खुराक-पानी-वायु तीनों ‘दूषित’ हो चुके

Edited By ,Updated: 19 Mar, 2020 04:48 AM

dose water air all three are contaminated

प्रदूषण क्या है? वातावरण, जलवायु तथा भूमि यह सब प्राकृतिक रचना है, मगर प्राकृतिक पदार्थों में अगर हानिकारक अप्राकृतिक पदार्थों का मिश्रण होना शुरू हो जाए तो प्राकृतिक पदार्थ दूषित होने शुरू हो जाते हैं जो जीवन के लिए घातक सिद्ध होने लगते हैं।...

प्रदूषण क्या है? वातावरण, जलवायु तथा भूमि यह सब प्राकृतिक रचना है, मगर प्राकृतिक पदार्थों में अगर हानिकारक अप्राकृतिक पदार्थों का मिश्रण होना शुरू हो जाए तो प्राकृतिक पदार्थ दूषित होने शुरू हो जाते हैं जो जीवन के लिए घातक सिद्ध होने लगते हैं। प्रदूषण का इतिहास उस दिन से शुरू हो गया था जब मनुष्य ने आग जलानी सीख ली थी। वह उसे जंगलों तथा गुफाओं में ले गया। गुफाओं में जहां रोशनी कम और हवा का आदान-प्रदान नाममात्र था, वहां कई बार आदमी धुएं और प्राण वायु (आक्सीजन) की कमी के कारण अपने जीवन से हाथ धो बैठे, जिनके कंकालों की वैज्ञानिकों ने खोज की और उन गुफाओं के भीतर धुएं की जमी कालिख से वैज्ञानिकों ने मानव इतिहास के प्रारम्भिक प्रदूषण के प्रभाव को सही मान लिया है। 

दूसरी उदाहरण है इंगलैंड की, जहां 1225 ई. के लगभग कुछ लोगों ने सर्दी के प्रकोप से बचने के लिए लकडिय़ों को आग लगाई और वे रात को उसी आग के इर्द-गिर्द सो गए। अगले दिन सुबह कुछ लोग मृत पाए गए और कुछ बेहोश। दूसरे दिन नजदीकी गांव के लोगों ने देखा कि कुछ लोग इधर-उधर पड़े थे और धरती जल रही थी। लोग हैरान थे कि बिना ईंधन या लकड़ी के वहां इतनी आग कैसे जल रही थी। इसका कारण था कि धरती के तल में पत्थर का कोयला था जो जलना शुरू हो गया और उससे पैदा हुई कार्बन-डाइआक्साइड से प्रभावित हो कुछ लोग मारे गए और कुछ बेहोश हो गए। ऐसे हादसे आगे 50 सालों तक होते रहे और अंत में वहां के बादशाह एडवर्ड प्रथम ने 1272 ई. में कोयले के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। इस उपरांत जब 1725 ई. में औद्योगिक क्रांति का आरम्भ हुआ तो ऊर्जा के लिए ईंधन की आवश्यकता पड़ी। तब लकड़ी जो कम उपलब्ध थी की जगह पत्थर का कोयला इस्तेमाल होने लगा। जब भाप इंजन इजाद हुआ तो कोयले की खपत और बढ़ गई। इससे पहले जो प्रदूषण की मात्रा होती थी, वह प्राकृतिक तौर पर प्रकृति द्वारा समेट ली जाती थी, मगर अब वातावरण में प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाने के कारण वायुमंडल प्रभावित होने लगा। 

इसके साथ-साथ उद्योग शहरों में स्थापित होने लगे जिनके लिए मजदूरों की जरूरत थी जिसके कारण बड़ी तेजी से शहरीकरण होना शुरू हुआ। जिससे शहरों की आबादी जोरों से बढ़ गई। औद्योगिक क्रांति यूरोप से आरम्भ हुई और यूरोप में इसका महा केन्द्र लंदन था। बड़ी मात्रा में मल-मूत्र तथा कूड़े को सम्भालना भारी समस्या बन गया। तब तक किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया जब 1858 ई. में लंदन को महा बदबू भरी गंदगी के गढ़ का नाम दे दिया गया। 

लंदन टेम्ज नदी के किनारे बसा है और वहां का सारा मल-मूत्र तथा कूड़ा उसी नदी में सीधा डाला जा रहा था। जैसे आज के समय हमारे भारत में गंगा-यमुना और सभी नदियों में सीवरेज की गंदगी को सीधा डाला जा रहा है। 1858 में वहां का पानी, धरती तथा वायुमंडल सभी अत्यंत दूषित हो चुके थे जिसके कारण प्लेग, गलघोटू, हैजा, दस्त, एलर्जी जैसी अनेक बीमारियां शहरों, देश-विदेशों में फैलने लगीं। मगर वहां अंग्रेजों ने जल्द ही इसका वैज्ञानिक हल निकाल लिया और 1872 तक उन्होंने सीवर सिस्टम का प्रयोग आरम्भ कर अपनी नदियों तथा दूसरे जल स्रोतों को दूषित होने से बचा लिया। मगर कोयले का प्रदूषण और घोड़े जो उस समय आवाजाही के आम साधन थे इन पशुओं के मल-मूत्र को समेटना भी एक बड़ी समस्या थी। 

तेल की खोज के उपरांत कोयले का उपयोग घटने लगा और लोगों ने सोचा कि खनिज तेल से प्रदूषण कम फैलता है क्योंकि उससे धुआं नाममात्र पैदा होता था। मगर मोटर गाडिय़ां आईं तो इतिहासकार मार्टिन मैलोसी ने यह दर्ज किया कि घोड़ों की बजाय मोटर गाडिय़ां सफाई का सर्वश्रेष्ठ नमूना हैं। मगर मोटर गाडिय़ों की बढ़ चुकी संख्या के कारण आज वहां गाडिय़ां प्रदूषण का कारण बन चुकी हैं। दिल्ली में आड-ईवन के नम्बर के आधार पर सड़कों पर गाडिय़ों की संख्या कम करने के प्रयोग किए जा रहे हैं। जिन साधनों को मनुष्य ने जीवन की उन्नति के लिए पैदा किया और खुशहाली पैदा करनी चाही, आज उन्हीं साधनों से पैदा होते प्रदूषण ने मानवीय जीवन के लिए जानलेवा समस्याएं पैदा कर दी हैं। 

जीवन के लिए तीन अति आवश्यक पदार्थ हैं-खुराक (खाना), पानी तथा वायु, मगर दुख की बात है कि यह तीनों पदार्थ अति दूषित हो चुके हैं। खुराक दूषित होने के कारण शारीरिक रोग पैदा हो रहे हैं। दूषित पानी नए रोगों के कीटाणुओं तथा हानिकारक खनिजों का वाहक बन चुका है। देश की नदियां तथा जल के अन्य स्रोत केवल दूषित ही नहीं गंदे नालों में परिवर्तित हो चुके हैं। तीसरा, वातावरण और सांस लेने के लिए प्राण वायु यह भी गम्भीर समस्या बन चुकी है। मुख्यत: वायुमंडल को प्रभावित करने वाली है ऊर्जा की खपत। इसमें कोयला, खनिज, तेल, अन्य ईंधनों का प्रयोग तथा कूड़े के गलने-सडऩे और उसके रिसाव से हानिकारक कीटाणु और गैसिज पैदा होती हैं। 

हमारे शहर आज कूड़े के ढेर पर बैठे हैं। देश में प्रदूषण के मुख्यत: तीन बड़े कारण हैं (1) जरूरत से अधिक गाडिय़ां जिनमें खनिज तेलों की खपत और उनसे पैदा होता अदृश्य प्रदूषण जिससे वायुमंडल प्रदूषित हो चुका है। (2) शहरी कूड़ा, जिसका अभी तक पूरे देश में कहीं भी प्रबंध नहीं किया जा सका। (3) पूरे देश में जो सीवरेज सिस्टम डाले गए हैं, वे आमतौर पर सही नहीं डाले गए और जगह-जगह लोगों का मल-मूत्र पानी में घोल की शक्ल में जमीन के नीचे की पाइपों से उछल कर सड़कों व गलियों पर आ जाता है। कुछ समय के पश्चात वह पानी सूख जाता है मगर सीवरेज के पानी में जो मल घुला होता है वह सड़क या गली कूचों के तल पर पड़ा धूल कणों की शक्ल धारण कर लेता है और गाडिय़ों की रफ्तार के कारण वह हवा में उड़ जाता है जो हवा में मिलकर हमारी सांस के साथ शरीर में पहुंचता है और भयानक रोग पैदा करता है। यहां मैंने कारण बताए हैं और इस लेख की अगली कडिय़ों में इन प्रदूषणों का हल कैसे हो, बारे लिखूंगा।-हुसन-उल-चराग तथा पी.एस. भट्टी

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