कुछ भूली-बिसरी यादें... मुझे 10 लाख रुपए देते हुए एक उद्योगपति बोले-‘यह रहा आपका हिस्सा’

Edited By ,Updated: 01 Apr, 2021 04:14 AM

giving me 10 lakh rupees an industrialist said  here s your part

भारतीय राजनीति में कांग्रेस का विकल्प बनाने का एक प्रयोग 1967 में हुआ था। विपक्षी दलों ने मिल कर संविद सरकारें बनाईं। प्रयोग सफल नहीं हुआ। 1996 में कुछ दलों के सहयोग से श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली पर बहुमत सिद्ध नहीं कर...

भारतीय राजनीति में कांग्रेस का विकल्प बनाने का एक प्रयोग 1967 में हुआ था। विपक्षी दलों ने मिल कर संविद सरकारें बनाईं। प्रयोग सफल नहीं हुआ। 1996 में कुछ दलों के सहयोग से श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली पर बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए अत: त्यागपत्र देना पड़ा। 1998 में कांग्रेस का विकल्प चुनाव से पहले ही बनाने की योजना बनी। वाजपेयी जी के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाया गया जिसमें साम्यवादी दलों को छोड़कर अन्य सभी दल इक_े हुए। मोर्चे ने एक सांझा कार्यक्रम बनाया, चुनाव लड़ा। सफलता मिल गई। 

अटल जी के नेतृत्व में सरकार बनी पर पूरा बहुमत न होने के कारण एक वर्ष बाद ही उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। एकदम निराशा हुई परंतु अटल जी ने जिस तरह कुछ समय सरकार चलाई और जिस तरीके से त्यागपत्र दिया उससे पूरे देश में गठबंधन के प्रति समर्थन बढ़ गया। 1999 के चुनाव में पूर्ण बहुमत मिला। मैं 1998 में सांसद चुना गया था और 1999 में भी सांसद चुना गया। 

चुनाव से पहले सबको लगता था कि चुनाव में जीत होगी, सरकार बनेगी। इसलिए मंत्री बनने की दौड़ बहुत बढ़ गई थी। चुनाव के बाद दिल्ली में सरकार बनाने की गतिविधियां तेज हुईं। मुझ पर मित्रों का दबाव था कि मैं भी प्रयत्न करूं। मेरा सौभाग्य था कि प्रदेश के बाद मुझे केंद्र की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान मिले। अटल जी के मंत्रिमंडल में मैंने कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की। मुझे खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री बनाया गया। मैंने पूरे विभाग को अच्छी तरह समझा। विभाग बहुत बड़ा था और महत्वपूर्ण भी था। अटल जी के साथ काम करने का अनुभव बहुत आनंददायक था। यद्यपि लगभग 22 पाॢटयों की सरकार होने के कारण बड़ी कठिनाइयां भी थीं।

भारत की राजनीति के इतिहास में पहली बार ऐसे गठबंधन ने सांझे कार्यक्रम के नाम पर चुनाव लड़ा, जीता और सरकार बनाई। यह सिद्ध हो गया कि यद्यपि कोई एक पार्टी कांग्रेस का विकल्प नहीं बन सकती परंतु दलों का गठबंधन भी सरकार बना सकता है। 22 दलों के इस गठबंधन की सरकार बना कर सफलतापूर्वक 5 वर्ष तक चलाना एक चमत्कार था। इसका पूरा श्रेय अटल जी की योग्यता व सबको साथ लेकर चलने की कुशलता को जाता था। मंत्री बनने के दूसरे ही दिन विभाग के एक प्रमुख अधिकारी एक अन्य अधिकारी को लेकर मेरे पास आए और बोले, ‘‘एक बहुत महत्वपूर्ण विषय की फाइल कई दिनों से रुकी हुई है। उसे सबसे पहले निपटाना जरूरी है।’’ उन्होंने बताया कि चीनी विभाग के अंतर्गत सभी मिलों द्वारा चीनी बेचने की मात्रा हमारा मंत्रालय तय करता है। उस समय लगभग 500 चीनी मिलें थीं। 

चीनी बनाकर गोदामों में रख दी जाती थी। कितनी चीनी सरकार को राशन के लिए देनी है और कितनी चीनी खुले बाजार में बेचनी है, इसके लिए चीनी विक्रय आदेश विभाग देता था। मुझे इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं थी। उन्होंने संक्षेप में बताया और मुझसे फाइल पर स्वीकृति ले ली। तीसरे ही दिन मुझे घर पर मिलने के लिए एक बड़े उद्योगपति आए। मेरा बहुत धन्यवाद किया और बोलेे,‘‘चीनी विक्रय आदेश में बहुत देर हो जाने से मैं बहुत परेशान था लेकिन आपके आदेश से मुझे बहुत राहत मिली है।’’ यह कह कर बार-बार मेरा धन्यवाद करते हुए मेरी ओर एक भरा हुआ लिफाफा बढ़ा कर बोले, ‘‘यह है आपका हिस्सा। हर बार विक्रय आदेश पर हमें प्रति बोरी नियमित यहां मंत्री के पास देना होता है। वही 10 लाख रुपए लेकर आया हूं।’’ 

मैंने उठकर सबसे पहले कमरे का दरवाजा खोला और बहुत गुस्से में बोला, ‘‘मुझे मंत्री बने कुछ दिन ही हुए हैं। पुलिस बुलाना अच्छा नहीं लग रहा। आप यह लिफाफा उठाइए और चले जाइए, दोबारा इस प्रकार की मूर्खता मत करना।’’ मैंने नाम-पता मालूम किया तो वह चीनी मिलों के मालिक एक बड़े उद्योगपति थे। इसके बाद मैंने कार्यालय आकर सबसे पहले चीनी वितरण आदेश बारे पूरी जानकारी ली। तब यह कठोर नियम था कि कोई भी चीनी मिल अपनी इच्छा से बाजार में चीनी नहीं बेच सकती थी। किस मिल को कितनी चीनी बाजार में बेचनी है, इसका निर्णय सरकार करती थी। हर मिल मालिक अधिक से अधिक चीनी बाजार में बेचना चाहता था। उसके लिए पूरे विभाग में ऊपर से नीचे तक रिश्वत दी जाती थी। बाद में मुझे पता चला कि जो अधिकारी फाइल लेकर मेरे पास आए थे, उनमें से एक अधिकारी प्रमुख रूप से रिश्वत मामले में शामिल थे। 

हिमाचल प्रदेश के एक बहुत योग्य और ईमानदार अधिकारी श्री बी.बी. टंडन भारत सरकार में एक उच्च पद पर थे। मैंने उन्हें बुला कर अपनी चिंता बताई। उन्होंने मुझे मेरे मंत्रालय के दो ईमानदार अधिकारियों के नाम बताए। मैंने उन अधिकारियों से चर्चा की और चीनी वितरण की सारी प्रक्रिया को तर्कसंगत बनाने के लिए उनसे सुझाव मांगे। दो दिन के बाद ही वे मेरे पास आए और वितरण का नया नियम मुझे बताया कि सभी मिलों के चीनी के स्टॉक की जानकारी कम्प्यूटर में डाल दी जाएगी। प्रति मास जितनी चीनी बाजार में वितरण करने के लिए जारी की जानी है, स्टॉक के अनुपात के अनुसार सब मिलों का ब्यौरा तय हो जाएगा। इसके बाद मैंने आश्वस्त हो कर आदेश जारी किया कि भविष्य में इस नियम के अनुसार कम्प्यूटर द्वारा वितरण सूची जारी की जाए। 

फिर दूसरे महीने एक दिन प्रतिष्ठित उद्योगपति और राज्यसभा के सदस्य श्री कृष्ण कुमार बिरला मुझसे मिलने मेरे घर आए। मैंने खड़े होकर उनका स्वागत किया तो वह एकदम बोले, ‘‘मुझे आपसे कोई काम नहीं है। मैं केवल उस मंत्री से मिलने आया हूं जिसने एक नियम बनाकर हमें एक जिल्लत से बचा लिया।’’मुझे कुछ समझ नहीं आया। वह कहने लगे,‘‘मेरी छ: चीनी मिलें हैं। मुझे हर महीने चीनी वितरण के लिए रिश्वत का धन यहां पहुंचाना पड़ता था। इस बार वितरण की सूची पढ़कर खुशी तो हुई पर बहुत हैरानी भी हुई। ऐसा नियम बनाने वाले मंत्री से मिलने आया हूं।’’ 

उन्होंने विस्तार से सारी बात बताई। कहने लगे कि उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति बेटियों के नाम की है। उन्होंने बताया कि जीवन भर उन्होंने उद्योग चलाए और बहुत से काम किए परंतु चीनी वितरण में इस प्रकार हर महीने यहां धन भिजवाने में उन्हें बहुत शर्म आती थी। कुछ दिन के बाद श्री के.के. बिरला ने मुझे परिवार सहित अपने घर बुलाया। उसके बाद उनसे मेरा बहुत अधिक संपर्क हो गया। उनके कुछ पारिवारिक कार्यक्रमों में भी हम शामिल हुए।  एक बार वह मुझसे बोलेे, ‘‘आप राजनीति में हैं। पार्टी के बहुत से कामों के लिए धन की आवश्यकता होती है। मैं कुछ धन आपको देना चाहता हूं।’’ मैंने कहा ‘‘बिरला जी, आपका यह स्नेह और प्यार मेरे लिए बहुत कुछ है, कभी आवश्यकता होगी तो आपको जरूर कष्ट दूंगा।’’ 

समय बीत गया। जब पालमपुर में विवेकानंद ट्रस्ट बनाकर एक बड़ा अस्पताल ‘कायाकल्प’ बनाने की योजना बनाई और उसके लिए धन संग्रह शुरू किया तो मुझे बिरला जी की याद आई। उनके घर गया। मैंने उन्हें ‘कायाकल्प’ बारे बता कर उसके लिए आॢथक सहयोग मांगा। बहुत खुश होकर उन्होंने पास बैठी अपनी बेटी से कुछ बात की और कहने लगे कि दो दिन के बाद दो करोड़ रुपए का चैक वह मुझे दे देंगे लेकिन बाद में इसे बढ़ा कर 2 करोड़ 50 लाख रुपए कर दिया। आज श्री के.के. बिरला इस संसार में नहीं हैं पर मुझे उनका स्नेह और सहयोग आज भी याद आ रहा है। वह भारत के एक प्रसिद्ध सम्पन्न व प्रतिष्ठित उद्योग परिवार के मुखिया थे। 

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