सरना और रणजीत सिंह में हुआ चुनावी गठजोड़

Edited By ,Updated: 08 Apr, 2021 04:22 AM

electoral alliance between sarna and ranjit singh

दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने के कुछ दिन बाद ही चुनावों के लिए पहला गठजोड़ होने की बात सामने आ गई है, जिसके अनुसार यह गठजोड़ शिरोमणि अकाली दल दिल्ली (सरना) और पंथक अकाली लहर (भाई रणजीत सिंह) के बीच

दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने के कुछ दिन बाद ही चुनावों के लिए पहला गठजोड़ होने की बात सामने आ गई है, जिसके अनुसार यह गठजोड़ शिरोमणि अकाली दल दिल्ली (सरना) और पंथक अकाली लहर (भाई रणजीत सिंह) के बीच हुआ। इस बात की जानकारी स. परमजीत  सिंह सरना और भाई रणजीत सिंह ने एक सांझे पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए दी। बताया गया कि इस गठजोड़ के तहत दिल्ली की 46 सीटों में से आठ पर पंथक अकाली लहर और 36 पर शिरोमणि अकाली दल दिल्ली द्वारा अपने उम्मीदवार खड़े किए जाएंगे। 

दो सीटों, जिन पर ‘जागो’ के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके और उनके भाई हरजीत सिंह जीके चुनाव लड़ रहे हैं, पर दोनों पाॢटयां अपने उम्मीदवार नहीं उतारेंगी, एक सीट, जिस पर केंद्रीय सिंह सभा के मुखी तरविंद्र सिंह मरवाह, जिन्होंने स. सरना को समर्थन दिए जाने की घोषणा की हुई है, चुनाव लड़ रहे हैं, पर शिरोमणि अकाली दल दिल्ली की ओर से कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया जाएगा। यह गठजोड़ क्या ईमानदाराना सोच पर आधारित है या फिर किसी सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है? यह सवाल उठने का कारण यह है कि कुछ वर्ष पूर्व भी गुरुद्वारा चुनावों के समय भाई रणजीत सिंह ने परमजीत सिंह सरना के साथ चुनाव गठजोड़ किया था। 

उस समय किए गए एक समझौते के तहत भाई रणजीत सिंह ने अपने उम्मीदवारों को शिरोमणि अकाली दल दिल्ली (सरना) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा था। उन चुनावों को प्रारंभिक प्रक्रिया के अनुसार जब पत्रों की जांच और वापसी की प्रक्रिया पूरी हो गई, तो भाई रणजीत सिंह ने तुरन्त रंग बदला और झट से स. सरना के चुनाव क्षेत्र में पहुंच, उनके विरुद्ध चुनाव प्रचार शुरू कर दिया। 

जब उनके विरोधी प्रचार के बावजूद स. सरना चुनाव जीत गए और उनकी पार्टी बहुमत में आ गई, जिसके चलते स. सरना के गुरुद्वारा कमेटी का अध्यक्ष बन पाने की संभावनाएं बनती नजर आने लगीं तो भाई रणजीत सिंह सरना के टिकट पर जीते अपने साथी सदस्यों का गुट बना, अलग से खड़े हो गए और स. सरना को अध्यक्ष न बनने की चुनौती दे डाली। जब उनके विरोध के बावजूद स. सरना का अध्यक्ष बन पाना निश्चित दिखाई देने लगा तो वह अपने गुट के सदस्यों को उनके हाल पर छोड़, रातों-रात दिल्ली से अमृतसर के लिए रवाना हो गए। 

अतीत की इस घटना की याद आ जाने के कारण ही यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि अब उन्होंने स. सरना के साथ जो गठजोड़ किया है, वह हालात की मांग पर आधारित है या एक बार फिर उन्होंने किसी विशेष रणनीति के तहत यह गठजोड़ किया है? इस सवाल का जवाब तो संभवत: चुनाव प्रक्रिया के पूरा होने के बाद ही मिल पाएगा। इस समय तो इस गठजोड़, जो सिख धर्म की दूसरी सर्वोच्च धार्मिक संस्था के आम चुनाव लडऩे के लिए किया गया है, की ईमानदाराना सोच पर आधारित होने के प्रति विश्वास प्रकट करते हुए, इसकी सफलता की कामना ही की जा सकती है। 

बात बाला प्रीतम दवाखाने की : दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की ओर से आम लोगों को बाजार से सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाए जाने के उद्देश्य से गुरुद्वारा बंगला साहिब में बाला प्रीतम दवाखाने की स्थापना की गई थी, उसके बाद दूसरी ब्रांच गुरुद्वारा नानक प्याऊ में कायम की गई। 

अब बताया गया है कि इनकी एक ब्रांच दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा के चुनाव क्षेत्र में कायम की गई है। बताया जा रहा है कि इन दवाखानों में जरूरतमंदों को 10 से 90 प्रतिशत सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाई जाती हैं। गुरुद्वारा कमेटी के इस दावे पर टिप्पणी करते हुए हरमनजीत सिंह अध्यक्ष सिंह सभा राजौरी गार्डन और सदस्य दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी ने कहा कि ये दवाखाने एक तो आम लोगों की पहुंच से दूर हैं, दूसरा कोई जरूरी दवाइयों की आशा में वहां पहुंचता है तो उसे कई बार निराश लौटना पड़ता है क्योंकि उसे वहां आवश्यक दवाई नहीं मिल पाती। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि उनकी अध्यक्षता वाली सिंहसभा के अधीन जो दवाखाना कायम किया गया है, उसमें हर दवाई, चाहे कितनी ही महंगी हो, जरूरतमंदों को मुफ्त उपलब्ध करवाई जाती है। किसी को निराश नहीं लौटाया जाता। 

धार्मिक संस्थाओं के भ्रष्टाचार : समय-समय धार्मिक संस्थाओं में फल-फूल रहे भ्रष्टाचार पर गंभीर ङ्क्षचता प्रकट की जाती रहती है, इस बढ़ रहे भ्रष्टाचार पर रोक लगाए जाने की भी बातें की जाती हैं परन्तु किसी को समझ में नहीं आता कि आखिर इस पर रोक लगे तो कैसे? 

बताया गया है कि इस संबंध में दर्शन सिंह (निष्काम) और उनके साथियों द्वारा एक अलग ही नीति अपनाई गई है, जिसके अनुसार वह गुरु गोलक में केवल एक रुपया मत्था टेकते हैं और अपने दसवंध की शेष राशि  जरूरतमंदों, विशेष रूप से उन विद्यार्थियों की मदद करने के लिए इस्तेमाल करते हैं, जो पारिवारिक, आर्थिक कमजोरी के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। बताया गया है कि उनकी इस सोच पर पहरा देने वालों में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। 

एक बदलाव : शिरोमणि अकाली दल दिल्ली की ओर से उम्मीदवारों की जो सूची जारी की गई है, उसमें पार्टी  उम्मीदवारों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला जिसके अनुसार पंजाबी बाग से इस बार दल के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना चुनाव नहीं लड़ रहे, उनके स्थान पर उनके छोटे भाई और दल के प्रधान महासचिव हरविंद्र सिंह सरना दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा को चुनौती देने मैदान में उतरेंगे। 

जागो और शिरोमणि अकाली दल (पंथक) में ‘गठजोड़’? : जग आसरा गुरु ओट (जागो) की ओर से जारी एक बयान के अनुसार जागो और शिरोमणि अकाली दल पंथक में हुए चुनाव गठजोड़ के तहत पंथक अकाली दल के मुखी परमजीत सिंह राणा रजिन्द्र नगर से पार्टी उम्मीदवार होंगे। बताया जाता है कि पंथक अकाली दल, वह पार्टी है, जिसके बैनर तले मनजीत सिंह जीके ने सन् 2007 में दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव लड़, अपने राजनीतिक अस्तित्व का एहसास करवाया था। 

...और अंत में: बीते दिनों दिल्ली में हुए एक समारोह में आए सज्जन जिनमें एक जत्थेदार भी थे, मिल-बैठे तो सिख युवकों में सिखी स्वरूप को तिलांजलि दिए जाने की ओर बढ़ रहे रुझान पर चर्चा छिड़ गई। एक सज्जन ने कहा कि पंजाब में लगभग बारह हजार गांव हैं और वहां सिख पंथ के तीन उच्च तख्त हैं। यदि तीनों तख्तों के जत्थेदार चार-चार हजार गांवों में सिख धर्म का प्रचार कर, सिखी स्वरूप को बचाने की मुहिम चलाने की जिम्मेदारी संभाल लें तो उत्साहपूर्ण परिणाम सामने आने शुरू हो सकते हैं। इस पर वहां मौजूद एक सज्जन बोले कि पौंडों और डालरों की ललक छोड़, कौन गांवों की मिट्टी फांकने के लिए तैयार होगा।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’


 

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