शिक्षा ऐसी जो वैश्विक स्तर पर परिपूर्ण हो

Edited By ,Updated: 30 Jul, 2022 05:58 AM

education that is globally perfect

ज्ञान आधारित समाज के निर्माण, आर्थिक जीवन शक्ति के विकास, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं सम्पूर्ण मानवता के कल्याण हेतु गुणवत्ता परक शिक्षा परम आवश्यक है। इन लक्ष्यों की पूॢत के निमित्त हमारी

ज्ञान आधारित समाज के निर्माण, आर्थिक जीवन शक्ति के विकास, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं सम्पूर्ण मानवता के कल्याण हेतु गुणवत्ता परक शिक्षा परम आवश्यक है। इन लक्ष्यों की पूॢत के निमित्त हमारी शिक्षा प्रणाली को वैश्विक परिदृश्य में विचारात्मकता, रचनात्मकता, विषयगत ज्ञान की समझ, संवादात्मकता तथा सशक्त सामुदायिक अंत: संबंध को विकसित करने में सक्षम होना चाहिए। शिक्षा ऐसी हो जो बौद्धिक, रचनात्मक, भावनात्मक, सामाजिक, पर्यावरणीय, नैतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्रों में सम्यक रूप से सामंजस्य स्थापित करते हुए व्यापक एवं सम्पूर्ण व्यक्ति विकास हेतु एवं हमारे स्नातकों को वैश्विक स्तर पर सक्षम तथा स्वीकार्य बनाने में परिपूर्ण हो। 

हमें अपने युवाओं को चुनौती पूर्ण तथा दुर्लभतम परिस्थितियों का सामना करने हेतु सक्षम बनाना समय की मांग है। मानवजीवन के विभिन्न आयामों में तीव्र गति से हो रहे परिवर्तनों के समक्ष भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली समानुपातिक प्रतिक्रिया हेतु सक्षम प्रतीत नहीं हो रही है। इस दृष्टिकोण से हमारी शिक्षा प्रणाली के अप्रासंगिक होने का खतरा दिनों-दिन बढ़ रहा है। वर्तमान में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को ऐसे नए तथा रोजगारोन्मुख कार्य क्षेत्र तलाशने होंगे जो वर्तमान सोच की परिधि से बाहर हैं। साथ ही उन्हें अपने कार्य क्षेत्रों में ऐसी तकनीक का उपयोग करना पड़ेगा, जिनकी अभी तक खोज ही नहीं हुई है। चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम के पहले वर्ष के दौरान अर्जित ज्ञान का प्राय:अर्ध भाग छात्रों के स्नातक होने तक अप्रासंगिक हो सकता है। 

अतएव शैक्षणिक संस्थानों द्वारा युवाओं को वर्तमान में उपलब्ध तकनीकों का सदुपयोग करके इस सीमा तक पारंगत बनाना  होगा जिससे वह भविष्य में मौलिक कार्यक्षेत्र निर्मित कर सकें। ऐसी परिस्थिति में युवाओं के समक्ष उपस्थित भावी चुनौतियों तथा अवसरों द्वारा सम्यक रूप से लाभ पहुंचाने के निमित्त हमें अपने शिक्षा के लक्ष्यों को न सिर्फ पुनॢनर्मित करना होगा,अपितु अपनी नीति में भी वांछित परिवर्तन लाना होगा। इससे हम अपनी युवतर जनसंख्या में किए गए निवेश का संपूर्ण लाभ उठा सकेंगे। इसके इतर, हम अपने युवाओं को औद्योगिक क्रांति 4.0 में पर्याप्त योगदान देने के लिए सक्षम बनाए बगैर आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार नहीं कर सकते हैं। यह औद्योगिक क्रांति पूर्व की क्रांतियों से भिन्न है, क्योंकि यह परिवर्तन का प्रौद्योगिकी के विभिन्न आयामों पर आधारित है। 

हमारे युवा डिजिटल क्रांति युग के नागरिक हैं एवं हमें उन्हें इंटरनैट आफ थिंग्स, आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस, ऑगमैंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी, इंटैलीजैंट रोबोटिक्स, 3-डी प्रिंटिग, बिग डेटा एनालिटिक्स, क्लाऊड कंंप्यूटिंग और ऐसी अन्य उभरती हुई प्रौद्योगिकियों का भरपूर उपयोग करने में सक्षम बनाना पड़ेगा, जो भौतिक, डिजिटल तथा जैविक कार्यक्षेत्र के बीच की दूरी को निरंतर कम कर रहीं है। औद्योगिक क्रांति 4.0 में, भौतिक एवं आभासी दुनिया के एकीकरण के माध्यम से औद्योगिक उत्पादन हेतु साइबर-भौतिक उत्पादन प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इस अद्भुत अवसर का लाभ उठाने हेतु हमें शिक्षा 4.0 की विशेषताओं को अपनी शिक्षा प्रणाली में संपूर्णतया आत्मसात करने की आवश्यकता है। परिणाम आधारित शिक्षा का यह संस्करण सह-शिक्षा, सह-निर्माण एवं सह-नवाचार सुनिश्चित करता है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 वर्तमान शिक्षा प्रणाली को शिक्षा 4.0  के साथ संरेखित करने में सक्षम है,क्योंकि यह 21 वीं सदी  के युवाओं की अधिगम की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के निमित्त वर्तमान शिक्षण प्रणाली के संवर्धन की नीति है। अधिगम परिणाम आधारित बहु-विषयक पाठ्यक्रम, अकादमिक क्रैडिट बैंक एवं एकल खिड़की के माध्यम से उच्च-संस्थानों  में प्रवेश अधिकांश केंद्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा लागू किए जा चुके हैं। 

बहुनिकास-प्रवेश विकल्पों के साथ चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रमों पर विनियम; स्वयं के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षण पाठ्यक्रमों के लिए क्रैडिट ढांचा; संयुक्त ट्विङ्क्षनग और द्विडिग्री कार्यक्रम; एक साथ दो शैक्षणिक कार्यक्रम करना; समरूप सी.बी.सी.एस. लागू करना; उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ की स्थापना तथा उन्हें बहु विषयक संस्थानों में बदलने के लिए दिशा निर्देश; मुक्त,दूरस्थ एवं ऑनलाइन शिक्षण कार्यक्रम;सामाजिक जिम्मेदारी और सामुदायिक सद्भावना को बल प्रदान करना; जीवन कौशल 2.0 और जीवन कौशल पाठ्यक्रम आदि के लिए सूत्रधार गाइडलाइंस को अंतिम रूप दिया जा रहा है। परन्तु उच्च शिक्षा आयोग की स्थापना एवं शिक्षा के क्षेत्र में अधिक पूंजी निवेश के बिना राष्ट्रीय शिक्षा नीति को समग्रता के साथ लागू नहीं किया जा सकता है। 

अधिगम शास्त्र में विशेष रूप से ‘क्या सीखें’ के स्थान पर ‘कैसे सीखें’, स्किलिंग, अप-स्किलिंग और रीस्किलिंग; सीखना, भूलना और फिर से सीखना (आजीवन सीखने हेतु जीवन पर्यंत अनुकूलन की क्षमता विकसित करना); तथा सुधार, प्रदर्शन एवं परिवर्तन जैसे बिंदू राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुख्य उपागम हैं। इसके इतर भावी चुनौतियों को ध्यान में रखकर विद्यार्थियों को नियोक्ताओं की तरह तथा नियोक्ताओं को विद्यार्थियों की तरह सोचने की आद्य परंपरा शुरू करने की आवश्यकता है।-राघवेंद्र प्रसाद तिवारी कुलपति, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा

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