गडकरी का ‘अकेलापन’

Edited By ,Updated: 20 Sep, 2019 12:58 AM

gadkari s  loneliness

नितिन गडकरी ने सोचा था कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में आगे हो सकते हैं क्योंकि उन्होंने उनके पहले कार्यकाल के दौरान प्रयास किया था जिसके मिले-जुले परिणाम मिले थे। गडकरी भाजपा की आंतरिक गतिशीलता में गहरे बदलाव को पहचान नहीं पाए...

नितिन गडकरी ने सोचा था कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में आगे हो सकते हैं क्योंकि उन्होंने उनके पहले कार्यकाल के दौरान प्रयास किया था जिसके मिले-जुले परिणाम मिले थे। गडकरी भाजपा की आंतरिक गतिशीलता में गहरे बदलाव को पहचान नहीं पाए थे। उनकी एक बड़ी गलती यह मानना था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उनकी मदद करेगा। नागपुर के साथ संबंधित होने के नाते संघ का ‘समर्थन’ गडकरी के फैन क्लब को बिना किसी प्रयास के ऊर्जा प्रदान करता था मगर यह एक आधा मिथक था। 

संघ ने बड़ी गहराई से भाजपा के समीकरणों की समीक्षा की और वह जानता था कि उसके हित कहां निहित हैं और कौन सबसे बेहतर तरीके से उनकी पूॢत कर सकता है। इस बात में कोई प्रश्र नहीं कि वर्ष 2012 से ही मोदी देश के सर्वोच्च पद के लिए नागपुर के व्यक्ति थे। यही कारण है कि जब 2013 में गडकरी की जगह राजनाथ सिंह, जो उस समय मोदी की योजनाओं के अधिक अनुकूल थे, को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया तो संघ संतुष्ट था। 

नागपुर के साथ ‘नजदीकी’
2019 2014 नहीं है। सम्भवत: मोदी ने जब पहली बार दिल्ली में सत्ता सम्भाली तो वह गडकरी की नागपुर के साथ ‘नजदीकी’ को लेकर सुनिश्चित नहीं थे, जिस कारण उन्हें भू-अधिग्रहण विधेयक को आगे बढ़ाने को लेकर आलोचनाओं को सहना पड़ा, जो भाजपा के भीतर तथा बाहर से उठ रही थीं। गडकरी अपनी बात पर अड़े रहे और जब राज्यसभा में विधेयक अटक गया, जहां भाजपा तथा उसके सहयोगी अल्पमत में थे तो उन्होंने अध्यादेश जारी करने पर जोर दिया। आखिरकार मोदी को अहसास हो गया कि विधेयक राजनीतिक तौर पर समर्थनीय नहीं था क्योंकि सरकार तथा भाजपा किसानों को अलग-थलग करके एक वोट बैंक नहीं गंवा सकती थीं। 

मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक
अब जबकि गडकरी हमेशा की तरह मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 के मामले में अपना बचाव कर रहे हैं, उन्हें भाजपा में दरकिनार कर दिया गया है। उन्हें भू-अधिग्रहण मामले से भी अधिक तेजी से पीछे मुडऩा होगा। क्योंकि भाजपा शासित राज्यों ने अत्यंत सक्रिय रूप से खुद को इन बदलावों से परे कर लिया है। सच कहें तो संशोधन आधिकारिक पैनल्स में वाद-विवाद का विषय थे और इसलिए कानून में संशोधन का आरोप अकेले उन पर नहीं लगाया जा सकता। उनके तर्क कि सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं, लोग दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद नहीं करते और उसे उसके भाग्य पर छोड़ दिया जाता है, लोग प्रदूषण जांच नहीं करवाते तथा बीमा पालिसियों के नवीनीकरण के प्रति उनका रवैया बहुत ढीला होता है, लोग ड्राइविंग के समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं और रैड लाइट कूद जाते हैं, संशोधन विधेयक में सुधारों के लिए बहुत अच्छे थे और उन्हें सही मायनों में लिया जाना चाहिए। 

आशा थी कि शहरी सूझवान वर्ग इन बदलावों का स्वागत करेगा लेकिन हुआ इसके विपरीत। मोदी का गृह राज्य पहला था जिसने यह कानून लागू करने के खिलाफ अपने कदम पीछे खींचे। क्या विजय रूपाणी किसी अन्य केन्द्रीय कानून के खिलाफ इतना ही मुखर कदम उठाते? आपका अनुमान उतना ही अच्छा है जितना कि मेरा। रूपाणी से संकेत लेते हुए उत्तराखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा झारखंड में भाजपा की सरकारों ने संशोधनों का विरोध किया। जाहिरा तौर पर केन्द्र तथा राज्यों के बीच मतभेदों के चलते आखिरकार गडकरी को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि राज्य जैसे चाहें, संशोधनों का इस्तेमाल करने के लिए मुक्त हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रुझान की शुरूआत करते हुए गडकरी के कदम का स्वागत किया। मगर बाद में केजरीवाल ने यह अहसास न करते हुए कि सत्ता का केन्द्र सड़क परिवहन तथा उच्च मार्ग मंत्रालय में नहीं होता, केन्द्र का अनुग्रह पाने के लिए कड़े प्रयास शुरू कर दिए। 

गडकरी के लिए हिचकोलेदार सफर
गडकरी के लिए सड़क पर यह एक हिचकोलेदार सफर है। पत्रकार एवं लेखिका सुचेता दलाल के अनुसार भारत के राष्ट्रीय उच्च मार्ग प्राधिकरण (एन.एच.ए.आई.) का ऋण 2014, जब मोदी सरकार ने कार्यभार सम्भाला था, 40,000 करोड़ रुपए से गडकरी की निगरानी में बढ़कर 2019 में 1.78 लाख करोड़ रुपए हो गया। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) ने एन.एच.ए.आई. को सड़कों के निर्माण का कार्य बंद करने तथा सम्पत्ति को बेचने के लिए कहा था लेकिन गडकरी ने ध्यान नहीं दिया। 

शीर्ष की ओर से कुछ और संकेत? एयर इंडिया में विनिवेश को लेकर पुनर्गठित मंत्रिमंडलीय समूह से गडकरी को बाहर रखा गया, जिसका मोदी के पहले कार्यकाल में वह हिस्सा थे। जो लोग नागपुर के इस सांसद को जानते हैं, उनका कहना है कि वह युद्ध को जारी रखेंगे, इस विश्वास से मोहित होकर कि संघ उनके पक्ष में है। मगर वह बुलबुला तो काफी समय पहले फूट चुका है।-आर. रमेशन

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