पारिवारिक कर्त्तव्य निभाने के लिए साधु ने छोड़ा आध्यात्मिक जीवन

Edited By Pardeep,Updated: 27 Sep, 2018 04:11 AM

family life left to fulfill family duty

अहमदाबाद के लीलाभाई तथा भीखीबेन गोल के लिए रविवार का दिन बहुत भावनापूर्ण था, जब उनका 28 वर्षीय बड़ा बेटा साधु धर्मपुत्रदास  घर वापस लौटा। यह विकलांग दम्पति गत माह गुजरात राज्य कानूनी सेवाएं प्राधिकरण के पास यह कहते हुए गया था कि आध्यात्मिक जीवन...

अहमदाबाद के लीलाभाई तथा भीखीबेन गोल के लिए रविवार का दिन बहुत भावनापूर्ण था, जब उनका 28 वर्षीय बड़ा बेटा साधु धर्मपुत्रदास  घर वापस लौटा। यह विकलांग दम्पति गत माह गुजरात राज्य कानूनी सेवाएं प्राधिकरण के पास यह कहते हुए गया था कि आध्यात्मिक जीवन अपनाने के बाद उनके बेटे ने अपने माता-पिता के प्रति अपने कत्र्तव्यों को त्याग दिया है। उन्होंने उससे ‘गुजारे भत्ते’ के तौर पर 20 लाख रुपए से अधिक की मांग भी की, जो उसकी शिक्षा तथा अन्य खर्चों पर उनके जीवन भर की कमाई के बदले में था। 

10 सितम्बर को पहली काऊंसङ्क्षलग के बाद दम्पति ने आरोप लगाया कि आध्यात्मिक मार्ग अपनाने के लिए उनके बेटे का ब्रेनवाश किया गया। हालांकि उनके बेटे ने काऊंसलर्स को बताया कि उसने अपनी इच्छा से अध्यात्म का मार्ग अपनाया तथा वह अपने माता-पिता की सेवा करने की स्थिति में नहीं था क्योंकि उसकी आय का कोई साधन नहीं था। इससे पहले कि अगली काऊंसङ्क्षलग होती, अध्यात्म का मार्ग अपनाने के 3 वर्ष बाद साधु धर्मपुत्रदास ने आध्यात्मिक जीवन छोड़कर धर्मेश गोल के तौर पर अपने परिवार के पास लौटने का फैसला किया। धर्मेश ने बताया कि यह उसकी इच्छा है कि वह संतोषजनक ढंग से अपने माता-पिता की सेवा करे। वह इसके साथ ही अपने पहले वाले आध्यात्मिक मार्ग पर भी चलता रहेगा। 

लीलाभाई गोल ने बताया कि एकमात्र चीज जो वे चाहते थे वह थी उनके बेटे की खुशी। उन्होंने बताया कि वे कभी भी उसके रास्ते में नहीं आना चाहते थे। हालांकि उन्होंने अधिकारियों से सम्पर्क करने बारे अपने निर्णय को न्यायोचित ठहराया। धर्मेश ने बताया कि वह अपने माता-पिता के साथ पुन: मिलने को तैयार था। उसने तो पहला कदम उठा लिया है, अब यह उसके परिवार पर निर्भर करता है कि वे इस प्रवाह को बनाए रखें।-पी. शास्त्री

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