यूरिया के उपयोग को कम करने का ‘संकल्प’ लें किसान

Edited By ,Updated: 12 Mar, 2020 04:34 AM

farmers take  resolve  to reduce the use of urea

दशकों से भारत में किसान माध्यमिक और सूक्ष्म पोषक तत्वों के एक मेजबान के अलावा नाइट्रोजन (एन), फास्फेट (पी) और पोटाश (के) जैसे रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध और अत्यधिक प्रयोग कर रहे हैं। ये सब स्वास्थ्य में गिरावट, पर्यावरण प्रतिकूल प्रभाव, सार्वजनिक...

दशकों से भारत में किसान माध्यमिक और सूक्ष्म पोषक तत्वों के एक मेजबान के अलावा नाइट्रोजन (एन), फास्फेट (पी) और पोटाश (के) जैसे रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध और अत्यधिक प्रयोग कर रहे हैं। ये सब स्वास्थ्य में गिरावट, पर्यावरण प्रतिकूल प्रभाव, सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए अग्रणी हैं। जब किसान रासायनिक उर्वरकों के उपयोग के अलावा जमीन पर खेती शुरू करते हैं तब उन्हें मिट्टी के विश्लेषण का संचालन करके प्रत्येक पोषक तत्व के भंडार का पता लगाना सम्भव होना चाहिए। उन्हें एन, पी तथा के बारे में ज्ञान होना चाहिए। 

किसी विशेष फसल को उगाने की आवश्यकता के साथ जुड़ा हुआ किसान यह कह सकता है कि रासायनिक उर्वरकों से बाह्य पोषक तत्वों की कितनी मात्रा में आपूर्ति करनी चाहिए या बिल्कुल भी नहीं की जानी चाहिए। मगर इस प्रक्रिया का पालन शायद ही कभी किया जाता है, जो एक गम्भीर बेमेल का कारण बनता है जिससे किसी भी पोषक तत्व की कमी या अत्यधिक उपयोग होता है। यूरिया का ज्यादा  प्रयोग होता है। इसने एन, पी, के उपयोग अनुपात में बढ़ते असंतुलन को जन्म दिया है। वर्तमान में यह अनुपात 6.7: 2.4:1 है, जबकि आदर्श अनुपात 4:2:1 है। इसके फसल की उपज मिट्टी और मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पाए गए हैं। इसने कुछ राज्यों को एक रासायनिक महामारी के कगार पर धकेल दिया है।

उदाहरण के लिए पंजाब में जहां प्रति हैक्टेयर उर्वरक का उपयोग राष्ट्रीय औसत से अधिक है, रसायनों ने मिट्टी, भूजल तथा खाद्य शृंखला में अपना रास्ता खोज लिया है। राज्य में कैंसर के लिए जिम्मेदार इन्हें एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में पहचाना जाता है। इस प्रवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए मोदी सरकार ने राष्ट्रीय मृदा हैल्थ प्रोग्राम शुरू किया, जिसके तहत उन्होंने 140 मिलियन से अधिक किसानों को भूमि स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए। उत्पादकों को राज्य द्वारा संचालित मोबाइल और ग्राम स्टेशन प्रयोगशालाओं में हर दो साल में अपनी मिट्टी का परीक्षण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। प्रयोगशालाएं माध्यमिक और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित विभिन्न पोषक तत्वों पर मिट्टी का विश्लेषण करती हैं और उसके बाद मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एस.एच.सी.) उर्वरक उपयोग पर अनुकूलित सिफारिशें पेश करती हैं। 

राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद के एक अध्ययन शोध में जिसमें 76 जिलों तथा 19 राज्यों तथा 1700 किसानों को शामिल किया गया, ने उत्पादकों में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में 10 प्रतिशत तक की कटौती की है। इसके अलावा मूल्यांकन की गई फसलों पर उत्पादकता 5 प्रतिशत और 6 प्रतिशत के बीच बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च कृषि आय हुई है। हैदराबाद स्थित नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ एग्रीकल्चर एक्सटैंशन मैनेजमैंट द्वारा 16 राज्यों के 199 गांवों में कपास, धान और सोयाबीन की खेती करने वाले 3184 किसानों को शामिल करते हुए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि जिन किसानों ने अपनी एस.एच.सी. में लिखी सिफारिशों के अनुसार उर्वरकों और पोषक तत्वों को लागू किया, उन्होंने खेती की लागत को कम कर दिया। उनकी शुद्ध आय में 30 से 40 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई।

5 दिसम्बर 2017 को विश्व मृदा दिवस की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री ने अपना ‘मन की बात’ दौरान रेडियो पर भाषण देते हुए कहा, ‘‘क्या हमारे किसान 2022 तक यूरिया के उपयोग को आधे से कम करने का संकल्प ले सकते हैं? यदि वे कृषि में कम यूरिया का उपयोग करने का वायदा करते हैं तो इससे भूमि की उर्वरता बढ़ेगी और किसानों के जीवन में सुधार होने लगेगा।’’-उत्तम गुप्ता

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