बंगलादेश में दुर्गा पूजा और हिन्दुओं की दुर्दशा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Oct, 2017 03:07 AM

durga puja and plight of hindus in bangladesh

कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रसिद्ध पंक्तियां हैं-‘जोदी तोर डाक शुने केऊना आसे, तोबे एकला चालो रे।’ यदि तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई न मिले...

कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की प्रसिद्ध पंक्तियां हैं-‘जोदी तोर डाक शुने केऊना आसे, तोबे एकला चालो रे।’ यदि तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई न मिले तो अकेले चलो। इस बार दुर्गा पूजा पर ऐसा ही हुआ। मेरी माशी मां, कोलकाता से बारिशाल दुर्गा पूजा के लिए जा रही थी। प्राय: क्षणांश में मेरा भी मन जाने का हुआ-वीजा लिया और रात की उड़ान से पहुंचा कोलकाता। 

दुर्गा पूजा हो और बंगाल सोए, यह संभव नहीं। हवाई अड्डे से घर तक का 10 किलोमीटर का सफर पूरा करने में अढ़ाई घंटे लगे। स्त्री, पुरुष, बच्चे दुर्गा पूजा पंडालों में दर्शनार्थ जा रहे थे, उत्सव मंडपों के भीतर और बाहर -चांदनी की तरह बिखरा हुआ  था। किसी बड़े पंडाल में तो लोगों को 3-3 घंटे पंक्तियों में खड़े रहना पड़ा-तब दर्शन हुए। दुनिया में हिन्दुओं जैसा उत्सव प्रिय समाज कहां होगा? आपदाओं, विरोधों के बीच भी वह खुशियों के दीप जला ही लेता है। मन में प्रश्र था, इन धार्मिक उत्सवों में राजनेताओं के बड़े-बड़े चित्र क्यों दरवाजों और रास्तों पर लगे रहते हैं? धर्म के लिए तो कुछ करना नहीं, पर धर्म उत्सव की भीड़ को अपना चेहरा दिखाकर राजनीतिक मुनाफा कमाना एक वीभत्स अनुष्ठान ही लगा। 

कोलकाता से सुबह 5 बजे चल कर पेट्रापोल सीमा से हम प्राय: 10 बजे बंगलादेश में दाखिल हुए। उधर का वातावरण साफ-सुथरा था। दो बड़े स्तम्भों पर रबीन्द्रनाथ ठाकुर तथा काजी नजरुल इस्लाम के उत्कीर्ण चित्र थे। बंगलादेश का राष्ट्रगीत-आमार शोनार बांगला भी रबीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित है? बंगलादेश की सीमा पर बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान और शेख हसीना के भी सुन्दर चित्र थे, जबकि भारत की ओर न तो राष्ट्रपति और न ही प्रधानमंत्री के चित्र थे, राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत का दर्शन कराना तो दूर की बात है। इस्लामी बंगलादेश और सैकुलर भारत में अंतर? 

पेट्रापोल से बंगलादेश के हिन्दुओं की दुर्गा पूजा का पहला मंडप केराल कट्टा ठाकुर बाड़ी में था जो जेसोर जिले में है। रास्ते में अनेक गौशाला  जैसे टीनशैड मिले। मैंने पूछा तो मेरे मित्र गोपाल सरकार हंसे-बोले, ये सब भारत से लाई गई गाएं हैं- इन्हें कसाईखाने भेजने के लिए यहां रखा जाता है। केराल कट्टा की दुर्गा पूजा सुन्दर थी-बड़ी संख्या में हिन्दू परिवार वहां मिले। पूजा संस्कृत में हो रही थी। लाऊड स्पीकर पर दुर्गा सप्तशती के पाठ की ध्वनि गूंज रही थी। मुझे बताया गया कि कुछ वर्ष पूर्व तक यहां दुर्गा पूजा मनाना भी संभव नहीं था-आज भी डर तो रहता ही है कि कब कौन जमाते इस्लामी या जेहादी तत्व पूजा मंडप न तोड़ दें। 

सातखिरा जिला था, वहां झाउडांगा गांव, फिर मायेर बाड़ी (मां का घर) दुर्गा पूजा मंडप गए। वही दृश्य, सरल,  सामान्य मण्डप-आमतौर पर इस क्षेत्र में हिन्दू ग्रामीण कृषक हैं। सरकारी नौकरी अथवा व्यापार में उन्हें कम स्थान प्राप्त हैं, पर त्यौहार तो त्यौहार ही है। मन में उमंग उठती है, नए कपड़े, मिठाई, दुर्गा की मूॢतयों का सृजन  और फिर विसर्जन। भारत के हिन्दू यह समझ नहीं पाएंगे कि प्राय: 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी और उनमें भी घोर हिन्दू विरोधी जेहादी तत्वों की सक्रियता, देश का राज्य-मजहब इस्लाम और घृणा तथा शत्रुता की राजनीतिक छाया में बंगलादेश के हिन्दू अपनी आस्था, रीति-रिवाज, भाषा, त्यौहार, मंगल उत्सव तथा शोक के क्षण कैसे जीते हैं? 

सातखिरा जिले में हमने 6 मण्डप देखे-कोचुआ, बदर तला, परुलिया, नौल्टा, गाजीरहाट तथा विष्णुपुर। तब तक मध्यरात्रि हो चुकी थी। बंगाल में दुर्गा पूजा या नवरात्रि पर व्रत-उपवास रखते हुए हमने किसी को देखा ही नहीं। सब दावत के मूड में होते हैं। वहां बंगलादेश हिन्दू महाजोट यानी सभी हिन्दू संगठनों का विराट गठबंधन बनाने का प्रयास जारी है। उसके अध्यक्ष श्री गोविंद प्रमाणिक के आग्रह पर मैंने काक्स बाजार (चटगांव) तथा ढाका की दुर्गा पूजा ही नहीं देखी बल्कि उखिया में म्यांमार से आए रोहिंग्या हिन्दू शरणार्थियों से भी मिला। अगर बंगाली हिन्दू इन दिनों अपने धार्मिक उत्सव अच्छी तरह मना पा रहे हैं तो आप मानें या न मानें, उसका कारण भारत-बंगलादेश संबंधों में आया सकारात्मक परिवर्तन भी है। 

ढाका के प्रसिद्ध मानवाधिकारवादी  शहरयार कबीर मेरे पुराने मित्र हैं। उनसे मिले बिना ढाका जाना पूरा कैसे होता? उन्होंने इस स्थिति को एक वाक्य में बांध दिया-शेख हसीना से पहले सरकार हिन्दुओं पर कट्टर मुस्लिम आक्रमणों का संज्ञान ही नहीं लेती थी, नकार देती थी। अब सरकार संज्ञान लेती है, रिपोर्ट लिखती है लेकिन उस पर कार्रवाई करने से डरती है। दुर्गा पूजा के समय 6 स्थानों पर दुर्गा प्रतिमाएं खंडित हुईं। पूजा देखने गई एक नाबालिग हिन्दू लड़की से दुष्कर्म हुआ अर्थात स्थिति अभी भी पूरी नहीं बदली। तो बदला क्या? इस साल बंगलादेश में 33 हजार  दुर्गा मंडप सजे। प्रत्येक मंडप को सरकार से थोड़ी-बहुत वित्तीय सहायता भी मिली और महानवमी पर राष्ट्रपति अब्दुल हमीद ने हिन्दू गण्यमान्य नागरिकों से दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं स्वीकार करने के लिए ढाका में विशेष व्यवस्था की। ये बातें न भारत की मीडिया में आती हैं- न इनका भारत में कोई महत्व माना जाता है। 

ढाका में मां ढाकेश्वरी, रमना काली, धानमंडी और वरिष्ठ सैन्य अफसरों की डिफैंस हाऊसिंग सोसायटी में मुख्य दुर्गा मंडप सजे। इन चारों में ही मुझे जाने का अवसर मिला। इनमें धानमंडी विशेष क्षेत्र है, जो शेख मुजीब का भी घर था। वहां की दुर्गा पूजा में प्राय: 20,000 हिन्दू सपरिवार आए हुए थे। पूजा समिति के अध्यक्ष ने मेरा भावभीना स्वागत किया। इस पण्डाल में प्रवेश के लिए लम्बी कतार लगी थी। एक प्रसिद्ध मुस्लिम गायिका जीनत मां दुर्गा के गीत ही नहीं गा रही थी बल्कि बीच-बीच में हिन्दी में ‘बोल दुर्गा माई की....जय’ के नारे भी लगा रही थी। 

बंगलादेश में मोदी और सुभाष चंद्र बोस के नाम अभी भी रोमांच पैदा करते हैं। धानमंडी की दुर्गा पूजा में मुझे भारत की ओर से बोलने को कहा गया तो मोदी का नाम लेते ही माहौल में उत्साह भर गया। बंगबंधु मुजीब, शेख हसीना जैसे नाम भारत में भी सकारात्मक भाव पैदा करते हैं। इतिहास की विडम्बना है कि पूर्वी तथा पश्चिमी बंगाल 1905 के बंग-भंग के शिकार हो गए। मुस्लिम कट्टरवाद, असहिष्णुता, हिन्दू द्वेष ने इसमें दरार डाल दी। वही द्वेष हिन्दू रोहिंग्या शरणार्थियों को संत्रस्त किए हुए है। यह द्वेष, उस सांस्कृतिक धारा से खत्म हो सकता है जिस धारा में भाषा, बसंत जैसे पर्व, रबीन्द्र ठाकुर-काजी नजरुल के गीत, आज भी सामान्यत: बंगलादेशी संभ्रांत महिलाओं द्वारा सिन्दूर तथा शंख की चूडिय़ों का उपयोग-हमें बांधता है। इसे बढ़ाने वाले प्रयास ही गंगा और पद्मा की एक रूप धारा हमारे विषण्ण हृदयों को सरस करेगी।    

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