भारत और तुर्की के बीच काफी सांस्कृतिक समानताएं

Edited By ,Updated: 20 Jul, 2019 12:28 AM

fairly cultural parallels between india and turkey

भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का श्रेय अफगान तुर्कों को जाता है, जो हमलावर के रूप में यहां आए थे। मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर यहां कुतुबुद्दीन एबक को दिल्ली की गद्दी सौंप दी और वापस चला गया। महमूद गजनवी भी तुर्क था जिसने सत्रह बार...

भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना का श्रेय अफगान तुर्कों को जाता है, जो हमलावर के रूप में यहां आए थे। मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर यहां कुतुबुद्दीन एबक को दिल्ली की गद्दी सौंप दी और वापस चला गया। महमूद गजनवी भी तुर्क था जिसने सत्रह बार हमला किया। इस तरह मोहम्मद, तुगलक, खिलजी ने यहां मुस्लिम राज की नींव डाली और अकबर ने इसे मजबूती दी। 

तुर्की में सन् 1923 तक ओटोमन राजशाही थी, जिसे अपने निरंकुश और बर्बर शासन के कारण आम नागरिकों के रोष का सामना करना पड़ा। सन् 1881 में जन्मे मुस्तफा कमाल ने इसके खिलाफ मोर्चा बुलंद किया और 1923 में तुर्की गणराज्य की स्थापना की और पहले राष्ट्रपति बने। एक दौर ऐसा आया कि भारत में कांग्रेस के कुछ युवाओं ने अपने को यंग तुर्क कहना शुरू कर दिया, जो इस दल में रहकर उसकी नीतियों का विरोधी स्वर था जिसने आगे चलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत तुर्की से चार गुना बड़ा है और दोनों देशों के बीच काफी सांस्कृतिक समानताएं हैं। ङ्क्षहदी, उर्दू शब्दों का काफी प्रचलन है। कीमा, कोफ्ता, हलवा, पुलाव, तंदूर, दुनिया जैसे ढेरों शब्द हैं जो समान हैं। 

लगभग साढ़े चार हजार किलोमीटर दूर तुर्की के इस्तांबुल हवाई अड्डे पर उतरते समय यही सब बातें मन में थीं। यहां मुस्लिम देशों जैसी कट्टरता नहीं है, लोगों का पहनावा आधुनिक भी है और मुस्लिम भी, खान-पान, रहन-सहन, बातचीत एशिया और यूरोप का मिला-जुला स्वरूप है। यह यूरोप का द्वार भी है और कुछ हिस्सा यूरोप में आता है। इस्तांबुल से बस यहां के प्रसिद्ध शहर कैपादोशिया के लिए चली तो रास्ते भर प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन होते रहे। यह जगह विश्व धरोहर है और यहां आकर तुर्की के ऐतिहासिक खंडहर देखने से इसकी प्राचीन संस्कृति के दर्शन हो जाते हैं। 

काल्पनिक चिमनियां
यह ज्वालामुखी प्रभावित क्षेत्र है और लगभग एक करोड़ साल से लेकर अब तक ये फटते रहते हैं। हालांकि अब काफी कम हो गए हैं। इनसे निकला लावा अनेक धातुओं का मिश्रण है और उससे अनेक तरह की आकृतियां बन गई हैं। पत्थर की शिलाओं को देखकर आप अपनी कल्पना के मुताबिक उनका आकार सोच सकते हैं। इन्हें काल्पनिक चिमनियों का नाम दिया गया है। एक शिला विष्णु का आकार है तो दूसरी बुद्ध जैसी, तीसरी हैट पहने यूरोपियन की तो चौथी में महिला-पुरुष एक-दूसरे का चुम्बन लेते हुए लगते हैं। ये चिमनियां घाटियों में दूर-दूर तक फैली हैं और कई तरह के आकार दिखाई देते हैं। कुछ आकार नदी और बरसात के पानी ने अपने मन से बना दिए हैं। 

यहां पर छोटी और बड़ी गुफाओं से भरे क्षेत्र हैं। इनमें यात्री और व्यापारी ठहरते थे और इनका इस्तेमाल सराय की तरह होता था। शहरों का आर्कीटैक्चर बहुत सुंदर है लेकिन उलझन भरा भी है, जिसे समझने के लिए वास्तुविद् की जरूरत पड़ती है। इस क्षेत्र में मृत्यु के बाद शव को गर्भ के शिशु की आकृति की तरह घर के फर्श में गाड़े जाने की परम्परा थी। इस तरह के अवशेष मिले हैं जिनसे पता चलता है कि दुनिया की पहली ब्रेन सर्जरी यहां 20-25 वर्षीय एक महिला की हुई थी। इस पूरी घाटी में विभिन्न रंगों की छटा बिखरी है जो ज्वालामुखी फटने से निकले लावा से बनी है। 

सटे हुए धर्मस्थल
ओटोमन पीरियड में यह क्षेत्र सुख-शांति से परिपूर्ण था। ईसाई सम्प्रदाय के लिए चर्च बनाए गए। कुछ मस्जिद और चर्च एक-दूसरे से सटे हुए हैं और दोनों धर्मों के लोग बिना किसी भेदभाव और परेशानी के इनमें आते हैं। यह देखकर मन में विचार आया कि क्या अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर एक साथ एक-दूसरे से सटे हुए नहीं बन सकते। इस इलाके में कुदरती तौर पर ऐतिहासिक और धार्मिक केन्द्र बन गए हैं। इन विशाल इमारतों में अंदर के कमरे चट्टान से अपने आप बन गए और उनमें आने-जाने के लिए सीढिय़ां और सुरंग भी हैं। पहले जमाने में इनमें काफी चहल-पहल रहती होगी पर अब सब जगह जाना मुमकिन नहीं है। 

यहां नाग देवता की पूजा होती थी, चित्रकारी अद्भुत है और मनमोहक भी। गोरेम संग्रहालय घाटियों से घिरा एक विशाल क्षेत्र है, इसकी खोज यूरोपियनों ने अठारहवीं शताब्दी में की और दुनिया के सामने एक अजूबे की तरह इसे सराहा गया। अनगिनत आकृतियां हैं, चित्रकारी है और खूबसूरत कला का संगम है। हमारे यहां की अजंता-एलोरा की गुफाओं और खजुराहो की चित्रकारी की तुलना इनसे की जा सकती है। इस्तांबुल शहर हमारे जैसे व्यस्त शहरों की तरह ही है। तकसिम चौराहा मशहूर है। यहां मिठाई की दुकान पर भारतीय व्यंजनों की तरह स्वादिष्ट मुकलावा मिलता है। 

यहां से अगला पड़ाव ग्रीस की राजधानी एथेंस का था। यहां क्रूज पर ठहरना और समुद्र के रास्ते विभिन्न शहरों को देखना अच्छा अनुभव था। एथेंस की ऐतिहासिक पहाड़ी और अथीना देवी इस क्षेत्र की रक्षक के रूप में मानी जाती हैं। उनकी प्रतिमा में पंख नहीं हैं। मान्यता है कि पंख न होने से देवी हमेशा यहीं रहेंगी और कभी छोड़कर नहीं जाएंगी। एक शहर मयकोनोस है जिसकी इमारतें एकदम सफेद रंग की हैं।  यहां अनेक द्वीप हैं जिनमें आबादी बसी हुई है। संकरी गलियों और गलियारों से होते हुए ऊपर तक जाया जा सकता है, जहां से समुद्र का नजारा बहुत ही आकर्षक दिखता है। ऐसा ही एक द्वीप सांटोरिनी है जो काफी सुंदर है। यहां ज्वालामुखी के मुहाने तक जाया जा सकता है। 

पर्यटन के मद्देनजर सुविधाएं
इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से तुर्की और ग्रीस दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। इन सभी स्थानों पर जाने के लिए वहां की सरकारों ने पर्यटन को ध्यान में रखते हुए लगभग सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की हैं। हमारे देश में भी एक नहीं, ऐसे सैंकड़ों इलाके हैं जो इतिहास और पुरातत्व के नजरिए से बहुत ही आकर्षक हैं परंतु खेद है कि इनमें से ज्यादातर जगहों पर आने-जाने की सुविधाओं का अभाव है, जिसके कारण विदेशी ही नहीं, देश के लोग भी वहां जाने से कतराते हैं। उत्तर-पूर्व हिमालय की कंदराएं, लेह-लद्दाख की घाटी, खजुराहो की गुफाएं और हिमालय पर्वत की रंग-बिरंगी पर्वत शृंखलाएं इतनी खूबसूरत और मनमोहक हैं कि उन्हें निरंतर निहारते रहने पर भी थकान नहीं महसूस होती। हमारे देश में यदि इन सभी स्थानों पर सुगम और सस्ती सेवाएं प्रदान कर दी जाएं तो हम भी विदेशियों को बहुत कुछ ऐसा दे सकते हैं जिसे वे कभी भूल नहीं पाएँगे।-पूरन चंद सरीन
 

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