फारूक अब्दुल्ला को राज्यसभा से इस्तीफा देना चाहिए

Edited By ,Updated: 14 Dec, 2016 01:00 AM

farooq abdullah should resign from rajya sabha

फारूक अब्दुल्ला के भाषणों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह सत्ता में हैं या नहीं। जाहिर है, वह इन दिनों सुनसान में आ गए हैं क्योंकि वह जो भाषण दे रहे हैं...

फारूक अब्दुल्ला के भाषणों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह सत्ता में हैं या नहीं। जाहिर है, वह इन दिनों सुनसान में आ गए हैं क्योंकि वह जो भाषण दे रहे हैं वे तीखे हैं और भारत के खिलाफ हैं जिसकी अखंडता के प्रति वफादारी की शपथ उन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में ली है। उनका सबसे ताजा भाषण है हुर्रियत, जो कश्मीर को भारत से अलग करने की वकालत करता है, का समर्थन।

अपने भाषण में वह कहते हैं : ‘‘मैं नैशनल कांफ्रैंस के कार्यकत्र्ताओं से कहना चाहता हूं कि वे संघर्ष से बाहर नहीं जाएं। मै आपको आगाह करना चाहता हूं कि हम लोग इस संघर्ष का हिस्सा हैं। हमने हर समय राज्य के हित के लिए संघर्ष किया है।’’

फारूक के लिए अच्छी सलाह यही होगी कि वह राज्यसभा से इस्तीफा दें क्योंकि वह एक ही समय में भारत और हुर्रियत के साथ नहीं हो सकते हैं। वास्तव में, मैं हैरान हूं कि वह आदमी जो केन्द्र सरकार में मंत्री और कश्मीर का मुख्यमंत्री रह चुका है, इस तरह का बयान कैसे दे सकता है जो संविधान के विरुद्ध है। खास बात यह है कि उन्होंने सभा को कश्मीरी में संबोधित किया।

फारूक ऐसे व्यक्ति हैं जो जब गुस्से में होते हैं अपने को काबू में नहीं रख पाते हैं। वह कुछ भी बोल सकते हैं। मुझे याद है कि एक बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवॢसटी को संबोधित करते समय वह कट्टरपंथी की तरह बोले। मैं उसी मंच पर था और मैंने उन्हें बुराभला कहा। मैंने अपने भाषण में कहा कि वह बंटवारे केपहले मुस्लिम लीग के दिनों की याद दिलाते हैं जब मोहम्मद अली जिन्ना कहते  थे कि हिन्दू और मुसलमान दोअलग राष्ट्र हैं और मजहब को राष्ट्रीयता का आधार बनाते थे।

कुछ सप्ताह पहले, फारूक ने श्रीनगर की एक पत्रिका में लिखा कि उनके पिताजी शेख अब्दुल्ला यह देख कर ख्ुाश होते कि आजादी की अपनी मांग के समथर््ान में कश्मीरी नौजवानों ने बंदूक उठा ली है। मैं शेख साहब को अच्छी तरह जानता था और मुझे नहीं लगता कि वह इतना गैर-जिम्मेदाराना बयान देते।

फारूक के साथ समस्या यह है कि वह सुॢखयों में रहना चाहते हैं। इसके लिए वह कुछ भी बोल सकते है। क्या फारूक को यकीन है कि हुर्रियत जिसका प्रचार कर रहा है वह, भारत की बात तो दूर, कश्मीर के हित में है? क्या उन्होंने घाटी के भारत से अलग होने केदिखाई नहीं देने वाले नतीजों का अंंदाजा लगाया है? कश्मीर चारों ओर जमीन से घिरा हुआ क्षेत्र है जहां भारत के अलावा कहीं से भी आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता है।

भारतीय सैनिकों के खिलाफ लडऩे वाले लड़कों को अच्छी तरह मालूम है कि वे क्या चाहते हैं। हाल ही में, जब मैं श्रीनगर में था तो उनमें से कई मुझसे मिले। उन्होंने मुझसे कहा कि वे चाहते हैं कि कश्मीर को एक आजाद सार्वभौम इस्लामिक राज्य में तबदील कर दिया जाए। वे इसे पाकिस्तान के साथ मिलाने के पक्ष में नहीं हैं। अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी उनका प्रतिनिधित्व नहीं करते क्योंकि वह कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना  चाहते हैं चाहे बंटवारे की व्यवस्था भी खत्म हो जाए।

वास्तव मेंं, अंग्रेजों के जाने के बाद कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहना चाहा था। लेकिन पाकिस्तान के अनियमित सैनिकों (नियमित भी) ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से श्रीनगर मार्च कर दिया। उन लोगों ने कब्जा कर लिया होता अगर वे बारामूला में लूटपाट के लिए रुके नहीं होते।

उस समय फारूक के पिता शेख  मोहम्मद अब्दुल्ला, जो भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जोर देने पर जेल से रिहा किए गए थे, ने महाराजा के शासन में जन-सेना बना कर श्रीनगर की ओर मार्च कर रहे सैनिकों को तब तक रोका जब तक हमलावरों को उस इलाके, जिसे आज पाकिस्तान आकुपाइड कश्मीर (पी.ओ. के.) के नाम से जाना जाता है, में धकेलने के लिए भारत की सेना हवाई अड्डे पर पहुंच नहीं गई।

वे लोग, जो हरदम कहते रहते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, इस अर्थ मेंं गलत हैं कि जम्मू और कश्मीर राज्य को धारा 370 के तहत स्वायत्तता मिली हुई है जो यह कहती है कि 3 विषयों-विदेशी मामले, रक्षा और संचार-को छोड़ कर संविधान की धाराएं जो केन्द्र सरकार को अधिकार देती हैं, जम्मू और कश्मीर पर लागू नहीं होंगी। सिर्फ राज्य विधानसभा की सहमति से होने वाले मामले इसके अपवाद होंगे।

दूसरे शब्दों में, इन संवैधानिक प्रावधानों के कारण जो स्वायत्तता जम्मू और कश्मीर राज्य को मिली हुई है वह अन्य राज्यों को नहीं है। फिर, शेख साहब, जो बाद में राज्य के मुख्यमंत्री बने, ने राज्य विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कराया कि जम्मू और कश्मीर राज्य ने भारत में कभी न बदला जा सकने वाला विलय किया है। ऐसा करने के पहले, उन्होंने सादिक साहब, जो बाद में मुख्यमंत्री बने, को यह देखने के लिए पाकिस्तान भेजा कि इस्लामाबाद किस तरह की शासन व्यवस्था रखेगा।

सादिक की राय सुनने के बाद कि पाकिस्तान एक इस्लामिक राज्य बनना चाहता है, महाराजा और अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए किए जा रहे जन-संघर्ष से निकले शेख साहब ने भारत में शामिल होने में जरा भी देर नहीं लगाई क्योंकि वह राज्य को अनेकतावादी बनाना चाहते थे। एक लोकतांत्रिक भारत, जहां धार्मिक आजादी होगी, उनकी स्वाभाविक पसंद थी क्योंकि पाकिस्तान एक इस्लामिक गणराज्य बनना चाहता था।

समय बीतने के साथ, शेख साहब अकेली उदार आवाज रह गए थे जो हिन्दुओं और मुसलमानों की चुनौतियों और जवाबी चुनौतियों के बीच साफ सुनी जा सकती थी। मुझे याद है कि आपातकाल के दौरान मैं जब जेल से रिहा हुआ तो जेल के मेरे साथियों ने मुझसे श्रीनगर जाने और आपातकाल के खिलाफ बोलने के लिए शेख साहब से आग्रह करने को कहा क्योंकि पूरे देश में उनकी इज्जत थी। उन्हें यह बयान देने में कोई हिचक नहीं हुईकि आपातकाल ज्यादा समय तक रह गया है और इसे वापस लिया जाना चाहिए।

मैं चाहता था कि फारूक ने शेख साहब की खासियत हासिल की होती और भारतीय हितों को नुक्सान पहुंचाने के लिए अलगाववादियों के साथ घूमने के बदले नई दिल्लीको रास्ता दिखाया होता। हालांकि वह मनमौजी मानेजातेहैं,वह देश भर में मान्य हैं। अलगाववादियों को अप्रत्यक्ष मदद देने के पहले उन्हें दो बार सोचना चाहिए। हुॢरयतकोसमर्थन देने की घोषणा करके उन्होंने कश्मीर और शेष भारत, दोनों के लोगों के मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

फारूक को समझना चाहिए कि उनका क्षेत्र पूरा देश है। वह भारत की एकता पर बुरा असर डालने वाला कुछ कहते हैं तो वह लोगों को भ्रम में डाल देते हैं क्योंकि लोग उन्हें भारत की अखंडता का समर्थक समझते हैं, इसके टुकड़े करने का नहीं। 

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