मैडीकल व्यवसाय में भी ‘लाभ-हानि’ का बही खाता चलता है

Edited By ,Updated: 23 Nov, 2019 12:27 AM

even in the medical business the book of profit and loss runs

किसी भी समाज में अगर ईश्वर के जैसा या उसके बराबर ही आदर और सम्मान दिलाने वाला अगर कोई व्यवसाय है तो उसमें मैडीकल और उससे जुड़े वे सब लोग आते हैं जो एक तरह से मनुष्य को बीमारी, दुर्घटना या किसी प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों की जीवन रक्षा के लिए जाने...

किसी भी समाज में अगर ईश्वर के जैसा या उसके बराबर ही आदर और सम्मान दिलाने वाला अगर कोई व्यवसाय है तो उसमें मैडीकल और उससे जुड़े वे सब लोग आते हैं जो एक तरह से मनुष्य को बीमारी, दुर्घटना या किसी प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों की जीवन रक्षा के लिए जाने जाते हैं। इनमें डाक्टर, नर्स इंसान के रक्षक और अस्पताल, डिस्पैंसरी से लेकर दवाइयों की दुकान बीमार का इलाज करने के साधन के रूप में माने जाते हैं। 

हरेक व्यवसाय में आर्थिक लाभ-हानि का जो बही खाता चलता है वह मैडीकल व्यवसाय में नहीं रखा जा सकता और इसीलिए इसे सेवा का जरिया समझा जाता रहा है। आज स्थिति लगभग उलटी हो गई है और इसे भी उसी तरह धन लाभ कमाने का जरिया मानने का चलन शुरू हो गया है जैसा कि दूसरे काम-धंधों में माना जाता है। इसका एक उदाहरण यह है कि पहले उपभोक्ता संरक्षण कानून में स्वास्थ्य की देखभाल करने को अन्य सेवाओं की भांति सेवा के दायरे में रखा गया था और यदि मैडीकल सेवा में कोई खामी होती थी तो इस कानून के दायरे में दंड दिए जाने का प्रावधान था लेकिन अब ऐसा नहीं कर सकते, पीड़ित को सामान्य मुकद्दमे की तरह विभिन्न अदालतों में न्याय की गुहार लगानी होगी। 

मैडीकल व्यवसाय में नैतिकता 
एक सर्वे के मुताबिक इस व्यवसाय में काम करने वाले डाक्टर अनेक तरह के टैस्ट करने वाली लैबोरेटरी से 40 से 60 प्रतिशत तक किकबैक पाते हैं जो उन्हें मरीज की जेब से निकलवाने की काबिलियत के रूप में मिलता है। इसमें जरूरी टैस्ट भी मर्ज को दूर करने के लिए जरूरी बताकर मरीज को उन्हें करवाने के लिए मजबूर किया जाता है। अब इन टैस्टों का नाम भी है और इन्हें कराने के लिए मरीज का जो खून, यूरीन, बलगम आदि लिया जाता है वह नालियों में बहा दिया जाता है। इन टैस्टों के नाम भी हैं और इन्हें नाली या सिंक कहा जाता है। किसी भी लैबोरेटरी में किसी कर्मचारी को भरोसे में लेकर यह सच उगलवाया जा सकता है। 

30 से 40 प्रतिशत तक डाक्टर को किसी भारी फीस लेने वाले स्पैशलिस्ट को रैफर करने के लिए मिलता है और लगभग इतना ही अस्पताल की सेवाओं में से मिलता है। इसके साथ ही बड़े नामी-गिरामी अस्पतालों के पैनल पर बने रहने के लिए डाक्टर को उनमें मरीजों को भेजने के लिए अपने निर्धारित कोटे को पूरा करना होता है, तब ही वह उस अस्पताल के पैनल पर रह सकता है। 

डाक्टर दम्पति चलाते हैं गोरखधंधा
एक और गोरखधंधा चलता है जो आमतौर से डाक्टर दम्पति चलाते हैं। यह वन मैन शो होता है। दम्पति में से एक डाक्टर की भूमिका निभाता है और दूसरा अपने ही घर के कुछ कमरों को नॄसग होम की शक्ल देता है, इसमें 10वीं फेल नर्स, ढीली या कसी हुई वर्दी पहने अनपढ़ वार्ड बाय होते हैं। नर्स रिसैप्शन से लेकर इंजैक्शन लगाने, ग्लूकोज चढ़ाने से लेकर ऑप्रेशन सहायक तक का काम करती है और रात को आई.सी.यू. के बाहर भी बैठती है ताकि अगर कोई एमरजैंसी हो जाए तो फौरन दूसरी मंजिल पर रहने वाले डाक्टर दम्पति में से किसी एक को बुला सके। यहां तक के किस्से हैं कि मरीज की मृत्यु होने के बाद भी नकली ऑप्रेशन का ढोंग रचकर मोटी रकम वसूली जाती है। इस तरह के क्लीनिक और नॄसग होम में जबरदस्ती सर्जरी से लेकर स्त्रियों की बच्चेदानी यह कहकर निकाल दी जाती है कि फायब्राड हो गए हैं जबकि ये प्रत्येक महिला में होते हैं। इसी तरह कॉस्मैटिक ट्रीटमैंट के नाम पर फेशियल, वैक्सिंग करने की बात कहकर त्वचा का इतना बुरा हाल कर देते हैं जिससे जान तक खतरे में पड़ सकती है। 

स्वस्थ रहने का अधिकार 
हमारे देश में चिकित्सा व्यवसाय की सबसे पहली कड़ी सरकारी अस्पतालों की है जो अनेक प्रशासनिक खामियों के बावजूद सामान्य व्यक्ति की बीमारी की अवस्था में पहली पसंद हैं। इनमें भीड़ ही इतनी होती है कि डाक्टर के मन में मरीज का आर्थिक शोषण करने की बात ही नहीं आ पाती, दूसरे ज्यादातर बीमार इलाज के लिए ही पैसों की कमी से जूझते रहते हैं। जो सम्पन्न होते हैं, वे अपने राजनीतिक या सामाजिक रुतबे की बदौलत यहां वी.आई.पी. की तरह अपनी चिकित्सा कराने आते हैं और कभी-कभी जरूरत न होने पर भी वार्ड में टिके रहते हैं और मुफ्त में महंगी से महंगी सुविधाओं का उपभोग करते रहते हैं। 

दूसरी कड़ी है चिकित्सा को शुद्ध व्यवसाय और जबरदस्त मुनाफे के धंधे के रूप में देखने वाले बड़े व्यावसायिक और औद्योगिक घरानों द्वारा स्थापित फाइव स्टार अस्पतालों की जहां या तो वे लोग इलाज कराने जाते हैं जिनके पास पैसा फैंक कर तमाशा देखने की ताकत है या फिर वे जिनकी बीमारी का खर्च बीमा कम्पनियां चुकाती हैं। आम आदमी या थोड़ी-बहुत हैसियत रखने और चिकित्सा के खर्च का जुगाड़ कर सकने वाला इनमें चला गया तो उसकी हालत गले में फंसी हड्डी की तरह हो जाती है जो न निगलते बनती है और न उगलते। 

तीसरी कड़ी है उन धर्मार्थ और शुद्ध सेवा करने की नियत से खोले गए चिकित्सा संगठनों और संस्थानों की जो लगभग मुफ्त इलाज की सुविधाएं देते हैं। इनकी संख्या बहुत कम है लेकिन इनमें चिकित्सा के उच्चतम पैमानों का पालन किया जाता है और कुछ की ख्याति तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी है। एक चौथी कड़ी भी है जो झोलाछाप डाक्टरों की है, झाड़ फूंक, गंडे-ताबीज, भूत-प्रेत के डर जैसी बातों से इलाज करने के बहाने लोगों को ठगने का काम करते हैं। 

इन सब परिस्थितियों के कारण क्या यह जरूरी नहीं है कि देश में प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ रहने का अधिकार मिले और इसके लिए सभी राजनीतिक दल एक स्वर से सरकार से कानून बनाने की मांग करें जिसका मसौदा ऊपर कही गई चारों कडिय़ों तथा अन्य वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाए? दुनिया का कोई भी देश अस्वस्थ, बीमार और कमजोर नागरिकों के बल पर तरक्की नहीं कर सकता, इसलिए स्वस्थ रहने को सर्वोच्च प्राथमिकता मिले और सभी के लिए एक जैसी चिकित्सा सुविधाएं हों और इसके लिए आंदोलन भी करना पड़े तो उससे हिचकना नहीं चाहिए क्योंकि यह जनहित का मुद्दा है।-पूरन चंद सरीन
 

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