राष्ट्रीय एकता के ‘सूत्रधार’ डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

Edited By ,Updated: 06 Jul, 2020 02:35 AM

dr shyama prasad mookerjee the  architect  of national unity

आज 6 जुलाई को कृतज्ञ राष्ट्र भारतीय जनसंघ के संस्थापक, प्रखर राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जन्म जयंती मना रहा है। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन  भारत राष्ट्र की एकता और अखंडता को समर्पित

आज 6 जुलाई को कृतज्ञ राष्ट्र भारतीय जनसंघ के संस्थापक, प्रखर राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जन्म जयंती मना रहा है। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन  भारत राष्ट्र की एकता और अखंडता को समर्पित रहा। वे एेसे मुखर राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने राष्ट्रीय एकता के प्रश्नों पर कोई समझौता नहीं किया और अपनी बात को स्पष्ट रूप में जनता और सरकार के समक्ष रखा। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद डा. मुखर्जी को पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में बनने वाली अंतरिम सरकार में वाणिज्य व उद्योग मंत्री का दायित्व दिया गया। 8 अपै्रल 1950 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के मध्य ‘दिल्ली पैक्ट’ हुआ जिसे ‘नेहरू-लियाकत समझौता’ भी कहते हैं। इसमें तय किया गया कि दोनों राष्ट्र अपने-अपने यहां रहने वाले अल्पसंख्यकों के हितों का ख्याल रखेंगे। वस्तुत: यह एक असफल समझौता था, जिसके परिणाम पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों के लिए घातक सिद्ध हुए। 

डा मुखर्जी इस समझौते के खिलाफ थे। उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से महसूस किया कि यह एक असफल समझौता है और 8 अपै्रल 1950 को नेहरू मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया। ‘राष्ट्र प्रथम’ इस मूल मंत्र को अपने जीवन का ध्येय मानते हुए डा. मुखर्जी ने सत्ता के सुख को त्याग दिया। आज भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री ने इन्हीं आदर्शों का अनुसरण करते हुए भारतीय संसद में ‘नागरिकता संशोधन विधेयक’ को पास कराकर ‘नागरिकता संशोधन एक्ट’ के रूप  में स्थापित कर पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक शरणाॢथयों को नागरिकता देने का प्रावधान कर डा. मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। 

सरकार से त्याग पत्र देने के बाद डा. मुखर्जी ने 1951 में एक नए राजनैतिक दल भारतीय जनसंघ का गठन किया जिसका उद्देश्य भारतीय राजनीति में शुचितापूर्ण आदर्शों और राष्ट्रवाद के मूल्यों के साथ भारत को एक समृद्ध, सशक्त, सम्पन्न राष्ट्र के रूप  में स्थापित करना था। भारत की स्वतंत्रता के बाद जब भारत संघ में देशी रियासतों के विलय की प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य के संदर्भ में धारा 370 का प्रावधान कर जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। डा. मुखर्जी ने धारा 370 के प्रावधान का विरोध किया तथा इसे भारतीय एकता व अखंडता के लिए खतरा बताया। जनसंघ के बैनर तले धारा 370 की समाप्ति हेतु उन्होंने देशव्यापी आंदोलन चलाया। डा. मुखर्जी ने इस प्रावधान को भारत के ‘बाल्कनाइजेशन’ की संज्ञा दी। 

इस प्रावधान का मुखर विरोध करते हुए उन्होंने नारा दिया कि ‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।’ वे जम्मू-कश्मीर में ‘सदर-ए -रियासत एवं प्रधानमंत्री जैसे पदों का भी विरोध करते थे। 11 मई 1953 को डा. मुखर्जी ने धारा 370 की समाप्ति को लेकर सत्याग्रह किया और बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर में घुसने का प्रयास किया। डा. मुखर्जी को लखनपुर के पास से गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया, जहां उनकी रहस्यमयी परिस्थितियों में 23 जून 1953 को मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु आजतक एक रहस्य ही बनी हुई है। उनकी मृत्यु के बाद उनकी माताजी श्रीमती जोगामाया देवी ने पंडित नेहरू से उनकी मृत्यु की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की थी, जिसे नेहरू ने ठुकरा दिया। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी यही मानना था कि डा. मुखर्जी की मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु नहीं थी। 

5 अगस्त 2019 का दिन भारतीय इतिहास में वह स्वॢणम दिन था, जब भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में देश की संसद ने धारा 370 को जम्मू-कश्मीर राज्य से समाप्त करने का निर्णय लिया। जिस साध्य को लेकर डा. मुखर्जी ने अपने प्राणों की आहूति दी थी, उस साध्य को आज अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से मोदी जी ने साकार करके डा. मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि प्रस्तुत की है एवं जम्मू-कश्मीर से ‘दो विधान, दो प्रधान, दो निशान’ को समाप्त करने का कार्य किया है। 1934 में मात्र 33 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति भी बने और 1938 तक इस पद पर रहे। 

डा. मुखर्जी अन्य देशों के साथ भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों की मजबूती चाहते थे। इस शृंखला में इन स्मृति चिन्हों को बर्मा, वियतनाम, श्रीलंका तथा कम्बोडिया आदि देशों के अनुरोध पर डा. मुखर्जी स्वयं वहां लेकर गए। वहां के लोग डा. मुखर्जी का एक संत के रूप में दर्शन करते थे। डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जो पथ प्रशस्त किया था आज मोदी जी के नेतृत्व में केन्द्र में भाजपा की सरकार उस पथ पर निरंतर आगे बढ़ रही है। उनके आदर्शों, मूल्यों और लक्ष्यों को पूरा करने का कार्य कर रही है।-अर्जुन राम मेघवाल(केन्द्रीय भारी उद्योग राज्य मंत्री)

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