व्यवस्था की तह में मौजूद खामियां

Edited By ,Updated: 21 May, 2022 06:19 AM

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हाल ही में फिल्लौर अदालत से जुड़ा एक नाटकीय प्रकरण संज्ञान में आया। चोरी के मामले में पेशी पर आए एक नवयुवक ने फिल्मी अंदाज में न्यायाधीश महोदय पर पिस्तौल तानते हुए कहा,‘‘जज साहब

हाल ही में फिल्लौर अदालत से जुड़ा एक नाटकीय प्रकरण संज्ञान में आया। चोरी के मामले में पेशी पर आए एक नवयुवक ने फिल्मी अंदाज में न्यायाधीश महोदय पर पिस्तौल तानते हुए कहा,‘‘जज साहब! मैं सिर पर कफन बांधकर आया हूं, या तो मेरे केस का फैसला करो, नहीं तो गोली मार दूंगा।’’ 

बाद दोपहर 3 बजे घटित हुई इस घटना से परिसर में हड़कंप मच गया। ए.एस.आई. द्वारा युवक को कब्जे में लेने पर पिस्तौल खिलौना निकली। कारण पूछने पर युवक ने बताया कि जब भी वह सुनवाई पर आता है तो उससे रिश्वत की मांग की जाती है। न देने पर उसके हक में कोई गवाही नहीं होने देता। चोरी के आरोप के चलते बाहर उसे कोई काम भी नहीं देता। पत्नी गर्भवती है, हर जगह  भ्रष्टाचार व्याप्त है। वह मानसिक रूप से टूट चुका है, गुजारा न हो पाने के कारण डेढ़ सौ रुपए में पिस्तौल खरीदकर अपने भविष्य का फैसला करने आया था। 

एस.एस.पी., जालंधर देहात स्वप्न शर्मा के अनुसार युवक नशे का आदी है तथा उसके विरुद्ध चोरी के तीन मामले चल रहे हैं। यह भी गौरतलब है कि उक्त  घटना के समय न्यायाधीश की सुरक्षा में कोई कर्मचारी तैनात नहीं था। एस.एस.पी. के अनुसार, उनका एक निजी सुरक्षा अफसर (पी.एस.ओ.)संबंधित थाने को बिना सूचित किए अवकाश पर था तथा दूसरा पी.एस.ओ. पहले तैनात जज के साथ था, तत्संबंधी जानकारी भी पुलिस को उपलब्ध नहीं करवाई गई। 

पढ़ने में घटना भले ही मामूली प्रतीत हो किंतु यदि गहराई में जाएं तो यह प्रकरण समूची व्यवस्था की पोल खोलता प्रतीत होता है। युवक के कथन में कितनी सत्यता है, परीक्षण के अभाव में यह कहना तो मुमकिन नहीं किंतु सत्यापन के आधार पर इस तथ्य को हरगिज नाकारा नहीं जा सकता कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी देश रिश्वतखोरी से मुक्त नहीं हो पाया। कम अथवा अधिक, प्रत्येक क्षेत्र में आज भी लालफीताशाही अपने विभिन्न रूपों सहित विद्यमान है। 

बगैर रिश्वत दिए कोई सरकारी कार्य संभव नहीं हो पाता, ईमानदारी के कतिपय उदाहरण भी विवशता का ग्रास बनने से बहुधा बच नहीं पाते। ‘वैश्विक रिश्वत जोखिम सूचकांक’ के अनुसार 2021 में भारत 44 अंकों के साथ 82वें पायदान पर रहा जबकि वर्ष 2020 में 45 अंकों के साथ सूची में यह 77वें स्थान पर था। हालांकि पिछले वर्ष के मुकाबले भारत की रैंकिंग में पांच अंकों की गिरावट दर्ज की गई, किंतु स्थिति को संतोषजनक कदापि नहीं कहा जा सकता। 

राष्ट्रीय स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की बात करें तो ‘भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक’(सी.पी.आई.), 2021 में 180 देशों की सूची में भारत को 85वां स्थान मिला जबकि 2020 में भारत 86वें स्थान पर था। ट्रांसपेरैंसी इंटरनैशनल की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पिछली बार के मुकाबले भारत की रैंकिंग में एक स्थान का सुधार अवश्य हुआ है किंतु पिछले एक दशक में देश का स्कोर स्थिर रहने के बावजूद, कुछ तंत्र, जो भ्रष्टाचार रोकने में सहायक बन सकते हैं, कमजोर हो रहे हैं। इससे देश की लोकतांत्रिक स्थिति को लेकर चिंता बढ़ गई है, मौलिक स्वतन्त्रता और संस्थागत नियंत्रण के बीच संतुलन बिगड़ रहा है। 

रोजगार उपलब्धता की बात की जाए तो भी भारत ग्लोबल स्टैंडर्ड से बहुत पीछे है। ‘सैंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ (सी.एम.आई.ई.) की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2021 तक भारत में बेरोजगार लोगों की संख्या 5.3 करोड़ रही, जिसमें महिलाओं की संख्या 1.7 करोड़ है। रिपोर्ट के मुताबिक लगातार काम की तलाश करने के बाद भी 5 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं। ‘वल्र्ड बैंक’ के अनुसार महामारी के दौरान भारत में केवल 43 फीसदी लोग ही रोजगार पाने में सफल रहे। सी.एम.आई.ई. के मुताबिक भारत में केवल 38 फीसदी लोगों को ही रोजगार मिला। 

माहौल, संगति अथवा बेरोजगार जनित अवसाद से उपजती नशाखोरी कालांतर में युवाओं को चोरी, छीनाझपटी, ङ्क्षहसा जैसे अपराधों की ओर ले जा रही है। जैसा कि सर्वविदित है, माननीय अदालत का अंतिम निर्णय आने तक मात्र संदेह के आधार पर किसी व्यक्ति  को अपराधी नहीं माना जा सकता। यहां भी एक गहरी बात उल्लेखनीय है, ‘अपराधी होने’ व ‘अपराधी घोषित होने’ में बहुत बड़ा अंतर है। इसे वर्तमान व्यवस्था का कुप्रबंधन व लोकतंत्र की विडंबना ही कहेंगे कि आज भी साक्ष्यों, गवाहों अथवा पर्याप्त छानबीन के अभाव में न जाने कितने लोग निरपराध होते हुए भी कानूनन अपराधी घोषित हो जाते हैं, वहीं ऐसे लोग भी मिल जाएंगे जो अपराधी होते हुए भी अपने ‘विशेष प्रभाव’ से कानूनी दावपेंच का फायदा उठाते हुए बाइज्जत बरी होने में कामयाब हो जाते हैं। 

अंतत:, आम-सा लगने वाला यह समाचार अप्रत्यक्षत: व्यवस्था का पूरा ब्यौरा प्रकट कर रहा है। अक्सर हम व्यवस्थाओं में परिवर्तन लाने की बात तो करते हैं लेकिन चर्चा केवल समाचार पढऩे-सुनाने तक ही सीमित रह जाती है।-दीपिका अरोड़ा 
 

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