जी.एस.टी. देश के सुधार के लिए बहुत अहम

Edited By ,Updated: 02 Jul, 2019 03:57 AM

g s t very important for the improvement of the country

सेवा एवं वस्तु कर (जी.एस.टी.) व्यवस्था अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गई है। विश्व की सबसे बेढंगी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का पुनर्गठन आसान काम नहीं था। कुछ कम जानकार लोगों द्वारा बढ़ा-चढ़ा कर की गई टिप्पणियों ने जी.एस.टी. लागू करने की चुनौतियों को और...

सेवा एवं वस्तु कर (जी.एस.टी.) व्यवस्था अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गई है। विश्व की सबसे बेढंगी अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का पुनर्गठन आसान काम नहीं था। कुछ कम जानकार लोगों द्वारा बढ़ा-चढ़ा कर की गई टिप्पणियों ने जी.एस.टी. लागू करने की चुनौतियों को और बढ़ा दिया। इसलिए गत दो वर्षों पर नजर डालना तथा जी.एस.टी. को लागू करने व इसके प्रभावों या परिणामों की समीक्षा करना उपयुक्त होगा।

जी.एस.टी. से पहले की व्यवस्था
एक संघीय ढांचे में केन्द्र तथा राज्य दोनों ही वस्तुओं पर अप्रत्यक्ष कर लगा सकते हैं। राज्यों में कई कानून थे, जो उन्हें विभिन्न बिन्दुओं पर कर लगाने योग्य बनाते थे। तब सामने दोहरी चुनौती थी। पहली, राज्यों को राजी करना क्योंकि उनमें से कुछ यह महसूस करते थे कि वे करों के मामले में अपनी वित्तीय स्वायत्तता गंवा रहे हैं और दूसरी, संसद में सर्वसम्मति बनाना। राज्य किसी अज्ञात डर से ङ्क्षचतित थे। महत्वपूर्ण बिन्दू, जिसने उनको मनाने योग्य बनाया, वह था 2015-16 के कर आधार से 5 वर्षों तक 14 प्रतिशत की वाॢषक वृद्धि का वायदा। 

जी.एस.टी. ने इन सभी 17 अलग कानूनों का विलय कर दिया और केवल एक कर प्रणाली बना दी। जी.एस.टी. से पूर्व कर की दर के तौर पर मूल्य वॢद्धत कर (वैट) था 14.5 प्रतिशत, आबकारी 12.5 प्रतिशत तथा सी.एस.टी. के साथ करों पर कर के साथ उपभोक्ता द्वारा चुकाया जाने वाला कर 31 प्रतिशत था। राज्यों द्वारा लगाया जाने वाला मनोरंजन कर 35 प्रतिशत से 110 प्रतिशत था। असैसी को कई तरह की रिटन्र्स भरनी पड़ती थीं, कई तरह के इंस्पैक्टरों की आवभगत करनी पड़ती थी और इसके अतिरिक्त अकुशलता का सामना करना पड़ता था-ट्रक कई दिनों तक राज्य की सीमाओं पर फंसे रहते थे। जी.एस.टी. ने इस परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया। आज केवल एक कर, आनलाइन रिटन्र्स हैं, कोई प्रवेश कर नहीं, ट्रकों की कतारें नहीं और न ही अन्तर्राज्यीय बैरियर। 

उपभोक्ता एवं असैसी मित्र
दो वर्ष बाद कोई भी विश्वासपूर्वक  तथा अन्तॢवरोध के डर के बिना तर्क दे सकता है कि जी.एस.टी. उपभोक्ता तथा असैसी दोनों के लिए मैत्रीपूर्ण साबित हुई है। जी.एस.टी. से पूर्व उच्च कर उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डालते थे और कर अनुपालन के खिलाफ निरुत्साहित करने वाले के तौर पर काम करते थे। गत दो वर्षों के दौरान चूंकि कर संग्रह में सुधार हुआ, जी.एस.टी. परिषद की प्रत्येक बैठक में उपभोक्ताओं पर करों के बोझ में कमी की गई। निश्चित तौर पर एक कुशल कर प्रणाली बेहतर अनुपालन का कारण बनती है। 31 प्रतिशत कर जो अस्थायी तौर पर 28 प्रतिशत था, ने एक सबसे बड़ा सुधार देखा है। 

उपभोक्ताओं के इस्तेमाल वाली अधिकतर वस्तुओं को 18 प्रतिशत, 12 प्रतिशत और यहां तक कि 5 प्रतिशत के वर्ग में लाया गया है। केवल लग्जरी वस्तुओं को उच्च वर्ग में रखा गया है। सभी वर्गों में अचानक कटौती सरकारी राजस्व में भारी कमी का कारण बन सकती है, जिससे खर्च करने के लिए सरकार के पास अन्य कोई स्रोत नहीं बचेंगे। जैसे-जैसे राजस्व बढ़ेगा धीरे-धीरे जी.एस.टी. की दरों में कमी लाई जाएगी। सिनेमा की टिकटों पर पहले 35 से 110 प्रतिशत कर लगता था जिसे कम करके 12 तथा 18 प्रतिशत लाया गया है। रोजमर्रा के इस्तेमाल की अधिकतर वस्तुएं शून्य या 5 प्रतिशत के खंडों में हैं। सांझे तौर पर इस कटौती के कारण राजस्व को होने वाला नुक्सान प्रति वर्ष 90,000 करोड़ रुपए से अधिक है। 

कर दायरा बढ़ाना व उच्च राजस्व
असैसी आधार गत 2 वर्षों में 84 प्रतिशत बढ़ा है। जी.एस.टी. के अंतर्गत आने वाले असैसीज की संख्या लगभग 65 लाख थी, जो आज 1.20 करोड़ है। स्वाभाविक है कि इस कारण राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई है। 2017-18 के 8 महीनों (जुलाई से मार्च) में प्रति माह इक_ा किया गया औसतन राजस्व 89,700 करोड़ रुपए था। अगले वर्ष (2018-19) में मासिक औसत लगभग 10 प्रतिशत बढ़कर 97,100 करोड़ रुपए हो गई। राज्यों के डर को देखते हुए पहले 5 वर्षों तक उन्हें 14 प्रतिशत वृद्धि की गारंटी दी गई है। अब संदेह इस बात को लेकर है कि 5 वर्षों बाद क्या होगा? प्रत्येक राज्य को उसके कर का हिस्सा दिया जा रहा है और साथ ही अगर जरूरत पड़े तो क्षतिपूर्ति निधि से भी। हमने अभी जी.एस.टी. के मात्र 2 वर्ष पूरे किए हैं। 2 वर्षों के बाद पहले ही 20 राज्य स्वतंत्र तौर पर अपने राजस्व में 14 प्रतिशत की वृद्धि दिखा रहे हैं और उनके मामले में क्षतिपूर्ति कोष की जरूरत नहीं है। 

सरलीकरण तथा अनुपालन
40 लाख रुपए वाॢषक की टर्नओवर वाले व्यवसाय जी.एस.टी. से बाहर हैं। जिनकी टर्नओवर 1.5 करोड़ तक है वे कम्पोजिशन स्कीम का इस्तेमाल करते हुए केवल एक प्रतिशत कर चुकाते हैं। अब एकल पंजीकरण प्रणाली है जो ऑनलाइन है और व्यापार तथा व्यवसाय की प्रक्रियाओं की नियमित समीक्षा करके उनका सरलीकरण किया जाता है। 

कुछ गलत विचार
बहुत से लोगों ने हमें चेतावनी दी कि जी.एस.टी. को लागू करना राजनीतिक तौर पर सुरक्षित नहीं है। बहुत से देशों में जी.एस.टी. के कारण सरकारें चुनाव हार गईं। भारत इसके सर्वाधिक सुगम बदलाव वाला देश था। लागू करने के पहले कुछ सप्ताहों में ही नई प्रणाली व्यवस्थित हो गई। सूरत में कुछ प्रदर्शन हुए। मुद्दों को सुलझा लिया गया। 2019 में भाजपा ने सूरत की सीट देश में सबसे अधिक अंतर से जीती। जो लोग एक ही स्लैब की जी.एस.टी. के पक्ष में तर्क देते हैं उन्हें अवश्य अहसास है कि एक स्लैब केवल अत्यंत धनी देशों में सम्भव है जहां लोग गरीब नहीं। ऐसे देशों में एक दर लागू करना अन्याय होगा जहां बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। 

प्रत्यक्ष कर एक प्रगतिशील कर है। जितना अधिक आप कमाते हैं उतना अधिक आप चुकाते हैं। अप्रत्यक्ष कर एक पीछे ले जाने वाला कर है। जी.एस.टी. से पहले वाली व्यवस्था में अमीर तथा गरीब विभिन्न वस्तुओं पर एक समान कर चुकाते थे। विभिन्न दरों वाली स्लैब्स ने न केवल मुद्रास्फीति पर काबू पाया बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि आम आदमी के उत्पादों पर अत्यधिक कर न लगाया जाए। हवाई चप्पल तथा मर्सीडीज कार को कर की एक ही दर में नहीं रखा जा सकता। इसका अर्थ यह नहीं कि स्लैब्स के युक्तिकरण की जरूरत नहीं है। वह प्रक्रिया पहले ही जारी है। लग्जरी वस्तुओं के अतिरिक्त 28 प्रतिशत की श्रेणी को लगभग समाप्त कर दिया गया है। शून्य तथा 5 प्रतिशत की स्लैब हमेशा रहेगी। जैसे-जैसे राजस्व में वृद्धि होगी नीति निर्माताओं को सम्भवत: 12 तथा 18 प्रतिशत की स्लैब्स को एक दर में विलय करने का अवसर मिलेगा, जिससे जी.एस.टी. प्रभावी रूप से दो दरों वाला कर बन जाएगी। 

जी.एस.टी. परिषद की भूमिका
जी.एस.टी. परिषद देश का पहला संवैधानिक संघीय संस्थान है। केन्द्र तथा राज्य मिलकर बैठते और निर्णय लेते हैं। दोनों ने अपने वित्तीय अधिकारों को एक संयुक्त फोरम में सांझा कर लिया है ताकि एक सांझा बाजार तैयार किया जा सके। जी.एस.टी. परिषद की अध्यक्षता करते हुए दो वर्षों का मेरा अपना अनुभव यह था कि राज्यों के वित्त मंत्रियों ने यह परवाह न करते हुए कि उनके दल क्या राजनीतिक स्थिति रखते हैं, नेतृत्व के उच्च स्तर का प्रदर्शन तथा परिपक्वता से कार्य किया। परिषद सर्वसम्मति के नियम पर कार्य करती है। इसने निर्णय लेने की प्रक्रिया बारे विश्वसनीयता बढ़ाई है। मुझे विश्वास है कि यह रुझान भविष्य में भी जारी रहेगा।-अरुण जेतली

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