‘किसानों में शिरोमणि अकाली दल (ब) के विरुद्ध रोष’

Edited By ,Updated: 07 Jan, 2021 04:53 AM

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शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भारत सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों को किसानों के हितों के विरुद्ध करार देते हुए न केवल केंद्रीय सत्ताधारी गठबंधन एन.डी.ए. से नाता तोड़ा, अपितु पंजाब में दशकों से उनकी भागीदार

शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने भारत सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों को किसानों के हितों के विरुद्ध करार देते हुए न केवल केंद्रीय सत्ताधारी गठबंधन एन.डी.ए. से नाता तोड़ा, अपितु पंजाब में दशकों से उनकी भागीदार चली आ रही भाजपा से भी उन्होंने संबंध-विच्छेद कर लिया।

इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पत्नी हरसिमरत कौर बादल से भी केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दिलवा, यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह केंद्र सरकार द्वारा अन्याय का शिकार बनाए जा रहे किसान भाईचारे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। इतना किए जाने के बावजूद केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान उन पर विश्वास करने को तैयार नहीं हो पा रहे। वे उनके और उनकी पत्नी हरसिमरत कौर बादल के विरुद्ध लगातार रोष प्रदर्शन करते चले आ रहे हैं। 

सुखबीर सिंह के विरुद्ध प्रदर्शन : बीते दिनों शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को फतेहगढ़ साहिब में उस समय किसानों के रोष प्रदर्शन का सामना करना पड़ा, जब वह साहिबजादों की शहादत के प्रति समर्पित आयोजित जोड़ मेले में हाजिर हो, गुरु साहिब के चरणों में नत-मस्तक होने पहुंचे थे। 

बताया गया कि उस रोष प्रदर्शन के चलते पुलिस और अकाली कार्यकत्र्ताओं को उन्हें सुरक्षित पिछले दरवाजे से निकाल ले जाने को विवश होना पड़ा। इसी प्रकार सुखबीर सिंह बादल के विरुद्ध हुए प्रदर्शन के दो दिन बाद समाचार आया कि उनकी पत्नी और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल जब अपने चुनाव क्षेत्र का दौरा करने जा रही थीं तो उन्हें बुढलाडा में किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा जिसके चलते उन्हें अन्य चार गांवों का दौरा रद्द कर वापस लौटना पड़ा। 

हरसिमरत कौर का स्पष्टीकरण : बताया गया है कि अपने विरुद्ध हुए रोष प्रदर्शन पर अपना पक्ष पेश करते हुए हरसिमरत कौर ने सोशल मीडिया पर लिखित बयान जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि (मैं) अकाल पुरख को हाजिर-नाजिर जान, दृढ़ विश्वास के साथ यह बात दोहराती हूं कि मैं सदा अपने किसान भाईचारे के हक (पक्ष) में डटती रही हूं, और मेरे विरुद्ध झूठे आरोप लगाने वालों को (मेरी) खुली चुनौती है कि केंद्रीय सरकार के इन 3 कृषि कानूनों के हक (पक्ष) में मेरा एक भी हस्ताक्षर सबूत के रूप में पेश करें। उनके द्वारा पेश किए गए इस पक्ष के सोशल मीडिया पर वायरल होने के तुरन्त बाद सोशल मीडिया पर जहां वे कथित वीडियो वायरल कर दिए गए जिनमें उन्होंने न केवल कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए उन्हें किसानों के हित में बताया अपितु उनका विरोध करने वालों को भी उन्होंने आड़े हाथों लिया है। इसके साथ ही मंत्रिमंडल की उन बैठकों में उनकी उपस्थिति पर भी सवाल उठाए गए जिनमें कृषि कानूनों से संबंधित अध्यादेश और बिलों के मसौदे की स्वीकृति दी गई। 

आधार बचाने की कोशिश : पंजाब  में जिस प्रकार शिरोमणि अकाली दल (बादल) के मुखियों के विरुद्ध रोष प्रदर्शन हो रहे हैं उनसे लगता है कि पंजाब में बादल अकाली दल का आधार लगातार खिसकता जा रहा है। इस प्रकार आधार के खिसकते चले जाने से यह संकेत मिलता है कि इस बार पंजाब विधानसभा के चुनावों में शिरोमणि अकाली दल (बादल) अपने पिछले प्रदर्शन को दोहरा पाने में भी शायद ही सफल हो सके। यह बात सभी जानते हैं कि पिछले विधानसभा चुनावों में बादल अकाली दल को बहुत ही शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था और वह पहले स्थान से खिसक कर तीसरे स्थान पर आ पहुंचा था। लगता है, सुखबीर सिंह बादल अपने गिर रहे इस ग्राफ से परिचित होते हुए भी काफी समय से अगली सरकार अपनी बनने और उस समय विरोधियों के साथ निपटने का दावा करते चले आ रहे थे परन्तु बीते कुछ दिनों से उन्होंने अकाली सरकार  बनने और उसके साथ वरिष्ठ बादल के मुख्यमंत्री बनने का भी दावा करना शुरू कर दिया है। 

वरिष्ठ बादल के नाम पर दांव : सुखबीर सिंह बादल की ओर से, उन प्रकाश सिंह बादल के मुख्यमंत्री बनने का दावा किया जाना अजीब-सा लगता है जिनके संबंध में कहा जाता है कि वह उम्र, शारीरिक और मानसिक रूप से इतने कमजोर हो चुके हैं कि उनका किसी राजनीतिक, सामाजिक कार्यक्रम में शामिल हो पाना तो दूर रहा, पारिवारिक कार्यक्रम में भी शामिल हो पाना सहज नहीं रह गया। इस स्थिति के चलते भी सुखबीर सिंह बादल द्वारा प्रकाश सिंह बादल को पंजाब के भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में पेश किए जाने से ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें यह एहसास हो गया है कि उनकी अपनी छवि ऐसी नहीं बन पाई जिसके चलते वह पंजाब के मतदाताओं को प्रभावित कर सकें। संभवत: यही कारण है कि वह वरिष्ठ बादल का नाम पंजाब विधानसभा चुनावों में तुरुप के पत्ते के रूप में चलाने की कोशिश कर रहे हैं। 

दिल्ली में बादल विरोधी गठबंधन : दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (बादल) को गुरुद्वारा प्रबंध से बाहर रखने के उद्देश्य से बादल-विरोधी गठबंधन बनाने के लिए सुखदेव सिंह ढींडसा की ओर से चाहे ईमानदाराना कोशिशें की जा रही हैं परन्तु लगता नहीं कि उनकी ये कोशिशें सफल हो सकें और बादल दल के विरुद्ध कोई मजबूत गठजोड़ बन पाना संभव हो सके। मिल रहे संकेतों से लगता है कि मनजीत सिंह जी.के. के नेतृत्व वाली ‘जागो’ के मुखी अपनी शर्तों पर छोटे दलों/जत्थेबंदियों के साथ गठबंधन करने के तो इच्छुक हैं परन्तु बराबर की जत्थेबंदी, शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के साथ गठजोड़ करने के  प्रति वे गंभीर नहीं। 

उधर शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के सूत्रों के अनुसार उसके मुखी समानता के आधार पर ‘जागो’ के साथ गठबंधन करने के पक्ष में हैं, परन्तु ‘जागो’ के मुखी जीत पाने की सीटों पर ही दावा करने के स्थान पर, अपना हाथ ऊपर रखने के लिए अधिक से अधिक सीटें चाहते हैं जो उन्हें (शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के मुखियों को) स्वीकार नहीं। उसके मुखी चाहते हैं कि दोनों पक्षों की ओर से समानता के आधार पर जीत पाने की सीटों पर ही दावा पेश हो और उसी के आधार पर गठबंधन हो। 

...और अंत में : जस्ट्सि आर.एस. सोढी का मानना है कि सिखों की धार्मिक मान्यताओं और राजनीतिक हितों-अधिकारों की रक्षा करने के प्रति वचनबद्ध संस्थाएं, शिरोमणि कमेटी और शिरोमणि अकाली दल, राजनीतिक स्वार्थ से ग्रस्त नेतृत्व के हाथों अपने उद्देश्य से भटक, अपना वास्तविक अस्तित्व तक गंवा बैठी है। जिस कारण सिखों के पास कोई संस्था नहीं रह गई, जो धार्मिक मान्यताओं-परम्पराओं की रक्षा करने में उसका मार्गदर्शन कर सके और न ही कोई ऐसी संस्था रह गई है जो उनका राजनीतिक भविष्य संवारने में उसकी मददगार साबित हो सके। राजनीतिक स्वार्थ के शिकार मुखियों ने तो अकाली दल और शिरोमणि कमेटी से संबंधित संस्थाओं का मूल स्वरूप ही खत्म करके रख दिया है।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’


 

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