‘सरकार का हर विरोध देशद्रोही कारनामा करार दिया जाता है’

Edited By ,Updated: 10 Mar, 2021 04:39 AM

every opposition to the government is called a traitorous act

सरकारी अस्पतालों के अस्तित्व के बिना लाखों रुपए की फीस लेने वाले प्राइवेट अस्पतालों में किसी श्रमिक, किसान, रोजाना कमाने वाले मजदूर, छोटे कारोबारियों के बच्चे, मां-बाप या पत्नी का इलाज करवाना संभव है? सरकारी स्कूलों और कालेजों के मुकाबले क्या...

सरकारी अस्पतालों के अस्तित्व के बिना लाखों रुपए की फीस लेने वाले प्राइवेट अस्पतालों में किसी श्रमिक, किसान, रोजाना कमाने वाले मजदूर, छोटे कारोबारियों के बच्चे, मां-बाप या पत्नी का इलाज करवाना संभव है? सरकारी स्कूलों और कालेजों के मुकाबले क्या प्राइवेट शैक्षणिक अदारों की मनमर्जी से निर्धारित की गई फीसों को देकर आम आदमी के बच्चों का पढऩा संभव है? रेल मंत्रालय यदि कार्पोरेट घरानों के सुपुर्द कर दिया जाए तो क्या बढ़े हुए किराए से एक आम नागरिक ट्रेन में सफर कर सकेगा? 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा की है कि वह सिर्फ 4 क्षेत्रों के बिना समस्त सरकारी क्षेत्र का निजीकरण करने जा रहे हैं क्योंकि सरकारों का काम कारोबार करना नहीं बल्कि लोगों की भलाई करना है। इसका मतलब यह है कि सरकार अब समस्त अर्थव्यवस्था को लुटेरे कार्पोरेट घरानों के सुपुर्द कर लोक कल्याण का जिम्मा प्रत्यक्ष रूप में धनाढ्य लोगों के हाथों में सौंपना चाहती है जिनकी कृपा से ही लोगों का बड़ा हिस्सा गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, कुपोषण तथा अनपढ़ता की चक्की में पिस रहा है। 

निजीकरण का अर्थ यह है कि पिछले 73 वर्षों के दौरान लोगों की खून-पसीने की कमाई पर सरकारी खजाने के साथ जो रेलवे, डाक संचार विभाग, हवाई सेवाएं, तेल कारोबार, खनन, बिजली, सड़कें, बैंक, बीमा तथा अन्य कारोबारी उद्योग निर्मित हुए हैं, वे सरकारी सम्पत्ति को मिट्टी के भाव कार्पोरेट घरानों, विशेषकर अंबानी तथा अडानी जैसे दोस्तों के सुपुर्द कर देंगे। फिर यदि कोई व्यक्ति इन उद्योगपतियों के बने हुए माल या उपलब्ध करवाई गई सेवाओं के महंगे होने की गुहार लगाएगा तब सरकारी जवाब होगा कि महंगाई सरकार ने नहीं बल्कि कार्पोरेट घरानों तथा अंतर्राष्ट्रीय कार्पोरेशनों ने की है जिनके हवाले लोगों की सम्पत्ति को खुद सरकार ने किया है। 

यह सरासर एक चालाकी और धोखा है जिसको अभी से ही सरकारी मीडिया तथा संघ प्रचार मशीनरी के मुंह में डाल दिया गया है। जिन सरकारी क्षेत्रों का निजीकरण किया जा रहा है उन्होंने अपनी कार्यशैली से इन संस्थानों की सम्पत्ति में ही बड़े स्तर पर बढ़ौतरी नहीं की बल्कि अरबों रुपए टैक्स के रूप में सरकार की झोली में डाले हैं और हर समय सहायता भी की है। यदि कुछ सरकारी क्षेत्र घाटे में चल रहे हैं तो उसकी जिम्मेदारी बेमतलब की सरकारी दखलअंदाजी, भ्रष्टाचार तथा सरकारी क्षेत्र से बहुत अधिक अनदेखी पर है। 

सभी श्रमिक कानूनों को रद्द कर 4 लेबर कोड लागू हो जाने की रोशनी में सरकारी क्षेत्र के खत्म होने से स्थायी  नौकरी और कर्मचारियों को मिल रही मौजूदा सहूलियतों का पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा। ठेकेदारी प्रथा के अधीन न तो काम करने के घंटे निर्धारित हैं और न ही किसी भत्ते या पदोन्नति की गारंटी है। ऐसा प्रशासन श्रमिक वर्ग के लिए ‘जंगल के राज’ तथा ‘गुलामी’ का प्रतीक है। 

बिजली दरों, रेल किराया, शिक्षा प्राप्ति के लिए फीसें, बीमारी का इलाज, पानी बिल अर्थात जिंदगी की प्रत्येक जरूरी वस्तु तथा सेवाओं की कीमतों में मनमर्जी करने के लिए कार्पोरेट घरानों तथा धनाढ्य उद्योगपतियों को सभी कुछ देकर सरकार अपनी जिम्मेदारियों से किनारा करना चाहती है। लोगों के धन को लूटा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में निजी क्षेत्र की सेवाओं को हासिल करने के बेहद इच्छुक हैं तथा इसको देश के विकास तथा लोगों के कल्याण की कुंजी बता रहे हैं। 

निजी क्षेत्र द्वारा लोगों को जरूरी सेवाएं देने की मिसाल निजी अस्पतालों के अंदर मरीजों को दिए जा रहे लाखों के बिल, प्राइवेट शैक्षणिक सैक्टर की भारी फीसें, पहुंच से बाहर बिजली  तथा पानी की दरें देखी जा सकती हैं। पैट्रोल तथा डीजल की मूल्य वृद्धि के बारे में जब कभी सरकारी तथा भाजपा प्रवक्ता से पूछा जाता है तो उनका गला सूख जाता है और आंखें शर्मसार हो जाती हैं क्योंकि यदि इसके लिए वह अम्बानी और अडानी को जिम्मेदार ठहराते हैं तो भी जिम्मेदार तो प्रधानमंत्री को समझा जाएगा। इसमें कोई शंका नहीं कि जिस प्रकार की नई उदारवादी आर्थिक नीतियों को मोदी सरकार लागू कर रही है उससे लोगों की तबाही निश्चित है।

लोगों की सारी सम्पत्ति के मालिक को देसी तथा विदेशी कार्पोरेट सैक्टर को बनाया जा रहा है। इस विश्वासघात को लोगों के कल्याण का नाम दिया जा रहा है। ऐसे विश्वासघाती कदमों का विरोध जताने वाले लोगों की जुबान बंद करने के लिए ऐसे कानूनों का निर्माण किया जा रहा है जिससे जर्मनी में ‘हिटलरशाही’ की याद ताजा हो जाती है। सरकार का हर विरोध देशद्रोही कारनामा करार दिया जाता है। लोकहितों की रक्षा के लिए लिखना, बोलना तथा अभिव्यक्ति एक संगीन गुनाह करार दे दिया जाता है जिसकी सजा कथित आरोपियों को लम्बी कैदों और पुलिस टॉर्चर देकर पूरा किया जाता है।-मंगत राम पासला

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