घर-घर से फैयाज और रमीज निकलें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Oct, 2017 03:21 AM

fayaz and rameez from home

पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में शहीद हुए सीमा सुरक्षा बल के जवान रमीज अहमद (33) को पूरे देश ने भावभीनी श्रद्धांजलि...

पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में शहीद हुए सीमा सुरक्षा बल के जवान रमीज अहमद (33) को पूरे देश ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी। ज्ञात हो कि उत्तरी कश्मीर के हाजिन इलाके में आतंकवादियों ने बी.एस.एफ. के जवान रमीज अहमद की उनके घर में घुसकर हत्या कर दी थी। आतंकियों ने उनके पूरे परिवार पर हमला किया था। 

अंधाधुंध गोलीबारी में रमीज की मौके पर ही मौत हो गई जबकि उनके पिता, भाई, मां और फूफी घायल हुए। प्राथमिक जांच में इस ‘बर्बर और अमानवीय’ हत्या में लश्कर-ए-तोयबा का नाम सामने आया। शहीद रमीज अहमद छुट्टियां मनाने अपने घर आए हुए थे। 6 साल से बी.एस.एफ. में सेवारत रमीज का ताल्लुक बी.एस.एफ. की 73वीं बटालियन से था और वह राजस्थान में तैनात थे। याद दिलाते चलें कि इसी साल 9 मई को कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले और शोपियां में छुट्टी मनाने आए सेना के अधिकारी लैफ्टीनैंट उमर फैयाज का आतंकवादियों ने अपहरण कर उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। 

इसी वर्ष शब-ए-कद्र की मुबारक रात को जब पूरी दुनिया के मुसलमान अपने गुनाहों से तौबा करते हुए खुदा की इबादत में मशगूल थे, उसी मुबारक रात कश्मीर की ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में इबादत के लिए सादे कपड़ों में जा रहे राज्य पुलिस के डी.एस.पी. मोहम्मद अयूब पंडित को शरारती तत्वों ने मस्जिद के बाहर पीट-पीट कर मार डाला था। अफसोसजनक बात यह है कि जब मस्जिद के बाहर भीड़ ने डी.एस.पी. की हत्या की, उस वक्त मस्जिद के भीतर उदारवादी हुर्रियत कांफ्रैंस के प्रमुख मीरवायज मौलवी उमर फारूक लोगों को इस्लाम का पाठ पढ़ाते हुए कथित अमन, भाईचारे, दयानतदारी और मोहब्बत की सीख दे रहे थे। 

शब-ए-कद्र पर सामान्यत: आम मुसलमान नजदीकी मस्जिदों में ही पूरी रात इबादत में गुजारते हैं लेकिन ऐसी मुकद्दस रात में अयूब पंडित को आतंकी मानसिकता वाले लोगों ने मौत के घाट उतार दिया। ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें सुरक्षाबलों से जुड़े मुस्लिम समाज के कई जवान कश्मीर में आतंकवाद का शिकार हुए। कश्मीर में ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे पुलिस, बी.एस.एफ., सेना सभी उनके दुश्मन हैं और इन सुरक्षाबलों में अपनी सेवाएं देने वाले मुस्लिम समाज के जवान उनके और भी बड़े दुश्मन हैं। आखिर इस जहर को उनके दिमाग में भरता कौन है? इतना तो तय है कि यह जहर पड़ोस के मुल्क से धर्म के नाम पर मुस्लिम कश्मीरियों के जहन में भरा जा रहा है। यह जहर उनके जहन में इस कदर भर दिया गया है कि वे कश्मीरियत और हिंदुस्तानियत भूलकर पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते हैं। नफरत का यह जहर कश्मीर के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी दशकों से चिंता का विषय बना हुआ है। 

बात अगर पाकिस्तान की करें तो पाकिस्तान पी.ओ.के. सहित कश्मीर के गरीब और पिछड़े इलाकों के छोटे बच्चों और युवाओं को जेहादी बनाने में जुटा है, जिसका असर हिंदुस्तान पर पडऩा स्वाभाविक है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी संगठन कश्मीरी युवाओं को साथ लेकर हिंदुस्तान के खिलाफ लडऩे के लिए हमेशा से ही एक आर्मी तैयार करने का प्रयास करते रहे हैं। इस वर्ष सेना के जवानों पर पत्थरबाजी की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि भी पाकिस्तान प्रायोजित रही। सबूत के तौर पर इसी वर्ष फरवरी में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर के पत्थरबाजों के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक गाना भी रिलीज किया था, जिसका टाइटल ‘संगबाज’ रखा गया। ‘संगबाज’ कश्मीर के पत्थरबाजों को कहा जाता है। 

एक जानकारी के अनुसार, जिन लोगों को हिंदुस्तान के खिलाफ पाक तैयार कर रहा है, उनमें से ज्यादातर को हथियार चलाना तक नहीं आता। उन्हें जंगल और खराब मौसम जैसी कठिन परिस्थितियों में रहने की आदत भी नहीं है लेकिन धर्म की चाशनी मिलाकर देशद्रोह का जहर इन युवाओं की रगों में इस कदर भर दिया गया है कि वे सही-गलत का फर्क भूल बैठे हैं। सुरक्षाबलों में मुसलमानों को पाकर आतंकवादियों को अपनी जमीन खिसकती नजर आती है। उन्हें लगता है कि अगर कश्मीर का मुसलमान इसी तरह देश की मुख्यधारा से जुड़ कर आतंक के खिलाफ सीना तानकर सामने आता रहा, तो आतंकवाद की उनकी दुकान का बंद होना निश्चित है। इसलिए जब भी मौका मिलता है वे देशसेवा की भावना के तहत किसी भी सुरक्षाबल से जुड़े मुसलमान को रास्ते से हटा देते हैं। 

इसके पीछे बड़ी वजह है। कहां तो पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवादियों ने कश्मीर में नफरत के शोलों को हवा देते हुए नारा दिया था, ‘तुम कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा...’ और कहां आतंकवाद से ऊब चुके कश्मीर से ‘फैयाज, अयूब और रमीज’ निकल रहे हैं। अमनपसंद मुसलमानों सहित देश के लिए अगर यह फख्र की बात है, तो आतंकियों के मुंह पर यही बात तमाचा है। राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़कर ही मुसलमान सलामती के मजहब ‘इस्लाम’ का सही अर्थ दुनिया को समझा पाएंगे, वरना हाफिज सईद और अजहर मसूद जैसे आतंकवादी मुस्लिम समाज के नायक बनकर मुसलमानों को आतंक की भट्टी का ईंधन बनाते रहेंगे।     

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