किसानों को 6000 रुपए देने का वायदा स्पष्ट रूप से ‘वोट के लिए नकदी’

Edited By ,Updated: 10 Feb, 2019 03:43 AM

farmers  fare to pay 6000 rupees is clearly  cash for votes

एक विश्वासपूर्ण सरकार अंतरिम बजट को ‘घटनाक्रमों’ से मुक्त रखेगी, जैसा कि होना चाहिए। लेकिन विश्वास एक ऐसी गुणवत्ता है जो वर्तमान भाजपानीत राजग सरकार में कम आपूॢत में है। जरा भाजपा सांसदों, विशेषकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व  उत्तर प्रदेश से...

एक विश्वासपूर्ण सरकार अंतरिम बजट को ‘घटनाक्रमों’ से मुक्त रखेगी, जैसा कि होना चाहिए। लेकिन विश्वास एक ऐसी गुणवत्ता है जो वर्तमान भाजपानीत राजग सरकार में कम आपूर्ति में है। जरा भाजपा सांसदों, विशेषकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश से सांसदों के संसद में शोकाकुल चेहरों को देखें तो आप मुझसे सहमत होंगे। 

अत: प्रधानमंत्री मोदी ने निर्णय किया कि अंतरिम बजट पेश करने के अवसर को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में परिवर्तित कर दिया जाए। अंतरिम वित्त मंत्री, जैसे कि किसी खिलाड़ी ने अपनी पहली इंडिया कैप हासिल की हो, ने इसे एक तमाशे में बदलने का प्रयास किया। इसके पीछे विचार सरकार के ‘अंतिम गीत’ में जोश भरना था। दुर्भाग्य से परिणाम प्रधानमंत्री तथा अंतरिम वित्त मंत्री के इरादों से बहुत भिन्न हो सकते हैं। 

बेशर्मी : वायदों की पोल खुलने लगी 
2 हैक्टेयर या इससे कम जमीन वाले प्रत्येक किसान को तीन किस्तों में एक वर्ष में दिए जाने वाले 6 हजार रुपए के बड़े वायदे पर नजर डालते हैं जो प्रधानमंत्री किसान योजना के अंतर्गत दिए जाने हैं। सरकार ने योजना को एक दिसम्बर 2018 से लागू करके चुनाव आयोग की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की है। यह कैसे सम्भव है? क्या सरकार 2000 रुपयों की पहली किस्त किसानों के बैंक खाते में एक दिसम्बर से डालेगी और बैंकों को उस तिथि से उस पर ब्याज देने का निर्देश देगी? यदि चुनाव आचार संहिता लगने से पहले पहली किस्त वितरित कर दी जाती है तो चुनाव आयोग सम्भवत: असहाय हो जाएगा लेकिन यदि चुनाव आयोग ने दूसरी किस्त नहीं रोकी तो लोग यह निष्कर्ष निकालेंगे कि एक अन्य महत्वपूर्ण संस्थान को नीचा दिखाया गया है या उस पर अधिकार कर लिया गया है। 

वोटरों को रिश्वत 
अब प्रधानमंत्री किसान योजना की विशेषताएं: प्रत्येक मध्यम तथा छोटा किसान, जिसकी जमीन 2 हैक्टेयर या उससे कम है, को इसमें शामिल किया गया है। यह देश में कुल कृषि जमीन का 86.2 प्रतिशत बनता है। जहां जिन्हें इस योजना में शामिल किया गया है महत्वपूर्ण है, वहीं जिन्हें नहीं शामिल किया गया, उतना ही महत्वपूर्ण है:
* मालिक किसान, चाहे वह खेती करने वाला किसान हो या खेती न करने वाला जमींदार, उसे इस योजना में शामिल किया गया है तथा वह धन प्राप्त करेगा;
* इसमें जमीन किराए पर लेकर खेती करने वाले किसान को शामिल नहीं किया गया;
* कृषि मजदूर शामिल नहीं;
* गैर कृषि गरीब ग्रामीण जैसे कि छोटे-मोटे दुकानदार, फेरी वाले, बढ़ई, सुनार, हज्जाम आदि को शामिल नहीं किया गया;
* शहरी गरीबों को पूरी तरह से बाहर रखा गया है।
मालिक किसान का परिवार, जिसमें कृषि न करने वाले जमींदार का परिवार भी शामिल है, को प्रतिदिन 17 रुपए की शानदार रकम मिलेगी। मैं योजना का मजाक नहीं उड़ा रहा, यह सरकार ही है जो डीजल, बिजली, खादों, बीजों आदि की कीमतें बढ़ाकर ट्रैक्टरों, हार्वैस्टरों तथा थ्रैशरों जैसे कृषि उपकरणों पर जी.एस.टी. ठोक कर किसानों का अपमान और उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य देने से इंकार कर रही है।

क्या प्रतिदिन प्रति परिवार 17 रुपए  एक कृषक परिवार के संकट अथवा गरीबी को दूर कर पाएंगे? बिल्कुल नहीं। बहुत से राज्यों में प्रति माह 500 रुपए (6000 रुपए प्रति वर्ष) की रकम बुजुर्गों या विकलांगों अथवा विधवाओं की पैंशन से भी कम होगी। यदि प्रतिदिन 17 रुपए या पहली किस्त के रूप में 2000 रुपए गरीबी हटाने के उपाय के तौर पर पर्याप्त नहीं हैं तो यह क्या है? सीधी तथा साधारण भाषा में यह वोटों के लिए नकदी है। सरकार उनकी वोटें पाने के लिए चुनावों की पूर्व संध्या पर मतदाताओं को धन देगी, जो एक ऐसी कला है जिसमें कुछ राजनीतिक दल गलत तरीकों से प्राप्त धन का इस्तेमाल करने को अधिमान देते हैं। प्रधानमंत्री किसान योजना के अंतर्गत सरकारी धन का इस्तेमाल पहली बार मतदाताओं को रिश्वत देने के लिए किया जाएगा। 

क्या राज्य सरकारों ने जमीन के मालिकाना हकों के रिकार्ड्स का नवीनीकरण तथा सत्यापन कर लिया है? एक ओर सरकार ने 4 फरवरी को राज्यों को अपने जमीन के मालिकाना हक के रिकार्ड्स का नवीनीकरण करने के लिए लिखा, वहीं दूसरी ओर उसी दिन सचिव ने घोषणा की कि पहली किस्त शीघ्र आबंटित की जाएगी तथा सरकार दूसरी किस्त भी चुनावों से पहले आबंटित कर सकती है। सचिव से सरकार के राजों की रखवाली करने की आशा की जाती है। 

डींगें हांकना
एक अन्य बड़ा वायदा था पैंशन योजना, वास्तव में एक अन्य पैंशन योजना पहली के बाद क्योंकि अटल पैंशन योजना फ्लाप हो गई। पहले वाली अंशदायी योजना मई 2015 में शुरू की गई थी तथा दिसम्बर 2018 तक केवल 1.33 करोड़ सदस्यों को ही सूचीबद्ध कर सकी। कुछ ही ऐसे लोग थे जो परिभाषित अंशदान के पेचीदा ढांचे को समझ सकते थे जिसमें एक परिभाषित लाभ के साथ-साथ सदस्य द्वारा अंशदान की गई राशि पर रिटर्न का वायदा किया गया था। नई योजना आसान दिखाई देती है लेकिन 55 से 100 रुपए प्रति माह का योगदान 60 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर प्रति माह 3000 रुपए की निश्चित पैंशन के लिए एक बहुत लम्बी तथा अनुमानत: एक अटूट अवधि (31 से 42 साल) है, जो आर्थिक तौर पर औचित्यहीन है। 

यदि सूचीबद्धता के लिए अधिकतम आयु 50 वर्ष है (जैसा कि उनके भाषण से पता चलता है) तो अंतरिम वित्त मंत्री जानते हैं कि 10 वर्षों के लिए कोई भुगतान नहीं होगा। मेरा मानना है कि उस समझ के साथ तथा प्रस्ताव के अनुसार 10 करोड़ मजूदरों तथा कर्मचारियों को सूचीबद्ध करने की कोई आशा न होने के कारण अंतरिम वित्त मंत्री ने केवल 500 करोड़ रुपए अलग रखे हैं (इस तरह से बजट भाषण के पैरा 37 के अतिरिक्त बजट दस्तावेजों में आबंटन का उल्लेख कहां किया गया है?)। 

खुले में शौच से मुक्त जिलों तथा गांवों, प्रत्येक घर को बिजली, नि:शुल्क एल.पी.जी. कनैक्शन तथा मुद्रा ऋण लेने वालों के नौकरियां पैदा करने वाले बनने संबंधी मारी गई डींगें इस तथ्य के बावजूद हैं कि इनमें से प्रत्येक दावे का शिक्षित लोगों, एन.जी.ओज तथा पत्रकारों की फील्ड रिपोर्ट के आधार पर पर्दाफाश किया जा चुका है। कुल मिलाकर अंतरिम बजट यह खुलासा करता है कि भाजपा की लोकसभा चुनावों के लिए नीति ‘डींगें मारना तथा वोटरों को रिश्वत देना’ है।-पी. चिदम्बरम 

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