कृषि कानूनों को लेकर ‘शंकाएं और समाधान’

Edited By ,Updated: 30 Sep, 2020 02:27 AM

doubts and solutions  regarding agricultural laws

सारा देश हतप्रभ होकर देख रहा था कि किस तरह राज्यसभा में विवादास्पद कृषि विधेयकों को पारित करने के लिए विपक्ष के मत-विभाजन की मांग की अनदेखी की गई। विरोध और असहमति के सभी स्वरों को ‘म्यूट’  करते हुए ,पीठासीन उपसभापति ने सदन में आवश्यक बहुमत की...

सारा देश हतप्रभ होकर देख रहा था कि किस तरह राज्यसभा में विवादास्पद कृषि विधेयकों को पारित करने के लिए विपक्ष के मत-विभाजन की मांग की अनदेखी की गई। विरोध और असहमति के सभी स्वरों को ‘म्यूट’  करते हुए ,पीठासीन उपसभापति ने सदन में आवश्यक बहुमत की अनिश्चितता के भंवर में फंसी भाजपा सरकार की नाव को पार लगाने के लिए ध्वनि-मत का प्रयोग किया। 

5 जून, 2020 को केंद्रीय सरकार जब से आनन-फानन में इन 3 कृषि अध्यादेशों को कृषि क्षेत्र में आमूल परिवर्तन के अतिशयोक्तिपूर्ण दावों के साथ लेकर आई, अधिकांश किसान संगठन और यूनियनें इन अध्यादेशों के पुरजोर विरोध में सड़कों पर हैं। पिपली में इन काले कानूनों के विरोध में आयोजित किसानों के अहिंसक और शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज और बल प्रयोग कर हरियाणा सरकार व प्रशासन ने अपना संवेदनशून्य और क्रूर चेहरा नुमाया किया है। इन विधेयकों की आकर्षक साज-सज्जा और मीडिया का इनके पक्ष में धुआंधार प्रचार इनमें निहित किसान विरोधी दुराग्रह छुपा नहीं पाए हैं। इन कानूनों के माध्यम से सरकार की कोशिश कार्पोरेट जगत के बड़े उद्योगपतियों, निर्यातकों, भंडारण व प्रसंस्करण कंपनियों को लाभ पंहुचाने की लगती है। इन विधेयकों के किसान विरोधी प्रावधान किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य, दूसरे अंकुश और संतुलन का सुरक्षा-कवच हटाकर उनको अवसर की समानता से वंचित कर देंगे, ऐसी आशंका है। 

इन विधेयकों में कृषि उत्पादों के ‘कृषि उपज विपणन समिति अधिनियम’ (ए.पी.एम.सी.ए.) में निर्धारित मंडियों में और आढ़तिया / कमीशन एजैंट के माध्यम से ही क्रय-विक्रय करने की बंदिशें हटाकर कृषि बाजार को खोलने के प्रावधान हैं। चूंकि, इन विधेयकों के प्रावधानों के तहत मंडी क्षेत्र से बाहर हुए कृषि व्यापार पर कोई मार्कीट फीस, उपकर या शुल्क नहीं वसूले जाएंगे जबकि ए.पी.एम.सी.ए. में निर्धारित मंडियों में ये बदस्तूर जारी रहेंगे,स्पष्ट है कि यह ए.पी.एम.सी.ए. के तहत स्थापित मंडियों को बंद करवाने की कवायद है। 

गौरतलब है कि मेरे मुख्यमंत्री रहते कृषि के लिए नए ठेका नियम बनाकर 9 अगस्त 2007 को अधिसूचना जारी की गई थी जिसमें तयशुदा फसलों का करार एम.एस.पी से नीचे न करने, खरीदार फर्मों द्वारा नकद या बैंक गारंटी द्वारा निश्चित प्रतिभूति राशि जमा करवाने जैसे किसान हितैषी प्रावधान थे, जिससे किसानों के शोषण पर लगाम लगी। दरअसल हमने जिस भी विचार- मंच से कृषि बाजार को खोलने की बात की, उसके केंद्र में किसान की फसलों के लिए एम.एस.पी. के सुरक्षा-चक्र देने की चिन्ता रही है । कुछ क्षेत्रों में यदि कृषि व्यवसाय को निजी क्षेत्रों के लिए खोलना आवश्यक है तो ऐसा ए.पी.एम.सी.ए. मंडी व्यवस्था, किसानों के लिए एम.एस.पी. या न्यूनतम समर्थन मूल्य का सुरक्षा-चक्र व गरीबों के लिए राशन-डिपो व्यवस्था को बरकरार रख कर होना चाहिए। इन विधेयकों के लागू होने से ये तमाम व्यवस्थाएं छिन्न-भिन्न करके किसान का खुले बाजार में शोषण होने का खतरा है जैसा 2006 में बिहार में हुआ। 

इन विधेयकों में शिकायत निवारण प्रणाली के तहत विवाद की स्थिति में पहले बातचीत से सुलह, समाधान न होने पर स्थानीय एस.डी.एम. और वहां से असंतुष्ट पक्षों द्वारा नियमों में निर्धारित वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के पास अपील/पुनरीक्षण दायर करने की व्यवस्था है। चूंकि, सरकारी अधिकारियों की स्वायत्तता न्यायिक अधिकारियों से कम होती है, इन विधेयकों में किसान को न्यायिक प्रक्रिया से वंचित करना, किसान के हित में नहीं है। दूसरे, आढ़तिया कृषि गतिविधियों व अन्य जरूरतों के लिए किसान को ऋण उपलब्ध करवाता है और फसल के समय किसान और सरकारी खरीद एजैंसियों के बीच एक पुल का काम करता है। इस प्रणाली में कोई खामियां हों इसको बिल्कुल खत्म करने की जगह कमियां दुरुस्त की जा सकती थीं। किसान-आढ़तिया के परपंरागत परस्पर विश्वास पर आधारित रिश्तों को देखते हुए कोई दूसरा बेहतर और भरोसेमंद विकल्प का प्रबंध होने तक यह व्यवस्था लागू रहनी चाहिए थी जिससे किसान को कोई परेशानी न हो। 

चूंकि, इस संशोधन के बाद अनाज, दलहन, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पाद की भरती बड़े निर्यातकों, प्रसंस्करण कंपनियों, बड़े व्यापारियों द्वारा बिना अधिक सरकारी पाबंदियों के बड़े पैमाने पर की जा सकेगी, जिससे इनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिलेगा, जिससे आम गरीब उपभोक्ता सर्वाधिक प्रभावित होंगे, क्योंकि अनाज, दालें, आलू और प्याज उनके रोजमर्रा के भोजन का हिस्सा हैं। राज्य सरकारों को मॉडल प्रारूप भेज कर, उनको विश्वास में लेकर, उनसे व्यापक विमर्श करने  की जगह सरकार ने कृषि क्षेत्र से संबंधित इन अध्यादेशों को सीधे ही जारी करके देश के संघीय ढांचे का क्षरण किया है। राज्यों की आर्थिक स्थिति, जो जी.एस.टी. के चलते पहले से ही खराब है, इन विधेयकों के लागू होने के बाद और खस्ताहाल हो जाएगी। 

एम.एस.पी. केंद्र का विषय है और इसके बारे में व्यापक कानूनी संशोधन भी केंद्र सरकार ही कर सकती है। इसलिए मेरा सुझाव है कि इन विधेयकों की त्रुटियां दूर करते हुए चौथा अध्यादेश भी लाया जाए, जिसमें इस बात की गारंटी हो कि किसानों को उनकी फसलों का स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों में वॢणत सी-2 फार्मूला ( जिसमें मजदूरी, कृषि गतिविधियों, पूंजीगत व्यय, भंडारण, ढुलाई, ब्याज व दूसरे आवश्यक खर्चे के वास्तविक आकलन पर 50प्रतिशत की बढ़ौतरी) पर आधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से किसी भी सूरत में कम नहीं होगा। अगर कोई व्यक्ति किसी किसान से उसकी फसल को एम.एस.पी. से नीचे खरीदता पाया गया तो उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करके कार्रवाई की जाएगी।-भूपेंद्र सिंह हुड्डा पूर्व मुख्यमंत्री हरियाणा

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