Edited By ,Updated: 16 Oct, 2019 01:45 AM
राजनीतिक पार्टियों में चाहे आपस में कितने भी मतभेद हों मगर जब बात चुनावी प्रचार तथा उसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री की हो तब वे एक ही कालोनी में साथ-साथ नजर आते हैं और वह है लाल बाग मार्कीट। दक्षिण मुम्बई की उक्त भीड़भाड़ वाली मार्कीट बैनर,...
राजनीतिक पार्टियों में चाहे आपस में कितने भी मतभेद हों मगर जब बात चुनावी प्रचार तथा उसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री की हो तब वे एक ही कालोनी में साथ-साथ नजर आते हैं और वह है लाल बाग मार्कीट। दक्षिण मुम्बई की उक्त भीड़भाड़ वाली मार्कीट बैनर, फ्लैक्सिज, पार्टी झंडे तथा अन्य सामग्री के लिए विख्यात है।
चुनावी सीजन में दुकानदार कुछ माह के लिए लाभ कमाना चाहते हैं मगर इस वर्ष इस व्यवसाय से जुड़े लोग निराश हैं। इसका कारण सोशल मीडिया साइट्स पर हो रही चुनावी मुहिम है। नेता लोग राजनीतिक पटल पर सोशल मीडिया और डिजीटल की ओर अपना सारा ध्यान लगाए हुए हैं। इस तरह दुकानदारों का धंधा आधा ही रह गया है।
तीन दशकों से दुकान चलाने वाले योगेश्वर पाटिल ने कई राजनीतिक पाॢटयों का उतार-चढ़ाव देखा। पिछले 32 वर्षों के दौरान उनकी दुकान चुनावी सामग्री से भरी रहती थी और विभिन्न पाॢटयों के कार्यकत्र्ता दुकान के इर्द-गिर्द मंडराते रहते थे। पाटिल का कहना है कि उनके 32 वर्ष के व्यवसाय में कई राजनेता उनकी दुकान पर आए जोकि पहले निचले स्तर पर कार्य करते थे। अब वह सांसद तथा मंत्री बन गए हैं। पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान पाटिल को 15 लाख का नुक्सान हुआ। अब पार्टियां चुनाव से 20 दिन पहले ही चुनावी सामग्री का आर्डर देती हैं, जोकि पहले की तुलना में बेहद कम है। उन्होंने सोचा कि बचा हुआ माल विधानसभा चुनावों में बिक जाएगा मगर ऐसा नहीं हुआ।
विक्रेताओं का कहना है कि समय बदल गया है। एक अन्य दुकानदार शंकर राणे का कहना है कि नेतागण डिजीटल हो गए हैं और अपना प्रचार सोशल मीडिया पर करने लग पड़े हैं जिससे उनकी चुनावी सामग्री ज्यों की त्यों पड़ी है। ऐसा भी समय था जब पाॢटयां चुनावी सामग्री को अधिमान देती थीं मगर अब गली-नुक्कड़ पर यह कम ही देखने को मिलता है। तकनीक बढऩे के कारण लोग ज्यादा डिजीटल हो चुके हैं।युवा पीढ़ी भी सोशल मीडिया से जुड़ी है जोकि अपना कथन ऑनलाइन ही प्रस्तुत करती है।