गांधी परिवार को महसूस करना चाहिए कि ‘2020 अब 1998 जैसा’ नहीं

Edited By ,Updated: 04 Aug, 2020 02:08 AM

gandhi family should feel that 2020 is not 1998 like now

पिछले वर्ष अगस्त में राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था। तब से लेकर अब तक पहली बार पुराने दिग्गजों जोकि सोनिया के वफादार हैं तथा राहुल की टीम के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है तथा यह अब जगजाहिर हो चुका है। इस...

पिछले वर्ष अगस्त में राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला था। तब से लेकर अब तक पहली बार पुराने दिग्गजों जोकि सोनिया के वफादार हैं तथा राहुल की टीम के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है तथा यह अब जगजाहिर हो चुका है। इस घबराहट का मुख्य कारण साधारण है। पुराने दिग्गज तथा युवा नेता दोनों ही पार्टी की यथास्थिति को लेकर निराश हैं। यह उस समय हुआ जब पार्टी को अपने पुनर्निर्माण की जरूरत है। सोनिया ने जब अध्यक्षता की छड़ी को 2017 में राहुल गांधी के हाथों में सौंपा था, तब उन्होंने दोनों कैम्पों के बीच समन्वय बनाने की ओर ध्यान नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि अब दोनों ही बेताब हैं। 

पुराने दिग्गजों तथा युवा नेताओं के बीच झगड़ा कोई नई बात नहीं
ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस कई रणनीतिक तथा राजनीतिक गलतियां कर रही है। पुराने दिग्गजों तथा युवा नेताओं के बीच झगड़ा कोई नई बात नहीं। यह इंदिरा गांधी के दिनों से चल रहा है। जब 1969 में पार्टी दोफाड़ हुई थी तब कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज के नेतृत्व वाले सिंडीकेट को बाहर किया गया था। सिंडीकेट का मानना था कि वह इंदिरा गांधी को जोड़ने-तोड़ने में कामयाब होंगे। मगर गांधी एक चालाक राजनेता साबित हुईं तथा पार्टी के दोफाड़ होने के साथ और सशक्त होकर उभरीं। बंगलादेश युद्ध को जीतने के बाद राजनीतिक तौर पर इंदिरा गांधी अपने शीर्ष पर पहुंच चुकी थीं। उसके बाद 1978 में जब कांग्रेस पार्टी दोफाड़ हुई, तब (इंदिरा) असली कांग्रेस बनकर उभरी। 

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी ने सता की बागडोर संभाली तब वह अपनी ही मंडली में घिरे हुए थे। मगर उन्होंने अपने साथ कुछ वरिष्ठ कांग्रेसियों को रखा क्योंकि वह राजनीतिक तौर पर एक सशक्त नेता थे जिनके पास 400 कांग्रेसी सांसदों का समर्थन था। पुराने दिग्गजों तथा युवा नेताओं के बीच झगड़ा मूक होकर रह गया। पुराने दिग्गजों का एक वर्ग सोनिया गांधी को 1998 में लेकर आया तथा वे सब उनके वफादार थे। जबकि सोनिया भी उन पर बहुत ज्यादा निर्भर थीं।पुराने दिग्गजों के बीच लड़ाई उस समय शुरू हुई, जब सोनिया ने राहुल को प्रोमोट करना शुरू कर दिया और पुराने दिग्गजों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा। वहीं दूसरी ओर राहुल की टीम बेताब नजर आने लगी। सामान्य बुद्धि वाले दिग्गज किसी तरह सोनिया को वापस लाने में सफल हुए जब राहुल ने इस्तीफा दे दिया था। 

स्वयं राहुल ने पुराने वरिष्ठ नेताओं की आलोचना कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में की। ज्योतिरादित्य सिंधिया के मार्च में पार्टी छोडऩे के बाद तथा सचिन पायलट के राजस्थान में चल रहे संघर्ष से राहुल की टीम और ज्यादा उत्तेजित हो गई। वास्तविकता यह है कि नवनिर्वाचित सांसद राजीव सातव जोकि राहुल के करीबी माने जाते हैं, ने पुराने दिग्गजों तथा यू.पी.ए.-2 की काफी आलोचना की। आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, मिङ्क्षलद देवड़ा इत्यादि वरिष्ठ नेताओं ने सातव की कड़े शब्दों में निंदा की जिसके नतीजे में उनको यू.पी.ए.-2 के बारे में की गई अपनी टिप्पणी को वापस लेना पड़ा। 

सोनिया तथा राहुल, इंदिरा और राजीव जैसे नहीं। राजनीतिक तौर पर एक  सशक्त कांग्रेस से एक कमजोर कांग्रेस का नेतृत्व करना अलग बात है। पिछले चार माह में सिंधिया तथा पायलट जैसे दो युवा करिश्माई नेताओं के बाहर हो जाने से तथा मध्य प्रदेश  के कांग्रेस के हाथों से निकल जाने के बाद नेतृत्व और कमजोर पड़ गया है। राजस्थान में भी कांग्रेस की स्थिति ठीक नहीं है। राहुल की टीम के मिलिंद देवड़ा तथा जितिन प्रसाद जैसे युवा नेता भी कांग्रेस को अलविदा कहने के लिए तैयार हैं। 

पार्टी में राहुल को चुनौती देने वाला कोई नहीं
इस समय कांग्रेस के लिए प्राथमिकता नेतृत्व को लेकर बने शून्य स्थान को भरने की है। यदि राहुल पार्टी प्रमुख के तौर पर वापस आना चाहते हैं तो उन्हें जल्द ही आना होगा। ‘राहुल वापस लाओ’ के नारे पहले से ही शुरू हो चुके हैं। यह गांधी परिवार के लिए सौभाग्यशाली बात है कि यहां पर राहुल को चुनौती देने वाला कोई नहीं। यदि वह वापसी के लिए तैयार नहीं हैं तो उन्हें स्पष्ट तौर पर बता देना चाहिए। 

कांग्रेस में नाराजगी भी कोई नई नहीं है क्योंकि कांग्रेस ने एक छतरी के नीचे सबको इकट्ठा करने के तौर पर कार्य किया है। इस छतरी में सभी विचारों के लिए स्थान उपलब्ध करवाया गया था। मगर पार्टी फोरम पर अंदरूनी तौर पर बहस करने तथा मतभेदों को सार्वजनिक करने में दो विभिन्न अंतर हैं। कांग्रेस पार्टी में पीढिय़ों का फर्क भी काफी आगे बढ़ चुका है और यदि कोई भी सही कदम न उठाए गए तब कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए मुश्किलें पैदा हो जाएंगी। क्या इस मसले को हल किया जा सकता है? दोनों ही कैम्प इंतजार करने के लिए तैयार नहीं। सोनिया गांधी तथा राहुल दोनों ही असहाय होकर इस लड़ाई को देख रहे हैं। 

कांग्रेस के पूर्व नेता सलमान खुर्शीद ने वर्तमान संकट को एक संभावना में डाल दिया है। एक लेख में उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि ‘‘भावी युवा नेताओं को खो देना जोकि बिना किसी कारण है, वास्तव में खेदजनक तथा दुखदायी है। मगर युवाओं जोकि यह महसूस करते हैं कि पुरानी पीढ़ी उन्हें रास्ता नहीं दे रही, को यह नहीं भूलना चाहिए कि यहां पर युवा नेता भी हैं, जो इंतजार में हैं। यह संकट युवा तथा पुराने दिग्गजों का नहीं बल्कि यह संकट उनका है, जो पार्टी को छोडऩा चाहते हैं तथा दूसरी ओर कुछ ऐसे भी हैं जो इस तूफानी मौसम में जहाज को छोडऩा नहीं चाहते।’’ पार्टी में स्खलन शुरू हो चुका है। जैसा कि 1998 में सोनिया गांधी के आने से पहले हुआ था। गांधी परिवार को महसूस करना चाहिए कि 2020 1998 जैसा नहीं। परिवार ने यह भी प्रमाणित कर दिया है कि अब वे वोटों को आकॢषत करने वाले नहीं रहे।-कल्याणी शंकर
  

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!