क्या सरकार को अपने सांसदों पर भरोसा नहीं

Edited By ,Updated: 31 Oct, 2019 01:18 AM

does the government not trust its mps

यूरोपीय संसद के 27 सदस्यों को भारत सरकार द्वारा कश्मीर घाटी का दौरा करने की इजाजत देने पर कई लोगों की भौंहें तन गई हैं और यह विशेष तौर पर इसलिए भी ङ्क्षचता का विषय है क्योंकि 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बाद से अब तक...

यूरोपीय संसद के 27 सदस्यों को भारत सरकार द्वारा कश्मीर घाटी का दौरा करने की इजाजत देने पर कई लोगों की भौंहें तन गई हैं और यह विशेष तौर पर इसलिए भी ङ्क्षचता का विषय है क्योंकि 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बाद से अब तक भारतीय सांसदों को भी इस क्षेत्र में जाने की इजाजत नहीं दी गई है। 

घाटी में लगभग 3 माह से बंद जैसी स्थिति है हालांकि अनुच्छेद 35-ए को हटाने और प्रदेश को तोड़ कर दो केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के बाद लगाए गए प्रतिबंधों में से कुछ में ढील दी गई है। सरकार को यहां लैंडलाइन सेवाएं बहाल करने में लगभग 2 माह का समय लगा जिसके बाद मोबाइल सेवाओं पर लगे प्रतिबंधों को भी हटा लिया गया। इसके बावजूद अभी तक स्थानीय लोगों की पहुंच इंटरनैट और सोशल साइटों जैसे कि व्हाट्सएप तक नहीं हुई है। यहां पर एक तरफा जनता कफ्र्यू लगा हुआ है, जिसके तहत लोग स्वयं ही अपने क्षेत्रों से बाहर नहीं आ रहे हैं। दुकानें भी प्रतिदिन केवल कुछ घंटों के लिए ही खुलती हैं तथा सरकार द्वारा शैक्षणिक संस्थाओं को खोलने की घोषणा के बावजूद लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। 

विपक्षी सांसदों को नहीं मिली थी इजाजत 
सभी विपक्षी दल सरकार से यह मांग करते रहे हैं कि उन्हें घाटी में जाने और लोगों से बातचीत करने की इजाजत दी जाए ताकि वे केन्द्र सरकार के हालात सामान्य होने के दावों की जांच कर सकें। इन पार्टियों के सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल को श्रीनगर एयरपोर्ट से वापस भेज दिया गया था और उन्हें एयरपोर्ट से बाहर कदम रखने की इजाजत नहीं दी गई थी। इसके अलावा अपने स्तर पर जम्मू-कश्मीर जा रहे कई सांसदों को भी अनुमति नहीं दी गई थी। नैशनल कांफ्रैंस और पी.डी.पी. के सभी प्रमुख नेता जैसे कि पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला अभी भी अपने घरों में नजरबंद हैं। इन्हीं सब बातों को देखते हुए यूरोप के सांसदों को घाटी का दौरा करने की इजाजत देना काफी आश्चर्यजनक है। इससे पता चलता है कि सरकार को अपने ही सांसदों पर भरोसा नहीं है जो जनता के प्रतिनिधि हैं और उन्हें घाटी का दौरा करने का पहला अधिकार मिलना चाहिए था। 

स्थानीय लोगों को साथ लेकर चलना जरूरी
यदि वर्तमान गतिरोध को समाप्त करना है तो यह राजनीतिक प्रक्रिया और स्थानीय लोगों की भागीदारी से ही सम्भव हो सकता है। किसी भी क्षेत्र या लोगों को केवल बल के आधार पर अपने अधीन नहीं किया जा सकता है। इस क्षेत्र में हालात सामान्य बनाने का एक ही तरीका है और वह है आम लोगों को अपने साथ जोडऩा। नैशनल कांफ्रैंस, पी.डी.पी. तथा कांग्रेस जैसी बड़ी राष्ट्रीय पाॢटयों ने ब्लाक स्तरीय चुनावों का बायकाट किया था, इसके बावजूद सरकार द्वारा इन चुनावों को थोपा जाना उचित नहीं है। घाटी में मतदान बहुत कम रहा। इससे मतदान करने वाले स्थानीय लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ा। ऐेसे हालात में आम लोगों को ही खामियाजा झेलना पड़ता है। जो लोग मतदान करने के लिए नहीं जाते उन्हें सुरक्षा बल संदेह की दृष्टि से देखते हैं और जो वोट डालेंगे वे आतंकियों के निशाने पर आएंगे। 

आधिकारिक यात्रा नहीं
सरकार ने यूरोप के इन सांसदों को घाटी में जाने की इजाजत दी है जबकि एक हफ्ता पहले ही एक अमरीकी सीनेटर को इस बात की इजाजत नहीं दी गई थी। इस बीच विश्लेषकों ने एक अजीब संयोग की ओर इशारा किया कि इस प्रतिनिधिमंडल के 27 में से 22 सांसद यू.के., फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैंड, चैक गणराज्य और स्लोवाकिया के दक्षिणपंथी दलों से संबंधित हैं। ये लोग आमतौर पर आप्रवासी विरोधी कानूनों के पक्षधर रहे हैं और उन्होंने ब्र्रैग्जिट का समर्थन किया था। ये लोग भारत की आधिकारिक यात्रा पर नहीं हैं बल्कि एक गैर-सरकारी संगठन के निमंत्रण पर यहां आए हैं। 

इस प्रतिनिधिमंडल में इन लोगों के शामिल होने के कारण ही सी.पी.एम. नेता सीताराम येचुरी ने यह कहा कि यह समूह फासीवादी दक्षिणपंथी पार्टियों से संबंधित है, जिनके भाजपा से संबंध हैं। उन्होंने कहा कि यह घटक इस बात का उत्तर है कि मोदी सरकार ने विपक्षी सांसदों को घाटी का दौरा करने की अनुमति क्यों नहीं दी। 

हालांकि यह बात समझ में आती है कि शुरू में घाटी में प्रतिबंध लगाना इसलिए जरूरी था क्योंकि पाकिस्तान वहां देश विरोधी तत्वों के माध्यम से हिंसा फैला सकता था लेकिन घाटी में सामान्य हालात बहाल करने के लिए 3 माह का समय काफी लम्बी अवधि है। सरकार ने लोगों की भावनाओं को शांत करने और स्थानीय लोगों में भरोसा कायम करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। घाटी में सामान्य हालात बहाल करने के लिए सरकार के पास स्थानीय प्रतिनिधियों को शामिल करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। उसे सभी दलों के चुने हुए प्रतिनिधियों को भी विश्वास में लेना चाहिए।-विपिन पब्बी

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