काले धन से लहलहाती है देशी राजनीति की फसल

Edited By ,Updated: 03 Feb, 2017 12:45 AM

domestic politics is fertile crop of black money

वित्तमंत्री अरुण जेतली ने 2017 के बजट में राजनीतिक चंदे पर नकेल कसी है। उन्होंने  घोषणा की है कि अब कोई राजनीतिक दल 2000 रुपए से अधिक डोनेशन..

वित्तमंत्री अरुण जेतली ने 2017 के बजट में राजनीतिक चंदे पर नकेल कसी है। उन्होंने  घोषणा की है कि अब कोई राजनीतिक दल 2000 रुपए से अधिक डोनेशन कैश में नहीं ले सकेगा। डोनेशन हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों को चैक या डिजीटल मोड को अपनाना होगा।

अब राजनीतिक दलों को 2000 रुपए से ज्यादा के चंदे का हिसाब चुनाव आयोग को देना पड़ेगा। इसके साथ ही राजनीतिक दलों को डिजीटल पेमैंट अपनाने पर भी कई प्रकार की छूट मिलेगी। खास बात यह है कि डोनर्स अपनी गोपनीयता को बनाए रखने के लिए राजनीतिक दलों को बांड के रूप में डोनेशन दे सकते हैं। बता दें कि इससे पहले राजनीतिक दल 20,000 रुपए तक चंदा नकद में ले सकते थे। इस चंदे का हिसाब चुनाव आयोग को नहीं देना होता था।

गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से देश में काले धन के खिलाफ छेड़ी गई जंग के बीच राजनीतिक दलों को बेनामी स्रोतों से मिलने वाले चंदे का मुद्दा  प्रमुखता से उठा है। अतीत में सुना गया था कि भारतीय निर्वाचन आयोग ने नकद चंदे की सीमा 20,000 से घटाकर 2,000 रुपए करने की सिफारिश की है। आयोग ने इसके लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 में संशोधन करने का सुझाव भी दिया था। फिलहाल, राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा आयकर अधिनियम-1961 की धारा 13(ए) के अंतर्गत आता है। इसके तहत पार्टियों से 20,000 रुपए से कम के नकदी चंदे का स्रोत नहीं पूछा जा सकता।

यह आम धारणा है कि उपरोक्त प्रावधान का उपयोग कर राजनीतिक पार्टियां काले धन को चंदे के रूप में प्राप्त करती हैं। उल्लेखनीय है कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाला 80 से 85 फीसदी चंदा 20,000 से कम की रकम में होता है। इसके स्रोत के तौर पर अनाम कार्यकर्ताओं का उल्लेख कर दिया जाता है। कुछ रोज पहले राजनीतिक चंदे में काले धन के समावेश का यह मुद्दा राजस्व सचिव हसमुख अधिया के एक बयान से उठा था। उनके बयान से यह 
भ्रम बना था कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे को लेकर सरकार ने नई छूट दी है।

जब इस पर विवाद खड़ा हुआ तो यह स्पष्ट किया गया कि कराधान संशोधन कानून के तहत राजनीतिक दलों को कोई छूट या विशेषाधिकार नहीं दिया गया है। वित्त मंत्री ने भी तब कहा था कि नोटबंदी के बाद राजनीतिक दलों को छूट देने का कोई नया नियम नहीं बनाया गया है।
एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉर्म की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के राजनीतिक दलों की कमाई का 70 फीसदी हिस्सा बेनामी स्रोतों से आता है और इसकी जानकारी पार्टियां न तो इन्कम टैक्स डिपार्टमैंट को देती हैं और न ही चुनाव आयोग को।

टैक्स मामलों के जानकारों की मानें तो राजनीतिक पार्टी इसी छूट के जरिए चंदे के खेल में भारी गड़बड़ी करती है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 सालों के अंदर राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों की बेनामी कमाई में 313 फीसदी का ग्रोथ हुआ है। 2005-06 में सभी राजनीतिक पार्टियों की कुल कमाई 274 करोड़ रुपए थी जो 2014-16 में बढ़कर 1,131 करोड़ रुपए हो गई है।

रिपोर्ट में राजनीतिक दलों की कुल घोषित आय 11,367.34 करोड़ रुपए बताई गई है जिसमें से 7,832.98 करोड़ रुपए की आय का जरिया अघोषित है। इतना ही नहीं, अधिकतर क्षेत्रीय पार्टियों ने 2004-05 से अपने चंदे की रिपोर्ट ही जमा नहीं की है। दबंग लहजे में कहा जाए तो काले धन से ही देशी राजनीति की फसल लहलहाती है।

कुछ समय से समाज के एक हिस्से से यह बात बार-बार उठाई जा रही थी कि आखिर ऐसे नए नियम क्यों नहीं बनाए जा रहे हैं, जिनसे राजनीति में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगे? नोटबंदी के साथ जब आम आदमी के धन की बारीकी से जांच की जा रही है, तब राजनीतिक चंदे के मामले में पुराने चलन को क्यों कायम रखा जा रहा है?

इस राय से शायद ही कोई असहमत होगा कि इस समय राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा भारत में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार का एक प्रमुख स्रोत है। अत: नोटबंदी से शुरू की गई मुहिम की कामयाबी के लिए सरकार के लिए यह भी जरूरी था कि इस बारे में अविलंब पूरी पारदर्शिता लाई जाए। भविष्य में राजनीतिक दलों के खर्च की सीमा पर नकेल और कसने की आवश्यकता है। आने वाले वर्षों में इंटरनैट आधारित वोटिंग प्रणाली इसमें मदद कर सकती है। 

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