‘गीता आचरण’

Edited By ,Updated: 22 Feb, 2020 05:34 AM

geeta conduct

भगवद् गीता में 700 श्लोक हैं जो भगवान कृष्ण तथा वीर अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में बातचीत के बारे में हैं। युद्ध से पूर्व अर्जुन के मन में यह भाव आया कि यह युद्ध उसके अनेकों दोस्तों तथा रिश्तेदारों की हत्या कर देगा। उसने यह तर्क...

भगवद् गीता में 700 श्लोक हैं जो भगवान कृष्ण तथा वीर अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में बातचीत के बारे में हैं। युद्ध से पूर्व अर्जुन के मन में यह भाव आया कि यह युद्ध उसके अनेकों दोस्तों तथा रिश्तेदारों की हत्या कर देगा। उसने यह तर्क दिया कि यह युद्ध कई कारणों से ठीक नहीं है। अर्जुन की दुविधा उसके अनुमान से उत्पन्न हुई कि मैं अहं कत्र्ता हूं और जिसे अहंकार के नाम से भी जाना जाता है। यह अहंकार हमें यह बताता है कि हम दूसरों से अलग हैं मगर वास्तविकता कुछ और है। हालांकि अहं का आमतौर पर मतलब अहंकार से होता है मगर अहं को हम अहंकार की अभिव्यक्ति के तौर पर ले सकते हैं। भगवान कृष्ण तथा अर्जुन के बीच पूरी बातचीत अहंकार के बारे में है। मगर सीधे या असीधे तौर पर कृष्ण हमें कई रास्ते  तथा मील पत्थर दिखाते हैं जिससे हम अहंकार से बच सकते हैं। 

जितनी देर हम जीते हैं ये सब दुविधाएं रहती हैं
यदि हम कुरुक्षेत्र के युद्ध को एक लक्ष्ण के तौर पर देखते हैं तो हम सब हमारी रोजाना जिंदगी चाहे वह परिवार, कार्य स्थल, स्वास्थ्य, धन-दौलत, रिश्ते-नाते इत्यादि के बारे में हो, तब हम सब ऐसे हालातों में प्रवेश कर जाएंगे जैसे अर्जुन के साथ हुआ था। जितनी देर हम जीते हैं ये सब दुविधाएं तब तक प्राकृतिक तौर पर रहती हैं जब तक कि हम अहंकार को समझ नहीं लेते। गीता हमारे बारे में है कि हम क्या हैं? यह इसके बारे में नहीं कि हम क्या जानते हैं और क्या करते हैं। 

किसी भी सिद्धांत का अंक गणित हमें एक साइकिल चलाने या तैराकी करने के बारे में नहीं बताता। कोई भी दर्शन शास्त्र हमारी सहायता नहीं कर सकता जब तक कि हम जीवन को आमने-सामने से देख नहीं लेते। गीता के राह दिखाने वाले सिद्धांत हमें अंतिम गंतव्य तक पहुंचाने के लिए मदद करेंगे। ये हमें अंतर्रात्मा तक पहुंचाने में मदद करेंगे जोकि अहंकार से मुक्त है। सतह को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता ज्ञान से अब तक समय बदल गया है। 

पिछली कुछ शताब्दियों के दौरान विज्ञान में विकास के चलते कई बदलाव आए हैं। उत्पत्ति के हिसाब से मानव आगे की ओर ज्यादा विकसित नहीं हुआ। दुविधा का अंदरूनी पक्ष जैसे का तैसा है मगर बाहरी अभिव्यक्ति विभिन्न दिखाई देती है जबकि अंदरूनी सतह या फिर कहें कि हमारी जड़ें वैसी की वैसी ही हैं।-के. सिवा प्रसाद(आई.ए.एस.)

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