किसानों को अब सावधानीपूर्वक कदम उठाना चाहिए

Edited By ,Updated: 26 Nov, 2021 05:09 AM

farmers should now act cautiously

इस सप्ताह जैसा कि अधिकतर सप्ताहों में होता है बताने के लिए कुछ परेशानीपूर्ण कहानियां हैं लेकिन इससे पहले कि मुझे मोदी विरोधी कह दिया जाए, मैं एक अच्छी खबर के साथ शुरूआत करूंगा

इस सप्ताह जैसा कि अधिकतर सप्ताहों में होता है बताने के लिए कुछ परेशानीपूर्ण कहानियां हैं लेकिन इससे पहले कि मुझे मोदी विरोधी कह दिया जाए, मैं एक अच्छी खबर के साथ शुरूआत करूंगा। किसान दिल्ली की ओर जाते उच्च मार्गों पर यातायात को अवरुद्ध नहीं करेंगे। किसानों को अब अपना प्रदर्शन वापस ले लेना चाहिए और अपनी मांगों में संशोधन करना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते तो जन समर्थन खो देंगे। 

कृषि कानून, जिन्हें सरकार ने जल्दबाजी में लाभार्थियों को विश्वास में लिए बगैर लोकसभा तथा राज्यसभा में पारित करवाया, के वापस होने तक वे काफी मजबूती से खड़े रहे और माइंड गेम उस समय खत्म हुई जब प्रधानमंत्री ने उनकी प्रमुख मांग मान ली। एक मजबूत व्यक्ति तथा एक सशक्त नेता के तौर पर अपनी छवि को नुक्सान पहुंचने के बावजूद उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। लखीमपुर खीरी घटनाक्रम जिसमें उनके मंत्री का बेटा शामिल था तथा आने वाले राज्य विधानसभा चुनावों के कारण उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। 

यदि भाजपा उत्तर प्रदेश में हार जाती है तो इसका श्रेय किसान आंदोलन को दिया जाएगा मगर फिलहाल यह नहीं कहा सकता। पंजाब के किसानों के संभवत: कैप्टन अमरेन्द्र सिंह द्वारा बनाई गई नई पार्टी की ओर आकर्षित होने के अवसर मौजूद हैं यद्यपि पंजाब में मेरे अधिकांश मित्रों को आशा नहीं है कि अमरेन्द्र को कोई लाभ होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान नेता टिकैत एक अविवादित नेता बन गए हैं। गत चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों ने भाजपा को वोट दिया था। वे पार्टी की ओर वापस लौट सकते हैं विशेषकर यदि एम.एस.पी. की मांग मान ली जाती है तथा लखीमपुर खीरी के मामले का समाधान निकल आता है। निजी संबंध बेशक इतने खराब हो गए कि उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन ऐसे मामलों में राजनीतिक बाजीगरी की जरूरत है। 

एक अन्य घटनाक्रम ऐसा है जो उदार लोकतांत्रिकों के लिए आशा पैदा करने वाला है। विश्व भर में सभी मुसलमानों के लिए शुक्रवार को जुम्मे की नमाज पढऩा आवश्यक है। चूंकि मस्जिदों में अपने समुदाय के बढ़ते जा रहे सदस्यों को समाने के लिए मस्जिदों में पर्याप्त स्थान उपलब्ध नहीं, धर्म गुरुओं ने उन्हें खुली सड़कों पर नमाज पढऩे की इजाजत दी है। यह सार्वजनिक सड़कों का इस्तेमाल करने वाले अन्य लोगों के लिए असुविधा पैदा करता है। 

गुरुग्राम में जुम्मे (शुक्रवार दोपहर बाद पढ़ी जाने वाली) की नमाज के लिए स्थानीय निकाय द्वारा एक खुले मैदान में जगह दी गई थी। इसका दक्षिण पंथी हिंदुओं ने विरोध किया, जिन्होंने उनका शांतिपूर्वक वहां नमाज पढऩा असंभव बना दिया। बताया जाता है कि एक स्थानीय हिंदू व्यवसायी अक्षय यादव ने उनके नमाज पढऩे के लिए अपनी न इस्तेमाल की जाने वाली दुकान तथा साथ ही लगते गैर-इस्तेमालशुदा कमरों को खोल दिया। उसने कहा कि वह नहीं चाहता था कि उसका बेटा अन्य धर्मों के लोगों से नफरत के बीच बड़ा हो। ऐसे व्यक्तियों को प्रोत्साहित और सम्मानित करने की जरूरत है। वह तथा उस जैसे लोग इस महान देश की एकता तथा अखंडता को बनाए रखेंगे जहां बहुत से धर्म पाए जाते हैं। 

गुरुग्राम में सिखों के पांच गुरुद्वारों के न इस्तेमाल किए जाने वाले बेसमैंट्स को उनके मुस्लिम भाइयों की जुम्मे की नमाज के लिए खोल दिया गया। दूसरों की मदद करने के मामले में सिख हमेशा से ही खुले मन वाले तथा उदार रहे हैं। इस मामले में भी उन्होंने किसान आंदोलन के दौरान दिखाई गई अपनी भावना को दोहराया, जब उन्होंने सच्ची सिख परम्पराओं के अंतर्गत सड़कों पर लंगर खोल दिए थे। 

मुझे रोमानिया में अपने देश के राजदूत के तौर पर अपने दिनों का ध्यान आता है। मुझे दो अन्य देशों के लिए भी अधिकृत किया गया था जिनमें से एक अल्बानिया था। मदर टैरेसा जन्म से अल्बानियन थीं। वह कई बार उसकी राजधानी तिराना आती थीं। मुझे कई बार उनसे वहां मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। मुझे बताया गया था कि एक मस्जिद में प्रवेश करने की इजाजत देने के लिए उन्हें रिबन काटना है। 

युवा लड़कों का एक समूह उन्हें मिला जो बिना किसी धार्मिक पहचान के बड़े हुए थे क्योंकि अल्बानिया आधिकारिक तौर पर एक नास्तिक राष्ट्र है। मदर टैरेसा ने मुझे बताया कि उन्हें रिबन काटने को लेकर कोई हिचक नहीं थी क्योंकि किसी भी तरह की प्रार्थना एक दैवीय कार्य है और उसका स्वागत है। स्वाभाविक तौर पर अक्षय यादव तथा उन पांच गुरुद्वारों की देखरेख करने वाले उन्हीं कदमों पर थे जिन पर कोलकाता की संत। 

हालांकि हिंदू अधिकारवादी मुसलमानों को जगह देने के गुरुद्वारा के नेताओं के रवैये को बदलने में सफल रहे। मुझे कोई हैरानी नहीं है क्योंकि ऐसी आशा नहीं की जाती कि किसी धर्मस्थल के दरवाजे किसी अन्य धर्म के अनुयायियों द्वारा प्रार्थना करने के लिए खोल दिए जाएंगे। मगर उनका शुरूआती कदम फैलाई जा रही नफरत तथा विभाजन के विरुद्ध उनके विचारों की खुद गवाही देते हैं। मुझे विश्वास है कि यदि अधिक से अधिक नागरिक इसी तरह सोचें तो इस देश को एकजुट करने के लिए नफरत तथा विभाजन के विरोध में शीघ्र एक आंदोलन शुरू हो सकता है। 

मोदी जी को गंभीरतापूर्वक अपने बड़बोले अनुयायियों पर काबू पाने बारे सोचना होगा। मुझे नहीं पता कि वह पार्टी की रणनीति में बदलाव ला पाएंगे या नहीं लेकिन उन्हें गंभीरतापूर्वक इस पर विचार करना चाहिए और पार्टी की नीति निर्माण इकाई में इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए। यदि 2024 में चुनावी विजय के लिए नफरत तथा विभाजन महत्वपूर्ण है तो सच्चे देशभक्तों की देश की एकता के लिए प्रार्थनाएं महज एक सपना बनी रहेंगी।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 

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