घटता जा रहा है देश में विदेशी मुद्रा भंडार

Edited By Pardeep,Updated: 28 Jun, 2018 04:17 AM

foreign exchange reserves in the country going down

यकीनन यह चिंताजनक है कि 25 जून को देश के विदेशी मुद्रा कोष का स्तर 410 अरब डालर रह गया है, जो एक माह पहले 425 अरब डालर के स्तर पर था। विदेशी मुद्रा कोष के घटने के कुछ कारण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। एक ओर कच्चे तेल के तेजी से बढ़ते हुए आयात बिल और...

यकीनन यह चिंताजनक है कि 25 जून को देश के विदेशी मुद्रा कोष का स्तर 410 अरब डालर रह गया है, जो एक माह पहले 425 अरब डालर के स्तर पर था। विदेशी मुद्रा कोष के घटने के कुछ कारण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। एक ओर कच्चे तेल के तेजी से बढ़ते हुए आयात बिल और विभिन्न वस्तुओं के तेजी से बढ़ते हुए आयात के कारण देश में डालर की मांग बढ़ गई है। 

वहीं दूसरी ओर निर्यात की धीमी गति के कारण डालर की आवक कम है, इससे डालर के मुकाबले रुपए की कीमत भी कम हो गई है। बढ़ते आयात बिल और सुस्त निर्यात के कारण विदेशी मुद्रा कोष पर दबाव बढ़ रहा है। इसके साथ-साथ इन दिनों अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिदिन पैदा हो रही आर्थिक चिंताओं से विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में निवेश करने का जोखिम उठाने से परहेज कर रहे हैं और वे अब अधिक सुरक्षित अमरीका डालर और बांड में अपना निवेश कर रहे हैं।

अमरीकी डालर में लगातार आ रही मजबूती और अमरीका में 10 साल के सरकारी बांड पर प्राप्ति 3 प्रतिशत की ऊंचाई पर पहुंच गई है। ऐसे में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफ.पी.आई.) भारत सहित तेजी से उभरते बाजारों में अपना नया निवेश नहीं लगा रहे हैं तथा वर्तमान निवेश को तेजी से निकालते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि 25 जून को प्रकाशित एम.एस.सी.आई. सूचकांक के अनुसार वैश्विक फंडों का भारत के प्रति आकर्षण वर्ष 2013 के बाद सबसे निचले स्तर पर है। 

उल्लेखनीय है कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में और अधिक गिरावट से आ सकने वाली विदेशी मुद्रा संबंधी वित्तीय और आर्थिक चिंताओं से बचाने के लिए हाल ही में बैंक आफ अमरीका-मेरिल लिंच की रिपोर्ट अति महत्वपूर्ण है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तेजी से बढ़ रही विकास दर के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए भारत के विदेशी मुद्रा कोष का उपयुक्त स्तर बनाए रखना जरूरी है। इस हेतु रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आर.बी.आई.) द्वारा गिरते हुए रुपए को समर्थन देने तथा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के प्रवाह में कमी से निपटने के लिए प्रवासी भारतीय बांड जारी करके 30 से 35 अरब डालर जुटाए जाने चाहिएं। 

पिछले चार वर्षों से भारत के लिए वैश्विक हालात के सकारात्मक रहने से भारतीय रुपया मजबूत रहा है। वैश्विक स्तर पर कम ब्याज दरों वाले दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी फंड का प्रवाह बढऩे से देश का चालू खाता घाटा पाटने में मदद मिली और कच्चे तेल की कम कीमतों ने भी व्यापार घाटे को काबू में रखने की मदद की लेकिन अब भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अनुकूल रहे ये दोनों पहलू कमजोर पड़े हैं। अब वे दिन जाते हुए दिखाई दे रहे हैं जब भारत विदेशी निवेशकों के लिए दुलारा रहा है और उसे भरपूर विदेशी निवेश मिलता रहा। 

वस्तुत: देश की आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के साथ तेल आयात की जरूरत बढ़ती जा रही है। देश में जिस तेजी से तेल का आयात बढ़ रहा है उसके कारण भारत का तेल आयात बिल चिंताजनक संकेत दे रहा है। इस साल कच्चे तेल के आयात पर 50 अरब डालर यानी करीब 3.4 लाख करोड़ रुपए ज्यादा खर्च आ सकता है। इसकी वजह है कच्चे तेल के दाम में बढ़ौतरी। देश में तेजी से बढ़ते हुए विदेश व्यापार घाटे के कारण भी डालर की जरूरत लगातार बढ़ी है। यद्यपि पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में देश ने निर्यात के 300 अरब डालर के लक्ष्य स्तर को छू लिया है लेकिन निर्यात की तुलना में आयात डेढ़ गुना बढ़ा, परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2017-18 के लिए व्यापार घाटा बढ़कर 156.83 अरब डालर हो गया जो वित्त वर्ष 2016-17 में 108.50 अरब डालर था। पिछले वित्त वर्ष का व्यापार घाटा पिछले 4 सालों में सबसे ज्यादा है। 

ऐसे में विदेशी मुद्रा कोष का स्तर बनाए रखने के लिए कई कदम जरूरी हैं। भारत में निर्यात को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिए और सभी निर्यातकों के लिए ब्याज सबसिडी बहाल की जानी चाहिए। देश से निर्यात बढ़ाने के लिए कम से कम कुछ ऐसे देशों के बाजार भी जोड़े जाने होंगे, जहां गिरावट अधिक नहीं है। सरकार द्वारा भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू किया जाना होगा। उससे आयात में गिरावट आने के साथ निर्यात में वृद्धि भी होगी जिससे भारत उन प्रतिकूल परिस्थितियों के खतरे का बाखूबी सामना कर पाएगा जिनके कारण डालर की तुलना में रुपए के मूल्य में गिरावट आ रही है। 

इन कदमों के साथ-साथ देश के विदेशी मुद्रा कोष का स्तर बनाए रखने के लिए बैंक आफ अमरीका-मेरिल लिंच के सुझावों के अनुरूप भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शीघ्रतापूर्वक 30 से 35 अरब डालर के एन.आर.आई. बांड जारी किए जाने चाहिएं। निश्चित रूप से इससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर बढ़ेगा और भारत का आर्थिक विकास तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई दे सकेगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी

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