भगवान के नाम पर राजनीति न करें

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2024 06:28 AM

don t do politics in the name of god

अयोध्या में 22 जनवरी को हुई प्राण प्रतिष्ठा के लिए तिरुपति तिरुमाला मंदिर से भेजे गए लड्डुओं में सूअर की चर्बी, बीफ-टैलो और फिश ऑयल की मिलावटखोरी का मामला सुर्खियों में है। खाद्य पदार्थों की बिक्री करने वाले प्रतिष्ठानों पर मालिकों व सेवादारों के...

अयोध्या में 22 जनवरी को हुई प्राण प्रतिष्ठा के लिए तिरुपति तिरुमाला मंदिर से भेजे गए लड्डुओं में सूअर की चर्बी, बीफ-टैलो और फिश ऑयल की मिलावटखोरी का मामला सुर्खियों में है। खाद्य पदार्थों की बिक्री करने वाले प्रतिष्ठानों पर मालिकों व सेवादारों के विषय में जानकारी सार्वजनिक करने का दूसरा मामला भी मिलावट से ही जुड़ा है। इन दोनों मामलों में राजनीति जमकर हो रही है। समस्या दूर करने के बदले राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजनीति से भगवान को दूर ही रखें।

देश में मिलावटखोरी का गोरखधंधा बेखौफ चल रहा है। इसमें आस्था का तड़का लगने से व्यंजन जायकेदार हो गया है। अपना देश दुग्ध उत्पादन के मामले में दुनिया भर में सभी को पीछे छोड़ चुका है। औसतन 15 करोड़ लीटर दुग्ध उत्पादन प्रतिदिन पशुओं से होता है। इतनी ही मात्रा मिल्क पाऊडर से बने दूध की है। लेकिन प्रतिदिन दूध की खपत 65 करोड़ लीटर होती है। इससे स्पष्ट है कि आधी से ज्यादा खपत नकली दूध की है। आस्था के नाम पर मिलावटखोरी के खिलाफ उद्वेलित वर्ग इस सच्चाई से पहले से ही वाकिफ है। 

इस सक्रियता के कारण यदि मिलावट के इस गोरखधंधे से देश को मुक्ति मिले तो बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। राजनीतिक जमात और धर्माचार्यों का यह समीकरण देश को मिलावटी खाद्य पदार्थों से मुक्ति दिलाएगा अथवा ध्रुवीकरण की राजनीति का यह अगला पैंतरा साबित होगा, इस पर दावे से कुछ कह पाना आसान नहीं है। खाद्य पदार्थों व दवाइयों में मिलावट की समस्या लगातार बढ़ रही है। धीमे जहर के इस कारोबार पर रोक लगाने के लिए सात दशक पहले कानून बनाया गया था। फिर इसमें संसद कई संशोधन भी करती है। आज इस अपराध के दोषियों के लिए छह महीने की कैद व एक हजार रुपए का जुर्माना भी वसूलने का प्रावधान है। 

असम, बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में मिलावटखोरी के अपराधियों के लिए उम्र कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। परंतु कठोर कानून से मिलावट का यह धंधा इन पांच प्रदेशों में बंद हो गया हो, ऐसी कोई बात नहीं है। इतनी बात अवश्य हुई कि इन मामलों में प्रशासन की उगाही बढ़ी है। लोक समाज की सक्रियता के बिना कानून और प्रशासन के बूते इस समस्या से पार पाना मुमकिन नहीं है। विश्व प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम में दर्शन के लिए औसतन 87 हजार भक्त प्रतिदिन आते हैं। इन्हें प्रसाद के रूप में लड्डू दिया जाता है। इसके लिए प्रतिमाह 42 हजार किलो ‘शुद्ध देसी घी’ खरीदा जाता है। देवस्थानम ने 319.80 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से ‘शुद्ध देसी घी’ की सप्लाई करने वाली कम्पनी ए.आर. फूड सप्लाई प्राइवेट लिमिटेड के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की है। 

वैदिक घी के नाम से केसरिया फर्म इसे 699 रुपए  प्रति किलो व पतंजलि आयुर्वेदा गाय घी 665 रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में आज बेच रही हैं। गांव के किसान 750 रुपए से 800 रुपए प्रति किलो की दर से देसी घी बेच रहे हैं। मंदिर ट्रस्ट द्वारा आज भी कई जगह से 20 से 30 रुपए प्रति लीटर की दर से गाय और भैंस का दूध खरीदा जा रहा है। क्या इन्हें पता नहीं है कि यह श्रद्धालु और भक्त के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़  है? यदि इन प्रतिष्ठित मठों-मंदिरों में यह पाप स्वीकार्य नहीं होता तो इतनी शीघ्रता से शुद्धिकरण का मार्ग भी नहीं निकल पाता। चुटकी बजाते ही समस्या छूमंतर करने वाले धर्माचार्यों ने बड़ी आसानी से गंगा जल से धो-पोंछ कर समस्या दूर कर दी है। शुद्धिकरण का मार्ग प्रशस्त करने वाले इन धर्माचार्यों ने इस गोरखधंधे में अप्रत्यक्ष सहमति व्यक्त की है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि ऐसे ‘शुद्ध देसी घी’ का प्रयोग कर बनाए गए लड्डुओं के प्रसाद का इस्तेमाल तिरुपति देवस्थानम में धड़ल्ले से हो रहा है। क्या श्रद्धालुओं और भक्तों की अप्रत्यक्ष सहमति के बगैर ऐसा संभव है? यहां गौर करने की बात है कि आस्था के इस कारोबार में लगे धर्माचार्य तो भक्तों को मुक्ति का मार्ग बताते हुए त्रिशंकु बनाने से भी नहीं चूकते हैं। 

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड और भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफ.एस.एस.ए.आई.) दूध और दुग्ध उत्पादों की तत्काल जांच के लिए इलैक्ट्रॉनिक किट के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करते हैं। इन उपकरणों की मदद से उपयोग से पहले ही आसानी से गुणवत्ता परीक्षण मुमकिन है। लेकिन औने-पौने दाम पर खरीद करने वाले ऐसा करने के लिए नैतिक रूप से समर्थ नहीं हैं। इसलिए किसी सप्लायर की अपेक्षा मंदिर के प्रबंधक जिम्मेदार होते हैं। इस केस में तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम से बड़ा दोषी कोई सप्लायर नहीं माना जा सकता। तिरुपति मंदिर का प्रबंधन राज्य सरकार करती है। देश भर में हजारों ऐसे मंदिर हैं जिनका प्रबंधन राज्य सरकार के अधीन है। जिन मंदिरों में राज्य की कोई दखलअंदाजी नहीं है, उनकी दशा भी ऐसी है। मिलावटखोरों को धर्माचार्यों की मदद से ईश्वर की कृपा प्राप्त हो रही है। धर्म की मर्यादा का पालन करने वाले आचार्य अब मिठाइयों के बदले फल और मेवा प्रसाद के रूप में प्रयोग करने लगे हैं।-कौशल किशोर
 

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