अपनी लापरवाही से ही बना सांसों का आपातकाल

Edited By ,Updated: 07 May, 2021 05:42 AM

emergency created due to his carelessness

...कोरोना...कोरोना। वर्तमान समय में यही एक ऐसा शब्द है जो हर किसी की जुबां से सुनने को मिल रहा है और आखिर मिले भी क्यों नहीं! कोरोना इस कदर अपना वर्चस्व बनाने की फिराक में है, मानो इससे बड़ी ताकत विश्व में कोई है ही नहीं। होने को तो आज कोरोना...

...कोरोना...कोरोना। वर्तमान समय में यही एक ऐसा शब्द है जो हर किसी की जुबां से सुनने को मिल रहा है और आखिर मिले भी क्यों नहीं! कोरोना इस कदर अपना वर्चस्व बनाने की फिराक में है, मानो इससे बड़ी ताकत विश्व में कोई है ही नहीं। होने को तो आज कोरोना महामारी को फैले लगभग डेढ़-दो वर्ष हो रहे हैं लेकिन इसने पूरे विश्व को कई दशक पीछे धकेल दिया है। इस वर्ष के आर भ में रंग थोड़ा भले ही फीका पड़ा था, लोगों ने सोचा भी कि अब तो कोरोना महामारी चली गई, हम बच गए और लापरवाही शुरू हो गई लेकिन कोरोना ने जब पुन: प्रहार किया तो कोई भी इससे संभल नहीं पाया। 

अपनी इस दूसरी लहर के सैलाब में कोरोना ने कई परिवार तबाह कर दिए। एक बार फिर मजदूरों को रोजी-रोटी न मिलने के डर से घरों की ओर मुश्किल परिस्थितियों में पलायन का रास्ता अपनाना पड़ा क्योंकि कोरोना से तो बच जाते मगर भुखमरी मौत का काल बनकर सामने खड़ी दिखने लग जाती थी। आज कहीं रात्रि क र्यू लगाया जा रहा है तो कहीं वीकैंड लॉकडाऊन तो कहीं सम्पूर्ण लॉकडाउन, आखिर सस्ती से ही मगर जान तो बचानी है। शासन-प्रशासन, सरकार, जनता सब के हाथ-पांव फूल चुके हैं। मानो देश में सांसों का आपातकाल-सा आ गया हो। जब कोरोना धीरे-धीरे समाप्ति की ओर जा रहा था तो लोगों ने सुरक्षा मानकों व मास्क को इस कदर खुद से दूर कर लिया मानो अमृत प्राप्ति हो गई हो, आयोजन ऐसे होने लगे मानो कई दशकों से कुछ हुआ ही न हो। 

बाजारों में भीड़ ऐसी उमड़ी कि न जाने बाजार में जिंदगी से कीमती क्या चीज बिक रही होगी। और तो और, राजनीतिक दलों ने दनादन ऐसी रैलियां व विशाल कार्यक्रम करने शुरू किए मानो इसके बाद मौका ही नहीं मिलेगा। इस आग में घी का काम शादियों व चुनावों के मुहूर्तों ने किया और जा रही कोरोना महामारी ने यहीं से अपने पांव एक बार फिर पसारे और इस कदर फैला कि स्थिति सभी के सामने है। अब तो मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे भारत में मौत व जीवन के बीच जीत सको तो जीतो का खेल सिलसिला शुरू हो गया हो। लेकिन दुख होता है इस खेल में कइयों ने अपनों को हार दिया है और कइयों के साथियों का जीवन दाव पर लगा है। भारत के लोगों को अभी भी वक्त रहते संभल जाना चाहिए अन्यथा स्थिति इससे भी भयंकर व भयावह होते समय नहीं लगेगा। 

फिर न मास्क काम आएगा और न ही ‘दो गज की दूरी है जरूरी’ जैसी बातें। भारत व यहां के लोगों ने विभिन्न कालखंडों में अनेकों महामारियों के समाधान किए हैं। कोरोना का भी अंत भारत से ही होगा ऐसा प्रतीत होता है लेकिन इसके लिए आवश्यकता है देशवासियों के संयुक्त दृढ़ संकल्प की, मजबूत दृढ़इच्छा शक्ति व संयम के साथ धैर्य रखकर विवेक से काम करते हुए स्वयं व अपनों के लिए सुरक्षा मानकों को अपनाने की। राज्य व केन्द्र सरकारें मुसीबत पडऩे पर तो व्यवस्था कर रही हैं मगर यही व्यवस्थाएं अगर पिछले एक वर्ष से सुचारू हो जातीं तो आज स्थिति ऐसी नहीं होती। राजनेता खुद रैलियां व कार्यक्रम करते रहें और जनता स ती का पालन करे, यह भी ठीक नहीं है। आदेश सभी के लिए एकरूप होने चाहिएं, इसमें आम-खास और विशेष का फॉर्मूला नहीं लगना चाहिए। 

और रही कोरोना के प्रति मानसिक संक्रमण की बात तो लोगों को समझना होगा कि बुरे से बुरा वक्त आता है तथा चला जाता है क्योंकि यह वक्त है यह न कभी रुका है न ही किसी के लिए कभी झुका है। सब्र रखकर थोड़ी स ती झेलकर इस कोरोना नामक विपदा से भी पार पाया जा सकता है। मौतों के आंकड़े देख-सुनकर कोरोना का लोगों में खौफ फैल चुका है लेकिन डरने की बात नहीं है। भारत में एक दिन में लगभग दो लाख से अधिक लोग कोरोना पर विजय भी पा रहे हैं। कोरोना के भय को अपने मन से निकालकर एक बार पुन: नई शुरूआत के लिए राष्ट्र व समाज के विकास हेतु रचनात्मक कार्य करते हुए एक आदर्श शीर्ष स्थान पर पहुंचना है। यह तभी संभव हो सकता है जब कोरोना पर विजय प्राप्त होगी।-डॉ.मनोज डोगरा
 

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