गांधीनगर में अब होगी ‘शाहगिरी’

Edited By ,Updated: 24 Mar, 2019 04:23 AM

gandhinagar will now be  shahagiri

बापू की नगरी गांधीनगर को भगवा पार्टी ने तोहफे में एक नया शाह बख्शा है अमित शाह, जिनकी शाहगिरी सियासी हलकों में जानी-पहचानी है। गांधीनगर से उनकी उम्मीदवारी पर सस्पैंस अंत समय तक बना रहा, यहां तक कि पहले से तय भाजपा की प्रैस कांफ्रैंस की मियाद भी 15...

बापू की नगरी गांधीनगर को भगवा पार्टी ने तोहफे में एक नया शाह बख्शा है अमित शाह, जिनकी शाहगिरी सियासी हलकों में जानी-पहचानी है। गांधीनगर से उनकी उम्मीदवारी पर सस्पैंस अंत समय तक बना रहा, यहां तक कि पहले से तय भाजपा की प्रैस कांफ्रैंस की मियाद भी 15 मिनट आगे खिसकानी पड़ी। भाजपा से जुड़े सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो गांधीनगर सीट पर सबसे मजबूत दावा प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल की पुत्री अनार पटेल का था। कहते हैं अनार को एक तरह से पी.एम. मोदी का ‘गो अहैड’ मिला हुआ था। इसीलिए वह पिछले डेढ़-दो सालों से गांधीनगर में अपने एन.जी.ओ. के मार्फत सक्रिय थीं।

इस दफे भी टिकट की घोषणा होने से पूर्व भाजपा हाईकमान की ओर से तीन ऑब्जर्वर गांधीनगर संसदीय सीट को रवाना किए गए थे और कहते हैं कि इनमें से दो ऑब्जर्वरों ने अपनी रिपोर्ट अनार के पक्ष में दी थी जबकि एक ऑब्जर्वर की राय शाह के पक्ष में बताई जा रही थी। यहां तक कि गांधीनगर संसदीय सीट से ज्यादातर भाजपा विधायक भी अनार के पक्ष में कदमताल करते दिखे। आखिरी वक्त पर अध्यक्ष जी की कीर्तन मंडली ने एक तुर्रा उछाला कि चूंकि यह भाजपा के लौहपुरुष अडवानी की सीट रही है सो, यहां से पार्टी के किसी ‘राष्ट्रीय छवि’ वाले नेता को चुनाव लड़वाना चाहिए और शाह ने यहां से अपना दावा ठोंक दिया। केन्द्र में पुन: यदि मोदी सरकार बनती है तो राजनाथ सिंह की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि नम्बर दो (गृह मंत्री) का दावा अमित शाह का हो सकता है। वैसे भी राजनाथ सिंह को हटा कर ही अमित शाह अध्यक्ष बने थे।

शाह की वाह में
अमित शाह भी अब अपने मैंटर नरेंद्र मोदी के नक्शेकदम पर चल पड़े हैं। मोदी की स्वप्रचार शैली से अभिभूत शाह अब अपने लिए भी वैसे ही छद्म रचने लगे हैं। सूत्र बताते हैं कि एक बड़े विदेशी प्रकाशन समूह ने शाह की बॉयोग्राफी छापने का जिम्मा उठाया है, इस समूह का एक दफ्तर दिल्ली में भी है। अभी पिछले दिनों इस प्रकाशन समूह की टीम शाह से मिलने पहुंची थी और इस बॉयोग्राफी का ब्ल्यू पिं्रट उनसे अप्रूव भी करा लिया है। सूत्रों की मानें तो लकदक सज्जा से लबरेज यह बॉयोग्राफी अगले दो-तीन महीनों में बाजार में आ सकती है। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस बॉयोग्राफी को आधार बना कर बॉलीवुड के एक नामचीन डायरैक्टर-प्रोड्यूसर एक बड़ी फिल्म बनाने का भी इरादा रखते हैं। स्टेज सैट है, बस नतीजों से पर्दा उठना बाकी है।

सिद्धारमैया बनाम देवेगौड़ा
इस चुनाव में कर्नाटक की मंडया लोकसभा सीट और मशहूर कन्नड़  एक्टर अम्बरीश की पत्नी और पूर्व एक्टर सुमालता खासी चर्चा बटोर रही हैं। सुमालता ने कुछ तेलगू और कन्नड़ फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए हैं, उनके ग्लैमर को तब के दौर में फिल्म वालों ने खूब भुनाया। इसके बाद कन्नड़ फिल्मों के मशहूर अभिनेता अम्बरीश का इन पर दिल आ गया और दोनों ने शादी कर ली। अम्बरीश की बस इतनी शर्त थी कि सुमालता शादी के बाद फिल्मों में काम नहीं करेंगी। अम्बरीश रजनीकांत के सबसे नजदीकी मित्रों में शुमार होते थे, उनका रीयल एस्टेट का बड़ा कारोबार था। सिगार, ङ्क्षड्रक्स और घुड़दौड़ उनके कुछ पसंदीदा शुगल थे। यू.पी.ए.-1 काल में मनमोहन सिंह ने उन्हें अपने कैबिनेट में शामिल कर राज्य मंत्री का दर्जा दिया था और बतौर राज्य मंत्री उन्हें सूचना व प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा भी सौंपा गया था।

सुमालता तब बेंगलुरू में रह कर अपने बेटे और परिवार का ध्यान रख रही थीं कि अचानक पिछले वर्ष उनके पति अम्बरीश का देहांत हो गया। अम्बरीश के समर्थक अब सुमालता को राजनीति में आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पर मंडया का मैदान इन दिनों प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और एच.डी देवेगौड़ा की आकांक्षाओं की लड़ाई का मैदान बन गया है। सिद्धारमैया मैसूर से आते हैं, पर इस क्षेत्र में देवेगौड़ा के वोकाङ्क्षलगा समुदाय का एक बड़ा वोट बैंक है। सिद्धारमैया चाहते थे कि यह सीट कांग्रेस के खाते में रहे पर देवेगौड़ा ने राहुल गांधी से मिलकर यह सीट अपने जे.डी. (एस) के लिए मांग ली, जहां से वे अपने पोते और कुमारस्वामी के बेटे एक्टर निखिल कुमारस्वामी को लड़ाना चाहते हैं। सो, अब सिद्धारमैया ने सुमालता को बतौर स्वतंत्र उम्मीदवार निखिल के खिलाफ उतार दिया है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

बेजार हैं शाहनवाज
भागलपुर सीट जब से गठबंधन धर्म के तहत जद (यू) के पाले में चली गई है, भाजपा के बड़बोले नेता शाहनवाज हुसैन की बेचैनियां नित्य नई करवटें ले रही हैं। पूरे 5 साल उन्होंने भागलपुर में काम किया, टिकट मिलने की आस में बैनर, पोस्टर तक लगवा दिए, यहां तक कि बड़ी तादाद में टोपियां भी बनवा लीं। टोपी के एक तरफ मोदी तो दूसरी तरफ शाहनवाज के चित्र लगे थे। वहीं भाजपा से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि भाजपा हाईकमान को ऐसा लगता है कि उन्होंने जिस सीट पर भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारे उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा। जैसे पिछले चुनाव में भगवा पार्टी ने 7 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, 3 जम्मू-कश्मीर, 2 पश्चिम बंगाल, 1 लक्षदीव और 1 बिहार (भागलपुर) से, इन सभी सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। उप-चुनाव में भी सचिन पायलट के खिलाफ यूनुस खान को उतारा गया वहां भी भाजपा को पराजय का घूंट पीना पड़ा।

अमेठी की रानी ईरानी
अमेठी से भाजपा ने अपने तुरुप के इक्के स्मृति ईरानी को मैदान में उतार कर राहुल गांधी को उनके गढ़ में ही घेरने की व्यूह रचना बनाई है। भाजपा की रणनीति है कि स्मृति के मार्फत राहुल को यहां ऐसे घेरा जाए कि वह अमेठी से बाहर निकलने की कम ही सोच सकें और खास कर ऐसे वक्त में जबकि बसपा ने भी यू.पी. में महागठबंधन की भावनाओं को धत्ता बताते हुए अमेठी से अपना उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है। ऐसे में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं की राय है कि राहुल को कर्नाटक की किसी सीट से चुनाव लडऩा चाहिए क्योंकि गांधी परिवार के ‘कम बैक’ के लिए कर्नाटक का संसदीय इतिहास अब तक सबसे मुफीद रहा है। इंदिरा गांधी की वापसी भी चिकमगलूर से हुई तो सोनिया गांधी जब बेल्लारी जीत कर आईं तो कांग्रेस को मजबूती मिली। वहीं राहुल गांधी दो सीटों से चुनाव लडऩे के आइडिया के खिलाफ बताए जाते हैं। उनका मानना है कि दो सीटों से चुनाव लडऩा समय और पैसों की बर्बादी है।

भगवा साए में माया
मायावती इन दिनों किंचित हैरान-परेशान हैं। मोदी सरकार की तल्ख नीतियों ने बहनजी को अपनी रणनीतियां बदलने को मजबूर कर दिया है। उनके निजी सचिव रहे नेतराम पर जांच एजैंसियों की सख्ती बढ़ती जा रही है, सूत्र बताते हैं कि अकेले नेतराम की 200 करोड़ से ज्यादा की सम्पत्तियां अटैच कर ली गई हैं। माया के भाई आनंद पर भी ई.डी. का शिकंजा कसता जा रहा है, जिसने माया को घुटनों के बल ला दिया है। शायद इसी दबाव की वजह से बहनजी ने आनन-फानन में यह ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस इस महागठबंधन का हिस्सा नहीं होगी और उसके साथ सीटों के हिसाब से भी कोई गठबंधन नहीं होगा।

जब माया ने अखिलेश को अपना फरमान सुनाते हुए कहा कि अब कांग्रेस के साथ कोई समझौता नहीं होगा और हम अमेठी व रायबरेली में भी अपने उम्मीदवार उतारेंगे तो कहते हैं अखिलेश ने बहनजी से आग्रह किया कि 15 दिन का वक्त दे दीजिए, समय के साथ चीजें ठीक हो जाएंगी, पर माया नहीं मानीं। माया ने जैसे ही कांग्रेस के साथ नहीं जाने का ऐलान किया तो पार्टी कैडर में एक तरह से अघोषित संदेश चला गया कि चुनावी नतीजों के बाद माया भाजपा का दामन थाम सकती हैं। वैसे भी बसपा कैडर में इन दिनों मोदी की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। बसपा कैडर यह सोच रहा है कि मोदी राज में जो ऊंची जातियों के घरों में है, जैसे बिजली और टॉयलैट, अब वह हमारे भी पास है। वैसे भी सपा-बसपा गठबंधन में माया ने सियासी चातुर्य दिखाते हुए, शहरी सीटें सपा के माथे मढ़ दी हैं, जहां भाजपा का गढ़ है, जहां वह मजबूत है।

सिंधिया का गुना-भाग
ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी हों, पर इन दिनों उनका सारा ध्यान मध्य प्रदेश पर केन्द्रित है, वह उत्तर प्रदेश के पहले चरण के मतदान वाली सीटों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। ज्योतिरादित्य अब भी एम.पी. में उलझे हैं, वह चाहते हैं कि ग्वालियर सीट से कांग्रेस उनकी पत्नी प्रियदर्शनी को टिकट दे जिससे कि ग्वालियर और गुना इन दोनों सीटों पर सिंधिया परिवार का कब्जा रहे और उनके कद में भी इजाफा हो। पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद नरेन्द्र सिंह तोमर यहां से मात्र 29 हजार वोटों से जीते थे। पर इस पूरे उपक्रम में दिक्कत यह है कि प्रियंका गांधी जब भी यू.पी. के नेताओं के साथ बैठक करती हैं तो वह पार्टी दफ्तर की बजाय सिंधिया के दिल्ली स्थित निवास पर करती हैं तो ऐसे में मजबूरन सिंधिया को उन बैठकों में मौजूद रहना पड़ता है। मध्य प्रदेश में अभी भी सिंधिया और कमलनाथ के बीच तनातनी कम नहीं हुई है। मध्य प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनाव के दौरान कमलनाथ ने मात्र 70 रैलियां की थीं और सिंधिया ने 132, पर सी.एम. की कुर्सी कमलनाथ को मिल गई। वहीं अमित शाह ने भी साफ कर दिया है कि इस दफे गुना, ङ्क्षछदवाड़ा और झाबुआ सीट हर हाल में जीतनी है। योगी सरकार में ऊर्जा व परिवहन मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह को गुना की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

...और अंत में
पश्चिम बंगाल में 7 चरणों में मतदान है, तिथियों के ऐलान के साथ ममता ने अपने विरोध के तेवर दिखाए, अब इसका एडवांटेज लेने में जुट गई हैं। दीदी ने 12 संसदीय सीटों को चिन्हित किया है जहां कड़ा मुकाबला हो सकता है, जैसे मालदा, आसनसोल, मुर्शिदाबाद आदि। दीदी अब हर ऐसी सीट पर 3-4 दिन लगा रही हैं ताकि पांसा पलटा जा सके।-त्रिदीब रमण

                              

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