखा जो यह संकेत दे रहे थे कि सरकार...

माननीय राष्ट्रपति का सम्बोधन, आर्थिक सर्वे तथा बजट ये तीन दस्तावेज हैं। इसके साथ-साथ यह सरकार की नीतियों तथा लक्ष्यों को बताने का मौका भी होता है। अन्य मुद्दों को एक ओर रखते हुए मैंने राष्ट्रपति के सम्बोधन की तरफ देखा जो यह संकेत दे रहे थे कि सरकार आर्थिक ढलान से निपटने के लिए अपना कैसा इरादा रखती है। मुझे इसमें कुछ भी नहीं मिला। मैंने आर्थिक सर्वे की ओर ध्यान दिया। इस बार इसके पास एक नया कर्णधार है जिनका नाम के.वी. सुब्रह्मण्यन है। वह अर्थशास्त्र के साथ-साथ तमिल कविता को भी प्यार करते हैं। 

इसका मुख्य विषय यह है कि दौलत को उत्पन्न करना अच्छा है तथा धन का सृृजन करने वालों की इज्जत करनी चाहिए। यह एक ऐसा विचार है जो कि अब न तो एक नावल रहा और न ही विवाद। आर्थिक सर्वे में मुख्य चुनौती वाला अध्याय यह है कि कैसे मदद करने की बजाय सरकार की बाजार में दखलअंदाजी ज्यादा आघात पहुंचाती है। अगले दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शाही ढंग से इस परामर्श को नकार दिया! उन्होंने ढांचीय सुधारों पर सभी सिफारिशें भी नकार दीं। आइए अब 2020-21 के नए बजट पर नजर दौड़ाएं। मैं इसके आकलन का इरादा रखता हूं। मैं बजट के आंकड़ों, भाषण तथा प्रावधानों को निशानेबाजी, आधारभूत दर्शनशास्त्र तथा सुधारों के तीन शीर्षक तले देखता हूं। 

गलत निशानेबाजी 
जब जुलाई 2019 में पिछला बजट प्रस्तुत किया गया था तब दबाव में बहुत कुछ चीजें घटीं। यह अनुचित होगा कि 2019-20 के बजट अनुमान के लिए वित्त मंत्री को जिम्मेदार ठहराया जाए। यह रिकार्ड किया जाना चाहिए कि वित्त मंत्री कई मुद्दों पर असफल रहीं। ससकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में प्रस्तावित वृद्धि 12 प्रतिशत (नाममात्र मामले में) के प्रतिकूल, 2019-20 में जी.डी.पी. मात्र 8.5 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ेगी। 2020-21 के लिए अनुमान 10 प्रतिशत है।

 

  • बजट अनुमान के 3.3 प्रतिशत के प्रतिकूल वित्तीय घाटा 2019-20 में 3.8 प्रतिशत होगा तथा 2020-21 में 3.5 प्रतिशत अनुमानित है। 
  • 16,49,582 करोड़ रुपए के अनुमानित कुल कर राजस्व संग्रह के प्रतिकूल सरकार केवल मार्च 2020 के अंत से पहले 15,04,587 करोड़ रुपए का संग्रह करने के योग्य होगी। 
  • 1,05,000 करोड़ रुपए के विनिवेश के लक्ष्य के प्रतिकूल यह प्रक्रिया इस वित्तीय वर्ष में मात्र 65 हजार करोड़ की प्राप्ति होगी। 
  • 2019-20 में 27,86,349 करोड़ रुपए के कुल खर्चे को झेलने के इरादे के प्रतिकूल सरकार 63,086 करोड़ रुपए के अतिरिक्त उधार के बावजूद केवल 26,98,552 करोड़  रुपए ही खर्च कर पाएगी। 

कोई बुनियादी फिलासफी नहीं 
यह एक गम्भीर शंका वाला मुद्दा होगा यदि भाजपा सरकार के पास कोई बुनियादी आर्थिक फिलासफी होगी। मूल रूप से उनके पास आत्मनिर्भरता, संरक्षणवाद, नियंत्रण और कारोबारियों का पक्ष लेने में पक्षपात (जैसा कि निर्माताओं तथा उपभोक्ताओं के प्रतिकूल), आक्रामक कराधान तथा सरकारी खर्च में विश्वास वाले सिद्धांत हैं। 

क्या 2020-21 का बजट सरकार की सोच में बदलाव का संकेत है? इसका जवाब न है। वास्तव में वित्त मंत्री ने देश द्वारा झेले जा रहे मैक्रो-इकनॉमिक संकटों पर सरकारी सोच के बारे में नहीं बताया। न ही वित्त मंत्री ने यह कहा कि उनकी सरकार ने यह सोचा कि यह मंदी चक्रीय तथा ढांचीय कारकों के कारण उत्पन्न हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार निरंतर इन बातों को नकार रही है। सरकार इस बात को नकार रही है कि अर्थव्यवस्था, विवश करने वाली मांग तथा निवेश के लिए लालायित है। इस इंकार को देखते हुए सरकार ने गम्भीर सुधार उपायों तथा प्रस्तावित समाधानों जैसी दो चुनौतियों की तरफ देखने से इंकार कर दिया है। 

सरकार का सुधारों का विचार यह है कि करदाताओं को कर राहत का एक छोटा टुकड़ा देना है। कुछ माह पहले यह कार्पोरेट सैक्टर था, इस बजट में 40 हजार करोड़ रुपए की राहत निजी आय करदाताओं को दी गई। वित्त मंत्री ने कार्पोरेट्स का दबाव भी झेला तथा लाभांश वितरण कर (डी.डी.टी.) को खत्म कर दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि लाभांश वितरण कर एक योग्य कर था और इसने लाभांश आय पर कर के परिहार का अंकुश लगा दिया। मुझे यकीन है कि डी.डी.टी. को खत्म करने से राजस्व का घाटा होगा। मोल-तोल में वित्त मंत्री ने दो टैक्स व्यवस्थाओं (एक छूट के साथ तथा एक बिना छूट के) को पेश किया तथा विभिन्न दरों के साथ निजी आयकर ढांचे को जटिल बना दिया। इसी गलती को सरकार ने तब किया था जब यह जी.एस.टी. को लेकर आई थी। 

सुधारों को छोड़ दिया
वित्त मंत्री ने तीन शीर्षकों पर कार्य किया और प्रत्येक शीर्षक के तहत कई खंडों तथा कार्यक्रमों को बनाया। उदाहरण के तौर पर आकांक्षा भारत के शीर्षक तहत वित्त मंत्री ने तीन खंडों को चिन्हित किया तथा प्रत्येक खंड के तहत उन्होंने कई कार्यक्रमों की घोषणा की। इसी तरह सबका आर्थिक विकास तथा समाज का ध्यान रखना जैसे दो शीर्षकों पर एक घंटा बोलने पर खर्च कर दिया। जब उन्होंने अपनी बात पूरी की तब मैं शीर्षकों, खंडों तथा कार्यक्रमों की गिनती करना भूल गया। मैंने किसी भी क्षेत्र में ढांचीय सुधारों को नहीं खोजा। मैं अचम्भित था कि प्रमुख आर्थिक सलाहकार को क्या हुआ। दूसरी तरफ मैं वित्त मंत्री के दावों का स्मरण करता हूं। 
1. 2006-16 की अवधि के दौरान हमने गरीबी से 271 मिलियन लोगों को बाहर निकाला। 
2. 2022 तक हम किसानों की आय दोगुनी कर देंगे। 
3. स्वच्छ भारत एक महान सफलता है तथा पूरा देश खुले में शौच रहित हो गया है। 
4. हमने हर घर में बिजली पहुंचाई। 
5. हम भारत को 2024 तक 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था वाला देश बनाएंगे (हालांकि आर्थिक सर्वे ने चुपके से इस डैडलाइन को 2025 तक धकेल दिया)। 

बजट भाषण तथा बजट आंकड़ों से हटकर यह बात कहनी चाहिए कि भाजपा ने अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित करने का विचार ही छोड़ दिया। साथ ही साथ इसने वृद्धि दर में तीव्रता लाने, प्राइवेट निवेश, योग्यता बढ़ाने, नौकरियां उत्पन्न करने तथा वल्र्ड ट्रेड का बड़ा हिस्सा जीतने का विचार भी त्याग दिया। इसलिए आप सब अपने आपको ऐसी अर्थव्यवस्था के लिए तैयार करें जो 2020-21 में असंतोषजनक वाली वृद्धि दर देखे। मैं जानता हूं कि आप इसके लायक नहीं। मगर आपने जो कल देखा, उसके लिए मैं चिंतित हूं। निश्चित तौर पर निर्मला सीतारमण प्याज की महंगाई को भूल गईं।-पी. चिदम्बरम

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!