गंभीर प्रयासों से संभव होगा सबका विकास

Edited By ,Updated: 02 Jun, 2019 01:23 AM

efforts will be made to develop everyone

बड़ा जनादेश हमेशा वरदान नहीं होता, कमजोर विपक्ष शासन को भारी बना देता है। इसके अलावा लगातार दूसरा कार्यकाल मिलने से शासकों के पास कोई बहाना नहीं बचता। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि देश के लोगों...

बड़ा जनादेश हमेशा वरदान नहीं होता, कमजोर विपक्ष शासन को भारी बना देता है। इसके अलावा लगातार दूसरा कार्यकाल मिलने से शासकों के पास कोई बहाना नहीं बचता। मुझे पूरा विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि देश के लोगों को उनसे बहुत सी आशाएं हैं तथा उनके मंत्रिमंडल पर काफी बड़ी जिम्मेदारी है। उनके पहले कार्यकाल को देखते हुए मुझे विश्वास है कि वह इस चुनौती का सामना करने के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे। 

उनके रास्ते में दो समस्याएं हैं : पहली, भारत में किसी काम को करने के पुराने तौर-तरीके। दूसरी, लोगों के विभिन्न वर्गों द्वारा अलग-अलग तरह के दावे जिनमें गरीब, कमजोर,  सबसे वंचित तबके तथा शोषित लोगों की आवाज दब कर रह जाती है। हमारा अनुभव बताता है कि पहले कार्यकाल के अंत में (1) काम करने के पुराने तौर-तरीके बरकरार रहे और  (2) गरीब, कमजोर, वंचित और शोषितों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। 

अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी को कुछ पुराने तौर-तरीकों को ध्वस्त कर नई शुरूआत करनी होगी। मोदी के दोस्त अरविंद पनगढिय़ा और वेंकटेश कुमार इन तौर-तरीकों को इस तरह परिभाषित करते हैं : ‘उनके गवर्नैंस मॉडल की एक खासियत यह थी कि वह सचिवों के समूहों का गठन करते थे और प्रत्येक समूह को अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में प्रोजैक्टों, कार्यक्रमों और नीतियों पर प्रैजैंटेशन तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाती थी जिन्हें आगामी वर्ष में लागू करना होता था.... इन प्रैजैंटेशनों को अंतिम रूप मिलने के बाद वह मुख्य क्षेत्रों के लिए दिशा-निर्धारण करने का काम करती थीं।’ 

अब लेखक सावधान करता है : ‘लेकिन जब मूलभूत सुधारों की  बात आती है यह रवैया ढीला पड़ जाता है। नौकरशाह स्वभाव से चौकन्ने होते हैं जो परियोजनाओं और कार्यक्रमों के पक्ष में रहते हैं। यहां तक कि जब वे नीति परिवर्तन का प्रस्ताव करते हैं तो वे इसे धीरे-धीरे करके अंजाम देते हैं।’मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूं हालांकि मैं उनके वैकल्पिक तरीके से सहमत नहीं हूं। अच्छी तरह से जांचने पर पता चलता है कि इसमें कोई ज्यादा फर्क नहीं है। वैकल्पिक मॉडल में मंत्री का स्थान मिशन हैड, सचिव का स्थान सलाहकार और संयुक्त सचिव तथा उनकी टीम का स्थान युवा प्रोफैशनल ले लेते हैं। 

स्वच्छ भारत और उज्जवला
इसके परिणाम स्वच्छ भारत और उज्जवला से अलग नहीं होंगे। स्वच्छ भारत के मामले में कड़वी सच्चाई यह है कि गुजरात को छोड़ कर देश का कोई भी बड़ा राज्य खुले में शौच मुक्त घोषित नहीं हो पाया है। ऐसे कितने प्रतिशत शौचालय हैं जिनका इस्तेमाल नहीं हुआ या जो इस्तेमाल योग्य नहीं हैं? उज्जवला के मामले में सफलता या असफलता का सबूत यह है कि लाभार्थियों ने एक साल में औसतन कितने सिलैंडर खरीदे : 3 या ज्यादा से ज्यादा 8? इसका उत्तर आप भी जानते हैं और मैं भी। 

मूलभूत सुधार केवल मूलभूत नीतियों द्वारा ही लाए जा सकते हैं। 1991-96 में हमने नीतिगत बदलाव किया जिससे विदेश व्यापार में भारी बदलाव आया। हमने फॉरेन एक्सचेंज रैगुलेशन को दरकिनार कर दिया और इससे हमारा विदेशी मुद्रा भंडार काफी बढ़ गया। लोगों में इच्छा जगाई जानी चाहिए। लोगों के दिलों में एक उम्मीद जगाई जाए ताकि वे गरीबी के चक्र से निकल कर उससे ऊपर उठ सकें। प्रधानमंत्री किसान योजना से उन्हें लाभ नहीं होगा क्योंकि भूमि कम लोगों के पास है, अधिकतर कृषि मजदूर और अन्य मजदूर शहरों और कस्बों में रहते हैं। नीतिगत परिवर्तन के तहत मूल आय के तौर पर उन्हें सीधे पैसे ट्रांसफर करने होंगे। मोदी यह काम डाक्टर अरविंद सुब्रह्मण्यन को सौंप सकते हैं तथा उन्हें वापस बुला कर इस विभाग का नेतृत्व करने और योजना को लागू करने को कह सकते हैं।

जनता में भरोसा जरूरी
यदि हम 6-7 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर हासिल कर लें तो भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। वर्तमान नीतियों में सुधार करने अथवा प्रशासनिक प्रणाली में छोटे-मोटे बदलाव से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। अधिकारियों को असाधारण शक्तियां मिलने पर अधिक नुक्सान होगा। परिवर्तनकारी बदलाव लाने का सबसे प्रभावी तरीका यह है कि लोगों को समर्थ बनाया जाए और उनकी समझ, क्षमता और मेहनत में विश्वास किया जाए।-पी. चिदम्बरम

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