संसद का बहुमूल्य समय व्यर्थ न गंवाएं

Edited By ,Updated: 11 Aug, 2022 04:38 AM

don t waste the valuable time of parliament

संसद का एक और सत्र प्रदर्शनों और निलंबनों की भेंट चढ़ गया। हालांकि यह कार्रवाई की कमी के चलते 4 दिन पूर्व ही स्थगित हो गया। संसद में बिलों पर चर्चा या विचार-विमर्श पर शायद...

संसद का एक और सत्र प्रदर्शनों और निलंबनों की भेंट चढ़ गया। हालांकि यह कार्रवाई की कमी के चलते 4 दिन पूर्व ही स्थगित हो गया। संसद में बिलों पर चर्चा या विचार-विमर्श पर शायद ही कोई समय खर्च हो। इसके अलावा नागरिकों से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी विचार-विमर्श न हो सका। 

लोकसभा मात्र 44.5 घंटे ही चल सकी जोकि 17वीं लोकसभा में सबसे कम कार्रवाई वाला सत्र रहा। पिछला मानसून सत्र मुश्किल से 21 घंटे चल सका। राज्यसभा में 38 घंटों के लिए कार्रवाई चली। संसद ने 5 बिलों को क्लीयर किया तथा सबसे ज्यादा इंतजार किया जाने वाला डाटा गोपनीयता बिल को सरकार ने आगे बढ़ाया। यह कार्रवाई भी सत्र के अंतिम दौर में ही पाई जा सकी क्योंकि सत्र के शुरूआती  दिन शोर-शराबे तथा प्रदर्शनों में गुजर गए। 

विपक्षी पार्टियों ने मूल्यवृद्धि जोकि एक महत्वपूर्ण वैध मुद्दा था, पर चर्चा करनी चाही मगर प्रिजाइडिंग ऑफिसर्ज सरकार के दिशा-निर्देशों के चलते इस पर कोई कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं थे और न ही उनका मन था। राज्यसभा में कुल 19 सदस्य निलंबित हुए और लोकसभा में 4, यह सब सत्रों के दौरान मूल्य वृद्धि तथा मुद्रास्फीति को लेकर हुए प्रदर्शनों के चलते हुआ। ज्वलंत मुद्दों पर विचार करने के लिए समय का आबंटन इस तरह से ही नकार दिया गया जिससे संसाधनों और समय की बर्बादी हुई। 

एक और बात जो गंभीर विषय है वह यह कि पिछले 2 वर्षों से ज्यादा समय के लिए सदनों में पहले से ही स्थगित हुए बिल तथा अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए बहुत कम समय आबंटित हुआ। एक ऐसा समय भी था जब महत्वपूर्ण बिलों को विचार के लिए आगे बढ़ाया जाता था ताकि सभी बिंदुओं पर विचार किया जा सके और उन पर सुनवाई हो सके। 

ऐसा भी संसद में देखा जाता था कि संबंधित मंत्री उन सब मुद्दों को नोट करता था जो विपक्षी दलों के सदस्यों द्वारा उठाए जाते थे। कुछ वर्षों से संसद की कार्रवाई गिरती जा रही है। संसद के पहले 2 दशकों में 1952 में देश के पहले आम चुनावों के बाद 120 घंटे की कार्रवाई देखी गई। लोकसभा की प्रति वर्ष 120 घंटे और राज्यसभा की कार्रवाई 97 घंटे चली। यह सब आधिकारिक आंकड़ों के तौर पर दर्ज है। 

1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के बाद यह पैट्रन बदल गया। इसमें आगे चल कर गिरावट आती ही गई। हालांकि पिछले 2 दशकों से ज्यादा समय से संसद की कार्रवाई में नाटकीय ढंग से तेजी से गिरावट देखी गई। वर्ष 2000 से 2021 के समय में लोकसभा में औसतन 68 दिन कार्रवाई हुई जबकि राज्यसभा की कार्रवाई इसी समय के दौरान औसतन 67 दिन प्रति वर्ष रिकार्ड की गई। एक अन्य ध्यान देने योग्य और दुर्भाग्यपूर्ण ट्रैंड यह रहा कि दोनों सदनों द्वारा पास किए गए बिलों की गिनती में धीरे-धीरे गिरावट आई है। 13वीं लोकसभा में जबकि 302 बिल पास हुए और 14वीं लोकसभा में 261, वहीं 15वीं लोकसभा के दौरान 192 बिलों को पारित किया गया। 16वीं लोकसभा में 205 बिलों को पारित किया गया। 

दूसरी ओर बिना विचार-विमर्श और बहस वाले अध्यादेशों को लाने में बढ़ौतरी हुई। 2018 में 9 अध्यादेशों के विपरीत, 2019 में 16 अध्यादेश लाए गए। पिछले वर्ष 15 अध्यादेशों को देखा गया। हम यह छाती ठोक कर दावा करते हैं कि हमारा लोकतंत्र बेहद मजबूत और शानदार है जबकि इसके विपरीत संसद की पवित्रता सिकुड़ती जा रही है। हालांकि आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। मगर एक बार सरकार द्वारा यह माना गया था कि सत्र के दौरान संसद को चलाने हेतु प्रति मिनट की लागत 2.5 लाख रुपए पड़ती है। 

विडम्बना देखिए यह आंकड़ा कांग्रेस सरकार द्वारा 2012 में उपलब्ध करवाया गया, जब दोनों सदनों की कार्रवाई भाजपा सदस्यों द्वारा अवरुद्ध की गई थी। अब भूमिकाएं बदल गईं जैसे कि सरकार बदली। मगर तथ्य वही रहे। दोनों सदनों को चलाने की लागत पिछले 10 वर्षों के दौरान बढ़ी है। यह संसद के सदस्यों के साथ-साथ पीठासीन अधिकारियों का कत्र्तव्य है कि यह यकीनी बनाएं कि संसद का समय बहुमूल्य है और इसका उपयोग सही ढंग से किया जाए।-विपिन पब्बी
 

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!