गुजारा भत्ता बारे परंपरा तोड़ने लगी पारिवारिक अदालतें

Edited By Pardeep,Updated: 05 Jul, 2018 04:05 AM

family courtesy parliaments about alimony

गत कुछ वर्षों के दौरान भारत में पारिवारिक अदालतों ने वैवाहिक विवादों में गुजारा भत्ता देने के चले आ रहे प्रचलन को तोडऩा शुरू कर दिया है। इस वर्ष मई में दिल्ली की एक अदालत ने एक पत्नी को इस आधार पर गुजारा भत्ता देने से इंकार कर दिया क्योंकि उसने एक...

गत कुछ वर्षों के दौरान भारत में पारिवारिक अदालतों ने वैवाहिक विवादों में गुजारा भत्ता देने के चले आ रहे प्रचलन को तोडऩा शुरू कर दिया है। इस वर्ष मई में दिल्ली की एक अदालत ने एक पत्नी को इस आधार पर गुजारा भत्ता देने से इंकार कर दिया क्योंकि उसने एक अध्यापिका के तौर पर अपनी सरकारी नौकरी बारे झूठ बोला था और गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए आवेदन दाखिल किया था। 

इसी तरह अप्रैल में एक अन्य पारिवारिक अदालत ने एक पत्नी के गुजारा भत्ता के आवेदन को ‘कानून का बड़ा दुरुपयोग’ करार देते हुए कहा कि गुजारा भत्ता के प्रावधान को कानूनी प्रताडऩा के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। पत्नी ने अपने पति से लगभग 3 लाख रुपए के गुजारा भत्ता की मांग की थी, जो सिंगापुर में काम कर रहा था। पति के वकील ने अदालत से कहा कि यद्यपि पति सिंगापुर में है, उसका रहन-सहन का खर्चा काफी अधिक है और वह सारे खर्चे सिंगापुरी डालर में करता है। 

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय अदालतें, पत्नियों को हमेशा गुजारा भत्ता देने की पारम्परिक प्रथा का अनुसरण करने के अतिरिक्त, अब बड़ी संख्या में पतियों के पक्ष में आदेश पारित कर रही हैं। दहेज तथा घरेलू हिंसा कानूनों के बढ़ते दुरुपयोग का हवाला देते हुए अदालतें अब पत्नियों के गुजारा भत्ता आवेदनों को खारिज कर रही हैं यदि वे खुद की देखभाल करने के लिए पर्याप्त रूप से कमाई कर रही हों तथा कुछ मामलों में वे उनके पतियों को भी गुजारा भत्ता देने के पत्नियों को निर्देश दे रही हैं। 

जयंत भट्ट नामक वैवाहिक वकील का कहना है कि अदालतें गत कुछ वर्षों से अत्यंत सक्रिय हैं और लिंग के प्रति निष्पक्ष रहने का प्रयास कर रही हैं। यह उन मामलों में दिखाई देता है जहां पति अपनी पत्नियों से कम कमाते हैं और देश में महिला परक कानूनों के दुरुपयोग से बचने के लिए उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है। मेरा मानना है कि यह न्यायिक सक्रियता एक बहुत अच्छा संकेत है और आने वाले समय में इसमें हमें और तेजी की जरूरत है। इसमें एक महत्वपूर्ण बिंदू 2011 का निर्णय है जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को गुजारा भत्ता के तौर पर 20 हजार रुपए देने का निर्देश दिया जब उसे यह पता चला कि पत्नी पर्याप्त रूप से अमीर थी और उसकी बजाय पति को वित्तीय सहायता की जरूरत थी। 

इस संबंध में वैवाहिक वकील मालविका राजकोटिया ने स्पष्ट किया कि हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत गुजारा भत्ता हमेशा ही ङ्क्षलग निष्पक्ष रहा है। अदालतें महिलाओं को इसलिए गुजारा भत्ता देने के निर्देश देती हैं क्योंकि बहुसंख्यक पुरुष रोजी-रोटी कमाने वाले होते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि अदालतों ने अब कहानी के दूसरे पहलू पर भी विचार करना शुरू कर दिया है।-एस. अग्रवाल

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