शैक्षणिक संस्थाओं में ‘यौन’ शोषण बर्दाश्त नहीं

Edited By ,Updated: 09 Feb, 2020 02:21 AM

exploitation in educational institutions is not tolerated

कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन शोषण रोकने के लिए वर्ष 2013 में भारतीय संसद ने एक देशव्यापी कानून पारित किया जिसमें यह प्रावधान था कि जिस किसी कार्यस्थल पर 10 या 10 से अधिक महिलाओं का प्रतिदिन आना-जाना हो उस कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण की हरकतों...

कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन शोषण रोकने के लिए वर्ष 2013 में भारतीय संसद ने एक देशव्यापी कानून पारित किया जिसमें यह प्रावधान था कि जिस किसी कार्यस्थल पर 10 या 10 से अधिक महिलाओं का प्रतिदिन आना-जाना हो उस कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण की हरकतों के विरुद्ध शिकायतों को सुनने के लिए एक आन्तरिक शिकायत समिति बनाई जानी चाहिए जिसमें महिलाओं का वर्चस्व रखा जाए। यह आंतरिक शिकायत समिति यौन शिकायतों की शोषण पर जांच करके कार्यस्थल के प्रबन्धकों या जिलाधिकारी को कार्रवाई करने के लिए सिफारिश करेगी। 

इस कानून में निराधार और झूठी शिकायतों के विरुद्ध कार्रवाई के भी प्रावधान रखे गए थे। जिस कार्यस्थल पर ऐसी आंतरिक शिकायत समिति न बनी हो उसके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए प्रत्येक जिलाधिकारी द्वारा गठित स्थानीय समिति सुनवाई करेगी। जहां 10 से कम महिलाएं कार्य करती हैं वहां यौन शोषण की शिकायत सीधा जिले की स्थानीय समिति को की जा सकती है। 

भवन निर्माण में लगी मजदूर महिलाओं को भी इस कानून का संरक्षण दिया गया है
कार्यस्थल की परिभाषा को भी इस कानून में बहुत व्यापक रूप से स्पष्ट किया गया है। इस परिभाषा में सरकारी, गैर-सरकारी हर प्रकार के विभाग और कार्यालय शामिल हैं। आवासीय इकाइयों अर्थात घरों को भी कार्यस्थल घोषित किया गया है। कार्यस्थल परिभाषित करने के पीछे एक ही भाव है कि जहां कहीं भी महिलाओं का आना-जाना होता है उन्हें इस कानून का संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। यहां तक कि असंगठित क्षेत्र जैसे भवन निर्माण में लगी मजदूर महिलाओं को भी इस कानून का संरक्षण दिया गया है। 

शैक्षणिक संस्थाओं को भी स्पष्ट रूप से इस परिभाषा में शामिल किया गया है। जब हम शैक्षणिक संस्थाओं की बात करते हैं तो उसमें अध्यापिकाएं या अन्य स्टाफ के साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करने वाली छात्राएं भी शामिल हैं। परन्तु अब तक यह देखा गया है कि भारत की शैक्षणिक संस्थाएं अर्थात स्कूल, कॉलेज तथा अन्य उच्च शिक्षा के सरकारी तथा गैर-सरकारी सभी संस्थान छात्राओं को इस कानून का संरक्षण देने के प्रति उदासीन हैं। यदि केवल उच्च शिक्षा की बात की जाए तो अमरीका और चीन के बाद भारत का तीसरा स्थान है। भारत में लगभग एक हजार विश्वविद्यालय तथा 40 हजार के करीब उच्च शिक्षण संस्थान चल रहे हैं। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इन उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रतिदिन प्रवेश करने वाली छात्राओं को यौन शोषण निवारण कानून का संरक्षण देने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए।

महिला छात्राओं, पुरुष छात्रों तथा ट्रांसजैंडर छात्रों को भी शामिल किया गया 
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा तकनीकी शिक्षा की अखिल भारतीय परिषद् ने विशेष नियम घोषित करके उच्च शिक्षण संस्थाओं को महिलाओं की शिकायतों के विरुद्ध आन्तरिक शिकायत समितियां बनाने के लिए निर्देश जारी किए हैं। इन निर्देशों में महिला कर्मियों के अतिरिक्त महिला छात्राओं और यहां तक कि पुरुष छात्रों तथा ट्रांसजैंडर छात्रों को भी शामिल किया गया है। शैक्षणिक कार्यस्थल को भी बड़े व्यापक रूप से भी परिभाषित किया गया है। शैक्षणिक संस्थानों की पूरी भूमि के साथ-साथ घर से वहां पहुंचने तक के यातायात साधन, किसी भी प्रकार के उत्सवों या खेलों के आयोजन वाले स्थल आदि भी कार्यस्थल की परिभाषा में शामिल किए गए हैं। छात्रा का अर्थ शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रवेश प्राप्त कर चुकी छात्राओं के साथ-साथ उन कन्याओं से भी है जो प्रवेश प्राप्त  करने के लिए या शिक्षा से संबंधित किसी गतिविधि के लिए उन संस्थाओं में प्रवेश करती है। 

यौन शोषण का व्यापक अर्थ महिलाओं को किसी भी प्रकार से नीचा दिखाने जैसी हरकतों को भी अपनी परिभाषा में शामिल करता है। प्रत्येक शिक्षण संस्थान से यह अपेक्षा की गई है कि वे महिलाओं के विरुद्ध यौन शोषण के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति पर चलें। इसके लिए नियमित रूप से जागृति कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिएं। किसी भी प्रकार की शिकायत प्राप्त करने के लिए एक वरिष्ठ महिला अध्यापिका की अध्यक्षता में 8 अन्य महिलाओं की आन्तरिक शिकायत समिति बनाई जानी चाहिए। यह समिति किसी भी शिकायत का निपटारा शिकायत प्राप्ति के 90 दिनों के भीतर करे। 

यदि किसी उच्च शिक्षण संस्थान ने अब तक शिकायत निवारण समितियों के गठन जैसी व्यवस्था नहीं की तो उन्हें तुरंत उक्त कानून तथा विश्वविद्यालय आयोग और तकनीकी शिक्षा परिषद् के निर्देशों का अध्ययन करने के बाद तुरन्त कार्रवाई कर लेनी चाहिए। जो उच्च शिक्षण संस्थान इस कार्रवाई को न करने के दोषी माने जाएंगे उन्हें सरकार से प्राप्त होने वाले अनुदानों तथा अन्य सहायताओं को रोका जा सकता है, ऐसी संस्थाओं के विरुद्ध समाचार पत्रों तथा आयोग की वैबसाइट पर घोषणाएं की जा सकती हैं, उनकी मान्यता रद्द की जा सकती है, राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली संस्थाओं के विरुद्ध कार्रवाई के लिए राज्य सरकारों को भी बाध्य किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त और भी कोई योग्य कार्रवाई की जा सकती है। 

इसलिए भारत के सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं को महिला कर्मियों तथा छात्राओं का यौन शोषण रोकने के लिए निर्धारित कदम अवश्य उठाने चाहिएं। उक्त कानून के प्रावधान 12वीं तक के विद्यालयों में भी जोर-शोर से लागू किए जाने चाहिएं। जागरूक नागरिकों को भी अपने-अपने क्षेत्रों में यह ध्यान रखना चाहिए कि किस शैक्षणिक संस्थान ने इस कानून के अनुसार आंतरिक शिकायत समितियों का गठन तथा यौन शोषण के विरुद्ध जागृति अभियान नहीं चलाए। ऐसी संस्थाओं को पत्रों के द्वारा या व्यक्तिगत रूप से मिलकर इस कानून के प्रति संवेदनशीलता पैदा करने के प्रयास किए जाने चाहिएं। ये प्रयास राजनीतिक दलों, धार्मिक और सामाजिक संगठनों या किसी जागरूक नागरिक के द्वारा भी कए जा सकते हैं।-विमल वधावन योगाचार्य (एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)
      

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