आंकड़ों से ज्यादा ‘हादसों’ की हो चिन्ता

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2019 04:43 AM

due to the number of  accidents

देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं सभी के लिए चिन्ता का कारण हैं। कहने को तो 2016 की तुलना में 2017 में थोड़ी कमी आई लेकिन 2018 के बढ़े हुए आंकड़ों ने फिर परेशानी बढ़ा दी। सवाल यह है कि हम कब तक आंकड़ों को देखकर चिन्ता करेंगे? हादसों को रोकने की खातिर भी...

देश में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं सभी के लिए चिन्ता का कारण हैं। कहने को तो 2016 की तुलना में 2017 में थोड़ी कमी आई लेकिन 2018 के बढ़े हुए आंकड़ों ने फिर परेशानी बढ़ा दी। सवाल यह है कि हम कब तक आंकड़ों को देखकर चिन्ता करेंगे? हादसों को रोकने की खातिर भी तो कुछ ठोस करना होगा। जिस तरह 2019 में अब तक चंद सड़क दुर्घटनाओं में थोक में हुई मौतों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, उसने मोदी सरकार की दूसरी पारी में इस पर चिन्ता बढ़ाई होगी क्योंकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर रखे हैं जिसमें 2020 तक सड़क हादसों में होने वाली मृत्यु दर को आधा करने का वचन है। 

अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग प्रभावित
लापरवाही कहें या रफ्तार का कहर या फिर खराब सड़कें, इनसे देश भर में सड़क दुर्घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की रेटिंग को बुरी तरह से प्रभावित करती हैं। केवल आंकड़ों को देखें तो भारत में बीता एक दशक करीब 12 लाख जिंदगियां लील चुका है तथा सवा करोड़ से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल और स्थायी तौर पर अपंग हो चुके हैं। 

इसी 8 जुलाई को यमुना एक्सप्रैस-वे पर हुए हादसे से चिन्ता फिर बढ़ी है। बस पुल से नीचे नाले में जा गिरी और 29 लोगों की जान चली गई। उत्तर प्रदेश यातायात निदेशालय के आंकड़े और चौंकाते हैं। इस साल 1 जनवरी से 30 जून तक यहां 95 सड़क दुर्घटनाओं में 94 जानें चली गईं और 120 लोग बुरी तरह से घायल हुए। दिल्ली-आगरा की दूरी को कम करने के लिए 128.39 अरब रुपयों से 165 कि.मी. लंबा शानदार एक्सप्रैस-वे बनाया गया। इसकी शान में 24 अक्तूबर 2017 को ट्रांसपोर्ट व लड़ाकू विमान उतार नया इतिहास जरूर रचा गया लेकिन एक आर.टी.आई. के आंकड़े रौंंगटे खड़े कर देते हैं जो बताते हैं कि 9 अगस्त 2012 यानी उद्घाटन के बाद से 31 जनवरी 2018 तक इस पर 5000 दुर्घटनाओं में 8191 लोगों ने जान गंवा दी है। 

21 जून को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में एक भीषण बस हादसे में 44 लोगों की मौत हो गई जबकि 30 से अधिक यात्री घायल हो गए, जिसने पहाड़ी रास्तों पर अपर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था को उजागर किया। हिमाचल में ही बीते 10 वर्ष में करीब 30993 सड़क हादसे हुए हैं, जिनमें 11561 मौतों ने कई कमियां उजागर की हैं। वहीं पूरे देश में 2018 में भारत की सड़कों पर 1.49  लाख  लोगों ने अपनी जान एक्सीडैंट के चलते गंवाई है। सड़क हादसों के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है जहां 17666, दूसरे नंबर पर तमिलनाडु रहा जहां 15642, उसके बाद महाराष्ट्र 13212, मध्य प्रदेश 11000 से ज्यादा, कर्नाटक 10856, राजस्थान में 10510 लोगों की जान चली गई। 

भारत में मौतों के आंकड़े
सरकारी आंकड़ों में भारत में रोजाना 1317 सड़क दुर्घटनाओं में 413 लोगों की जान जाती है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में अलग-अलग हिस्सों में औसतन 652 से ज्यादा लोग रोजाना सड़क हादसों में जान गंवाते हैं। जहां दुनिया में हर 23 सैकेंड में एक व्यक्ति की मौत होती है वहीं सड़क सुरक्षा पर आधारित ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट में भारत की स्थिति दयनीय है। दुनिया भर में सड़क हादसों के मामले में रूस जहां पहले नंबर पर है, जहां 1 लाख लोगों में से 19 की जान हर साल सड़क हादसों में जाती है, वहीं भारत दूसरे, अमरीका तीसरे, फ्रांस चौथे और डेनमार्क 5वें नंबर पर है। 

सड़क हादसों पर किसी एक पक्ष को दोषी ठहराना गलत होगा। इसके लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। सिविल सोसाइटी को जागरूकता के साथ जनअभियान चलाना होगा। प्रबंधकीय और प्रशासनिक खामियों के बीच बनी सड़कों की बनावट, लचर रख-रखाव और पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी खास फोकस जरूरी है। हादसों को रोकने की खातिर पूरे मार्ग में सतर्कता की अनिवार्यता के सुनिश्चित पालन की व्यवस्था होनी चाहिए। यह भी सच है कि भारत में तमाम एक्सप्रैस-वे उतने चौड़े नहीं हैं जैसे अंतर्राष्ट्रीय मापदंड अनुसार होने चाहिएं जबकि इन पर दौडऩे वाले वाहन अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं। ऐसे में भारतीय सड़कों पर वाहनों की गति और उनके चलाने के तौर-तरीकों के सामंजस्य का ज्ञान चालक के लिए बेहद जरूरी है जो अमूमन भारत में नहीं है। 

तकनीक व कृत्रिम समझ
सुरक्षित सफर के लिए सड़कों पर तकनीक का उपयोग बढ़ाने के साथ ही आर्टीफीशियल इंटैलीजैंस (कृत्रिम समझ) का सहारा लेना होगा। सी.सी.टी.वी. का जाल फैलाना होगा, जिन्हें वाई-फाई से एक सैंट्रलाइज मॉनीटरिंग सिस्टम से जोड़कर जोन या सैक्टरोंं में बांटकर सतत् निगरानी और विश्लेषण किया जाए। इससे एक डाटाबेस भी तैयार होगा जो सड़कों के मिजाज का खाका होगा और दुर्घटनाओं को रोकने में मददगार होगा। इसी से वाहनों की रफ्तार पर दूर से ही निगाह रहेगी जिसका भय चलने वाले को भी होगा। शिकायत की स्थिति में नजदीकी पुलिस स्टेशन, टोल प्लाजा या सहायता केन्द्रों को सूचना देकर चिन्हित वाहन काबू कर दुर्घटना रोकी जा सकेगी। 

सड़क सुरक्षा कानून में भी व्यापक सुधार की सख्त जरूरत है, ताकि फर्जी लाइसैंस, एक प्रदेश में अयोग्य होने पर दूसरे प्रदेश से लाइसैंस बनवाना, शराब पीकर वाहन चलाने व तमाम दूसरी व्यावहारिक शिकायतों में कमी आएगी। इसके अलावा टायरों के निर्माण में रबर के साथ सिलिकॉन मिलाने, उनमें नाइट्रोजन भरने को अनिवार्य करना होगा ताकि टायर ठंडे रहें और लंबे सफर में फटने का खतरा कम हो जाए।-ऋतुपर्ण दवे 
 

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