Edited By ,Updated: 20 Nov, 2015 11:30 PM
स्वास्थ्य ही राष्ट्रवासियों की एक प्रमुख व्यक्तिगत सम्पत्ति है। जिसका ध्यान नि:संदेह उन्हें खुद रखना चाहिए, परन्तु इस बात का पूर्ण दायित्व सरकार पर आ जाता है कि ...
(अविनाश राय खन्ना): स्वास्थ्य ही राष्ट्रवासियों की एक प्रमुख व्यक्तिगत सम्पत्ति है। जिसका ध्यान नि:संदेह उन्हें खुद रखना चाहिए, परन्तु इस बात का पूर्ण दायित्व सरकार पर आ जाता है कि नागरिकों की रोगों से रक्षा की जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य को जीवन जीने का मूल अधिकार घोषित किया है। केन्द्र तथा सभी राज्य सरकारें प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करके अस्पतालों, डिस्पैंसरियों तथा छोटे-बड़े स्वास्थ्य केन्द्रों का संचालन करती हैं। डाक्टरों, नर्सों, जांच केन्द्रों तथा औषधियों के रूप में हर प्रकार की सुविधा नागरिकों के लिए उपलब्ध करवाई जाती है। इसके बावजूद भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य रक्षा व्यवस्था सदैव आलोचना का केन्द्र बनी रहती है।
पंजाब मानवाधिकार आयोग के सदस्य होने के नाते मैंने स्वास्थ्य को भी मानवाधिकार की तरह समझा और अनेकों अस्पतालों तथा चिकित्सा केन्द्रों का अचानक दौरा किया। हर जगह सफाई को लेकर एक सामान्य समस्या नजर आई। शौचालय अक्सर गंदे ही नजर आते हैं। अक्सर प्रत्येक सरकारी अस्पताल में रोगियों की कतारें देखी जा सकती हैं जो इस बात का प्रमाण है कि सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों की कमी है। इसके अतिरिक्त डाक्टरों, नर्सों तथा अन्य स्टाफ का पूरी संख्या में उपस्थित न रहना भी इन अस्पतालों की एक सामान्य समस्या है।
शहरों के अस्पतालों में लिफ्टें अक्सर खराब रहती हैं या धीरे चलती हैं। रोगियों को ले जाने के लिए स्ट्रैचर तथा पहिए वाली कुर्सियां तत्काल उपलब्ध नहीं होतीं। कुछ विशेष औषधियां तथा चिकित्सा में प्रयोग होने वाले अन्य सामान भी कई बार सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं होते जिसके लिए रोगी के रिश्तेदारों को बार-बार बाहर से चिकित्सा सामग्री खरीदकर लानी पड़ती है। रोगियों को भर्ती करने के बाद जो बिस्तर आबंटित किया जाता है उस पर मैली या फटी चद्दरें ही अक्सर देखने को मिलती हैं।
आपातकालीन वार्डों में कई बार तुरन्त डाक्टर ही उपलब्ध नहीं होते। इन अस्पतालों में रोगियों को दिया जाने वाला भोजन भी स्वास्थ्य के पैमाने पर खरा नहीं उतरता। मैंने अपने हर दौरे के बाद कुछ सुझावों को संबंधित सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया परन्तु ये सारी समस्याएं आज भी लगभग उसी रूप में विद्यमान हैं।
स्वास्थ्य बेशक राज्य सरकार का विषय है परन्तु केन्द्र सरकार को आदर्श अस्पतालों की स्थापना के लिए एक गम्भीर और दूरगामी प्रभाव वाली योजना बनानी ही पड़ेगी। हमारे देश में लगभग 40 से 45 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से नीचे मानी जाती है। इन लोगों के लिए सरकारी अस्पताल ही स्वस्थ जीवन की आशा है। सरकार इतने बड़े जनसमुदाय की अनदेखी नहीं कर सकती। सरकार को अपनी स्वास्थ्य सेवाएं इतने सुन्दर और दक्ष स्तर पर संचालित करनी चाहिएं कि जिससे मध्यम वर्ग के लोग भी इन सेवाओं का लाभ उठा सकें। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बड़े-बड़े निजी अस्पतालों में सामान्य रोगों की चिकित्सा पर भी बहुत बड़ी राशियां खर्च की जाती हैं। यदि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा, स्वच्छता तथा पूर्ण प्रबंधन का स्तर ऊंचा उठता है तो सरकार मध्यम वर्गीय लोगों को भी इन अस्पतालों में चिकित्सा के लिए आकॢषत कर सकती है और बेशक इस वर्ग से चिकित्सा का खर्च भी वसूल किया जा सकता है।
सरकारी अस्पतालों के लिए धन की व्यवस्था उपलब्ध कराना सरकार के लिए कोई समस्या नहीं है। समस्या केवल धन के समुचित उपयोग से संबंधित है अर्थात समस्या केवल प्रबंधन से संबंधित है। सरकार यह समझती है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा हमारे समाज का एक आवश्यक और अभिन्न अंग है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अब इस सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए विशेष योजनाएं तैयार की हैं। डर इस बात का है कि केन्द्र सरकार योजनाएं तैयार करने के बाद धन भी उपलब्ध करवा देगी परन्तु उनका क्रियान्वयन स्थानीय स्तर पर ही होना होता है। इसलिए केन्द्र सरकार को अब केवल योजनाएं बनाने और धन उपलब्ध कराने तक ही अपना कत्र्तव्य नहीं समझना चाहिए, अपितु केन्द्र सरकार को सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में संवेदनशीलता पैदा करने के लिए कोई महत्वाकांक्षी राजनीतिक कार्य योजना भी शामिल करनी चाहिए।
हर शहर में अनेकों सरकारी अस्पताल तथा अन्य केन्द्र होने के बावजूद लोगों का रुझान प्राइवेट अस्पतालों की तरफ क्यों बढ़ता जा रहा है? यदि हम लोगों के निजी अस्पतालों की तरफ बढ़ते रुझान का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होगा कि केवल इच्छाशक्ति का अभाव ही सरकारी अस्पतालों की कमियों का मुख्य कारण है।
सर्वप्रथम एक आदर्श सरकारी अस्पताल में हर प्रकार के मौलिक साधनों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। अस्पताल की प्रबंध व्यवस्था जैसे एक-एक कोने की सफाई, रोगियों के बैठने के स्थान, बिस्तर, स्नानागार तथा शौचालय आदि की उत्तम स्वच्छता के लिए एक विशेष अधिकारी को दायित्व सौंपा जाना चाहिए। आपातकालीन वार्डों में सामान्यत: गंदगी देखकर रोगी के और अधिक अस्वस्थ होने की संभावना हो जाती है। सरकारी अस्पतालों की गंदगी के बारे में तो यह आम धारणा है कि वहां जाकर नए इन्फैक्शन शरीर पर हमला कर देंगे। इसलिए पूर्ण स्वच्छता अभियान को सरकारी अस्पतालों में इलाज का प्रथम सूत्र समझा जाना चाहिए। अस्पतालों में खाली पड़े स्थानों पर छोटे-छोटे पार्क या फूलों की बागवानी से अस्पताल की सुन्दरता को चार चांद लगाए जा सकते हैं। इन कार्यों में बहुत अधिक धन भी नहीं लगता।
इन अस्पतालों में रोगियों को दिए जाने वाले भोजन का स्तर भी उत्तम कोटि का होना चाहिए जिसके लिए विशेष धन की नहीं अपितु संवेदनशीलता तथा ईमानदारी की आवश्यकता है। रोगियों के रिश्तेदारों तथा अन्य आगन्तुकों के लिए अच्छे स्तर के भोजनालय भी कमाई के साधन बन सकते हैं। डाक्टरों, नर्सों तथा सफाई कर्मचारियों सहित अस्पताल के पूरे स्टाफ को जनता के प्रति संवेदनशील होने का विशेष प्रशिक्षण केवल 2-3 दिन की अवधि में ही सम्पन्न किया जा सकता है।
अस्पताल के स्टाफ को अपनी सेवा अवधि के प्रति भी पूरी तरह सचेत रहने के लिए बाध्य किया जा सकता है। समय पर ड्यूटी प्रारम्भ न होने पर सख्त कार्रवाई प्रारम्भ होनी चाहिए। केन्द्र या राज्य सरकारें जो भी धन किसी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र के लिए निर्धारित करती हैं उसके खर्च का दायित्व स्थानीय अस्पताल प्रबंधन पर डालना चाहिए। निर्धारित कोष के आधार पर बैड तथा बिस्तर अच्छी गुणवत्ता के हों, अधिक से अधिक स्टॉफ की व्यवस्था हो, स्वच्छता का भी पूरा ध्यान रखा जाए आदि निर्णय अस्पताल प्रबंधन पर ही छोड़ देने चाहिएं। डाक्टरों के लिए आवास व्यवस्था अस्पताल के परिसर में या अत्यन्त निकट ही की जानी चाहिए।
जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘आदर्श ग्राम योजना’ के माध्यम से प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र के एक-एक गांव को आदर्श गांव के रूप में विकसित करने का मार्ग उपलब्ध कराया है उसी प्रकार सरकारी अस्पतालों के स्तर में सुधार लाने के लिए राज्य सरकारें स्थानीय विधायकों को प्रेरित करें। वैसे इस कार्य में स्थानीय गैर-सरकारी समाजसेवी तथा धार्मिक संस्थाओं और उद्योगपतियों का भी सहयोग लिया जा सकता है। यदि हमारे देश की राजनीति ने ‘आदर्श ग्राम योजना’ की तरह ‘आदर्श अस्पताल’ का संकल्प क्रियान्वित कर दिखाया तो भारत अवश्य ही आधुनिक युग की एक महान सभ्यता के रूप में खड़ा नजर आएगा।
भारत की सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं पर अपार धनराशि खर्च कर रही हैं, परन्तु यदि इसी धन व्यय के साथ ईमानदारी और संवेदनशीलता को जोड़ दिया जाए तो भारत सरकार की स्वास्थ्य सेवा सारे विश्व में एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर पाएगी।