सर्व-समावेशी भारत के लिए ‘सपनों को पंख’

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2019 04:04 AM

dream to feet  for all inclusive india

नैतिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों की समृद्ध विरासत के साथ भारत काफी हद तक सपनों के साथ जीता है। गरीब व्यक्ति के अमीरों जैसे सपने तथा ताकतवर नेताओं व अमीर लोगों के और बड़ा बनने के सपने। ये हमेशा जारी रहते हैं, गरीबी हटाओ से पांच खरब डालर की...

नैतिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों की समृद्ध विरासत के साथ भारत काफी हद तक सपनों के साथ जीता है। गरीब व्यक्ति के अमीरों जैसे सपने तथा ताकतवर नेताओं व अमीर लोगों के और बड़ा बनने के सपने। ये हमेशा जारी रहते हैं, गरीबी हटाओ से पांच खरब डालर की अर्थव्यवस्था, जो धीमी गति से सरक रही अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान के लिए एक नई आशा जगाता है। 

कई तरह से ये सपने उस हवा की तरह स्वतंत्र हैं, जिसमें हम सांस लेते हैं। इन दिनों हवा प्रदूषित है। ऐसे ही हमारे सपने भी, विशेषकर वे जो राजनीतिज्ञों द्वारा दिखाए तथा प्रोत्साहित किए गए हैं। फिर भी कुछ सपने सपना देखने वालों के साथ नहीं मरते। वे शाश्वत दिखाई देते हैं क्योंकि वे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होते रहते हैं। राम राज्य का विचार ऐसा ही एक सपना है। ङ्क्षहदी पट्टी में किसी ग्रामीण से पूछिए कि भारत में मूल्यों के पतन तथा बढ़ती पेचीदगियों के बारे में उसकी क्या राय है और वह रूखा-सा उत्तर देगा कि कहां है ‘राम राज्य’? 

राम मंदिर का विचार
सम्भवत: इसका विकल्प बहुचर्चित राम मंदिर का विचार है और यह सही भी है। हम सभी एक प्रतीकवाद में रह रहे हैं, जिसे एक-एक ईंट जोड़कर बनाया गया है। कौन आदर्शवाद तथा मूल्यों की परवाह करता है जैसे कि पुरुषोत्तम राम करते थे, जिनकी हम पूजा करते हैं? सम्भवत: उत्कृष्ट पूजा स्थल भी आशा के वाहक के तौर पर अपना उद्देश्य पूरा करते हैं और आशा आगे कठिन मार्ग के लिए एक उत्प्रेरक का काम करती है। इसके ऐतिहासिक संदर्भ में राम राज्य के विचार की जड़ें समानता, न्याय, ईमान, स्वतंत्रता तथा जाति वर्ग या नस्ल के आधार पर शोषण अथवा भेदभाव के बिना सबके लिए बराबर के अवसरों में हैं। यह सपना हिंदू मानसिकता में गढ़ा हुआ है। और इसे हमारे संविधान में एक सर्व-समावेशी नए भारत के निर्माण हेतु अपनाया गया है। 

रामायण की पौराणिक कहानियां सदाचारी, समझदार देवता-राजा राम के गिर्द घूमती हैं। जिन्होंने अपना जीवन उच्च आदर्शों के साथ जिया और अपने राज्य पर धर्म के कानून, न्याय के प्राचीन नियमों, मर्यादा, स्वतंत्रता, बराबरी तथा न्यायपरायणता के साथ शासन किया। मैं उन सुनहरी विचारों को इसलिए याद कर रहा हूं क्योंकि हम बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद अयोध्या में राम जन्म भूमि विवाद पर शीर्ष अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। मैं विध्वंस से सही या गलत होने के प्रश्र में नहीं जा रहा। मैं ‘विदेशी शक्तियों’ द्वारा निर्मित ऐसे ऐतिहासिक ढांचों को एक चेतावनी के  तौर पर देखता हूं कि हम कैसे और कहां गलत हुए। क्या यह हिंदू बनाम ‘आक्रमणकारियों’ के तौर पर किरदार की हमारी कमजोरियों की ओर संकेत करता है, जिन्होंने अपने बांटो और शासन करो के कौशल के माध्यम से हम पर शासन किया? क्या हमने इतिहास से सही सबक नहीं सीखा? मुझे इसमें संदेह है। राम राज्य या राम राज्य नहीं, हमारे राजनेता निरपवाद रूप से उन अच्छे सुनहरी दिनों को सभी तरह के वायदों के साथ जनता में बनाए रखते हैं। 

महात्मा गांधी को एहसास था
मैं यहां महात्मा गांधी को अवश्य याद करूंगा। उन्हें पूरा एहसास था कि धर्म भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण शक्ति है। इसीलिए वह लोगों को रोजमर्रा के जीवन में सही और गलत का संदेश देने के लिए दृष्टांतों का इस्तेमाल करते थे। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान गांधी आमतौर पर राम राज्य की प्राप्ति की जरूरत का हवाला देते थे। उस लक्ष्य को पाने के लिए उन्होंने सरपरस्ती के अपने सिद्धांत की व्याख्या की, जिसके अंतर्गत ‘पूंजीवादी ढांचे के साधनों का समाज की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पूंजी को निजी हाथों में रखने की स्वतंत्रता पूर्ण जनसंख्या की आधारभूत जरूरतों की प्राप्ति के साथ-साथ चलती है।’ गांधी के वे विचार नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा राजनीति के विषय हैं। आज अलग व्यवस्था, अलग मानदंड हैं, जो सरपरस्ती तथा आचार-विचार के दृष्टांतों से बहुत दूर है, इसके बावजूद कि वे वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय दर्शन के साथ सामंजस्य में हैं। 

यद्यपि स्वतंत्र भारत के शासकों के शासन कला के अपने खुद के विचार हैं, उन्होंने भी वोटें प्राप्त करने के लिए राम राज्य की तरह के सपने दिखाए मगर गांधी की अवधारणा वाला सपना उतना ही दुष्प्राप्य बना रहा जितना वह हमेशा था। कोई अफसोस नहीं। भारत को आधुनिक पथ पर तेजी से आगे बढऩा है, हालांकि विभिन्न समुदायों में धार्मिक बैर के बीच अपराध तथा ङ्क्षहसा जारी रही। हत्याएं, लिंचिंग, दुष्कर्म, यातना तथा पीड़ा। कोई हैरानी की बात नहीं कि रिचर्ड एटनबरो के गांधी एक अन्य दुनिया से आए व्यक्ति लगते थे, यद्यपि हम 2 अक्तूबर को गांधी की समाधि पर उन्हें श्रद्धांजलि देना तथा ड्राइंग रूम्स की वातानुकूलित सुविधाओं में उन पर चर्चा तथा वाद-विवाद जारी रखे हुए हैं। एक बार फिर, कोई अफसोस नहीं। एक राष्ट्र के नाते हम खेद के पुङ्क्षलदों के साथ आगे नहीं बढ़ सकते। इसीलिए अच्छे दिनों के लिए हमें अपनी आशाओं को जिंदा रखना होगा। 

इसके साथ ही हमें आधुनिक भारत के लिए अनुकरणीय व्यक्तियों की तलाश भी जारी रखनी होगी। फिलहाल मैं राजनीतिज्ञों को एक ओर रखना चाहता हूं। इसके लिए मेरा मानना है कि हमें सामाजिक-धार्मिक क्षेत्रों में लोगों की जरूरत है, जहां हमें जमीनी स्तर पर नकारात्मक सोच को बदलने के लिए आवाजों की अत्यंत जरूरत है। 

नुसरत जहां का मामला
एक व्यक्ति जो तुरंत मेरे जहन में आता है, वह हैं नुसरत जहां। वह ममता बनर्जी की तृणमूल पार्टी से संबंधित एक युवा सांसद हैं। मगर जो उन्होंने किया है उसमें कोई भी राजनीति नहीं है। उन्होंने एक जैन व्यवसायी से शादी की है और सार्वजनिक रूप से मांग में सिंदूर लगाती हैं और मंगलसूत्र व चूडिय़ां पहनती हैं। इससे धर्म गुरुओं ने उन्हें ‘गैर इस्लामिक’ बताते हुए, एक गैर मुस्लिम के साथ शादी करने के लिए उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया। फतवे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने लोगों से ऐसे ‘कट्टरपंथियों’ पर ध्यान न देने को कहा है जो भारतीय समाज में ‘नफरत तथा हिंसा पैदा करते हैं।’ 

मैं दिल से उनका समर्थन करता हूं। उन्होंने खुलकर दृढ़तापूर्वक कहा कि ‘मैं एक समावेशी भारत का प्रतिनिधित्व करती हूं, जो जाति, नस्ल तथा धर्म के बंधनों से परे है।’ इस्लाम में गहरी आस्था रखने वाली नुसरत ने कहा कि वह ‘सभी धर्मों का सम्मान करती हैं’ और बताया कि ‘वह अभी भी एक मुसलमान हैं और किसी को भी उस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए कि मैं क्या पहनती हूं। आस्था पहरावे से परे है।’वह सही हैं। भारत के साम्प्रदायिक विभाजन में अफसोसनाक बात मुसलमानों में राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होने की अनिच्छा है। हिंदू समाज व्यापक तौर पर आत्मसात्करण तथा समन्वयात्मक सामंजस्य का पक्ष लेता है। फिर भी सामाजिक तथा धार्मिक तनाव विभिन्न कारणों से उभर पड़ते हैं। 

मेरा मानना है कि आज जोर धार्मिक पहचान गंवाए बिना संश्लेषण तथा समावेश पर होना चाहिए। इसके साथ ही हमें भारतीय राष्ट्रीयता की नई पहचानों को विकसित करना सुनिश्चित करना होगा। इस रोशनी में मैं एक सर्व-समावेशी भारत के लिए एक नए अनुकरणीय व्यक्ति के तौर पर नुसरत जहां जैन की प्रशंसा करता हूं।-हरि जयसिंह 

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