‘मुक्त व्यापार समझौता’ किसानों पर असर डालेगा

Edited By ,Updated: 01 Nov, 2019 02:46 AM

free trade agreement  will affect farmers

अगले सप्ताह भारत सरकार एक दूरगामी व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली है जिससे भारत के किसानों और दुग्ध उत्पादकों के बर्बाद होने की आशंका है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 4 नवम्बर को इस पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं। रीजनल कंप्रीहैंसिव इकोनामिक...

अगले सप्ताह भारत सरकार एक दूरगामी व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली है जिससे भारत के किसानों और दुग्ध उत्पादकों के बर्बाद होने की आशंका है। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 4 नवम्बर को इस पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं। रीजनल कंप्रीहैंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप (आर.सी.ई.पी.) यानी क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी के नाम से 16 देशों के बीच प्रस्तावित इस मुक्त व्यापार समझौते में दक्षिण पूर्वी एशिया के सभी देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिणी कोरिया के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हो रहे हैं। यानी कि इस समझौते के तहत दुनिया की आधी आबादी और 40 प्रतिशत आर्थिक ताकत शामिल हो जाएगी। इस समझौते के लिए बातचीत पिछली कांग्रेस सरकार के समय 2012 में शुरू हो गई थी। 

समझौते की आधिकारिक जानकारी नहीं
हैरानी की बात यह है कि 7 साल तक 26 राऊंड की आधिकारिक चर्चा के बावजूद देश में अभी तक इस समझौते के बारे में किसी को आधिकारिक जानकारी नहीं है। हस्ताक्षर की तैयारी है लेकिन आज तक समझौते का मसविदा सार्वजनिक नहीं किया गया है। खबर यह है कि पिछले साल सभी देशों में समझौते के मुख्य अंशों को सार्वजनिक करने की बात उठी तो भारत सरकार की जिद पर इसे गुप्त बनाए रखा गया। कृषि और डेयरी के लिए जिम्मेदार राज्य सरकारों के साथ इसके बारे में कोई बातचीत नहीं हुई है। संसद या संसद की समिति में भी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई है। 

आर.सी.ई.पी. भारत का कोई पहला मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। भारत पहले ही विश्व व्यापार संघ (डब्ल्यू.टी.ओ.) का सदस्य है और अब तक 42 मुक्त व्यापार समझौते कर चुका है। इनके तहत कई देशों के साथ भारत का व्यापार शुल्क रहित होता है  लेकिन अब तक ये सब समझौते सीमित थे। विश्व व्यापार संघ मेंं शामिल होने के बावजूद भारत सरकार ने कृषि उत्पाद और दूध आदि को खुले व्यापार से काफी हद तक बचाए रखा है। आर.सी.ई.पी. पहला बड़ा मुक्त व्यापार समझौता होगा जिसका असर सीधे-सीधे किसान पर पड़ेगा। 

आर.सी.ई.पी. को लेकर आशंका यह है कि इस समझौते के बाद भारत समेत सभी देशों को कृषि पदार्थों के आयात पर लगे शुल्क हटाने होंगे। इसके चलते एक-दो फसलों में भारत के किसान को फायदा हो सकता है। लेकिन अनेक फसलों में भारत की कृषि पर बाहरी देशों से बड़े पैमाने पर आयात का खतरा होगा जिससे बाजार में फसलों के दाम और भी गिर जाएंगे। श्रीलंका और दक्षिण पूर्वी एशिया से हुए मुक्त व्यापार समझौते के बाद काली मिर्च, इलायची, नारियल और रबड़ के किसान बर्बादी झेल चुके हैं। पाम ऑयल के बड़े पैमाने पर आयात की वजह से भारतीय बाजार में तिलहन के दाम गिरे हैं। दाल का आयात होने पर किसान को होने वाला असर हम देख चुके हैं। अब तक तो सरकार शुल्क बढ़ाकर इस आयात से किसान को बचा सकती थी लेकिन यह समझौता लागू होने के बाद सरकार के हाथ से यह अधिकार चला जाएगा। 

आर.सी.ई.पी. की सबसे बड़ी मार डेयरी सैक्टर यानी दुग्ध उत्पादकों पर पड़ेगी। वैसे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है और दूध के मामले में आत्मनिर्भर है लेकिन ऑस्ट्रेलिया और खासतौर पर न्यूजीलैंड बड़े पैमाने पर निर्यात के लिए दूध का उत्पादन करता है। फिलहाल भारत सरकार ने विदेश से दूध और दूध पाउडर के आयात पर 34 प्रतिशत शुल्क लगाकर दुग्ध उत्पादकों को बचाया हुआ है। लेकिन आर.सी.ई.पी. लागू होने पर इस शुल्क को हटाना पड़ेगा। न्यूजीलैंड अगर अपने दूध उत्पादन का 5 प्रतिशत भी भारत में बेच देता है तो भारतीय बाजार में दूध की बाढ़ आ जाएगी। न्यूजीलैंड से दूध का पाऊडर आएगा और उससे ताजा दूध बनाकर बेचा जाएगा। भारत में 10 करोड़ दूध उत्पादक और डेरियां बर्बाद हो जाएंगी। 

शुल्क घटने के अलावा और आशंकाएं भी हैं। इस समझौते में बीज की कम्पनियों की पेटैंट की ताकत बढ़ जाएगी। इस तरह के समझौतों में मुकद्दमा विदेशी मंच पर होता है और खुफिया तरीके से चलता है। खतरा यह भी है कि इस समझौते से विदेशी कंपनियों को हमारे यहां खेती की जमीन खरीदने का अधिकार मिलेगा। उन्हें फसलों की सरकारी खरीद में भी हिस्सा लेने का मौका मिलेगा।

ये आशंकाएं हवाई नहीं हैं। इन्हें व्यक्त करते हुए पंजाब और केरल की सरकार ने औपचारिक रूप से केन्द्र सरकार को लिखा है, मांग की है कि उसे चर्चा में शामिल किया जाए। अमूल डेयरी सहित देश के अधिकांश सहकारी डेयरी संघ इस बारे में वाणिज्य मंत्री को मिलकर अपनी आशंका जता चुके हैं। अमूल डेयरी के महाप्रबंधक और डेयरी के नामी-गिरामी एक्सपर्ट डाक्टर सोढी खुलकर इस संधि के खिलाफ बोल रहे हैं। देशभर के अनेक संगठन इसके खिलाफ एक दिवसीय विरोध व्यक्त कर चुके हैं। 

यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित स्वदेशी जागरण मंच भी खुलकर इस समझौते के विरुद्ध बोल रहा है। सरकार मौन है। सिर्फ गाहे-बगाहे इतना बोल देती है कि राष्ट्रीय हित का ध्यान रखा जाएगा। लेकिन डर बना हुआ है कि आई.टी. और फार्मा उद्योग में कुछ लाभ लेने के लिए किसानों के हितों की कुर्बानी दी जा रही है। राष्ट्र के किस हित का कितना ध्यान रखा गया, यह तो 4 नवम्बर को ही पता लग पाएगा।-योगेन्द्र यादव
 

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