सरकार ने एम.पी. लैड ‘लूट’ पर रोक लगाई

Edited By ,Updated: 14 Apr, 2020 02:20 AM

government mp led bans loot

कोरोना महामारी के चलते लॉकडाऊन जारी है किंतु इस लॉकडाऊन के मौसम में भी एक आशा की किरण दिखाई दे रही है और प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सरकार का पैसा किसी का पैसा नहीं’ उक्ति को पलट दिया है और इससे सर्वाधिक प्रभावित हमारे सम्मानीय सांसद हुए हैं। पहले ही उनके...

कोरोना महामारी के चलते लॉकडाऊन जारी है किंतु इस लॉकडाऊन के मौसम में भी एक आशा की किरण दिखाई दे रही है और प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सरकार का पैसा किसी का पैसा नहीं’ उक्ति को पलट दिया है और इससे सर्वाधिक प्रभावित हमारे सम्मानीय सांसद हुए हैं। पहले ही उनके वेतन में एक साल तक 30 प्रतिशत की कटौती कर दी गई है और उनकी सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास निधि योजना (एम.पी.लैड) पर रोक लगा दी है और इसके चलते लगता है कि हमारे जनसेवकों की पहले जैसी स्थिति फिर कभी नहीं होगी। 

आशानुरूप विपक्ष ने इसका विरोध किया और पैसे की कमी के कारण कहा कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र की देखभाल कैसे करेंगे। किंतु उनकी नहीं सुनी गई और सरकार ने कठोर बनकर इस निर्णय को लागू किया। क्या इससे शासन में एक नई बहार आएगी? 1993 में शुरू की गई केन्द्र में एम.पी.लैड और राज्यों में एम.एल.ए. लैड आम आदमी की मेहनत की कमाई की लूट का खुला लाइसैंस है। यह लूट इतनी व्यापक है कि भारत की दलित मसीहा मायावती ने 2003 में अपने सांसदों से कहा था कि वे एम.पी. लैड से प्राप्त अपने कमीशन का कुछ हिस्सा पार्टी को दें। उन्होंने कहा था अरे भाई सब मिल-जुल कर खाओ।

इस योजना में सबसे ईमानदार सांसद भी प्रति वर्ष घर बैठे एक करोड़ रुपए बना लेता है। हाल ही में एक स्टिंग ऑप्रेशन आया था जिसमें कुछ सांसदों को एम.पी. लैड के अंतर्गत ठेका देने में घूस लेते हुए दिखाया गया था। एक सांसद ने स्पष्टत: कहा, ‘‘स्थानीय नेता जिनके पास पंचायत समिति और जिला परिषद का 400 करोड़ रुपया होता है वे मुझे एम.पी. लैड के 5 करोड़ रुपए में से 1 करोड़ रुपए भी उन चीजों पर खर्च करने नहीं देते जिन्हें मैं एक सांसद के रूप में करना चाहता हूं। 

एम.पी. लैड निधि के उपयोग के बारे में सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि 2014 में निर्वाचित सांसदों द्वारा एम.पी. लैड की उपयोग न की गई राशि 214.63 प्रतिशत तक पहुंच गई है तथा 2004 और 2009 में निर्वाचित सांसदों ने भी इस राशि का प्रभावी रूप से उपयोग नहीं किया है। 14वीं लोकसभा की तुलना में यह अनुप्रयुक्त राशि 885.47 प्रतिशत हो गई है। 16वीं लोकसभा में यह राशि 1734.42 करोड़ रुपए थी जिसके चलते सरकार ने इस योजना के लिए 14वीं लोकसभा में 14023.35 करोड़ रुपए जारी किए थे तो 16वीं लोकसभा में केवल 11232.50 करोड़ रुपए जारी किए थे।

सांसदों के लिए उपलब्ध राशि में थोड़ी सी गिरावट आई किंतु इसमें से अनुप्रयुक्त राशि में भारी वृद्धि हुई है। एम.पी. लैड की निधि के उपयोग की राज्यवार तुलना करने पर पता चलता है कि 37 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में से केवल 4 ने इस राशि का पूर्ण उपयोग किया। असम में इस राशि में से 61.63 प्रतिशत, राजस्थान में 82.12, लक्षद्वीप में 82.2 और त्रिपुरा में 82.39 प्रतिशत राशि का उपयोग किया गया। जबकि दिल्ली में 115.13 और चंडीगढ़, तेलंगाना, पुड्डुचेरी और सिक्किम में शत-प्रतिशत राशि का उपयोग किया गया। 

इस संबंध में मोदी ने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में एम.पी. लैड की अनुप्रयुक्त राशि केवल 2.27 प्रतिशत रही है जबकि कांग्रेस के राहुल गांधी की 80.52 और सपा संस्थापक मुलायम सिंह की 88.54 प्रतिशत राशि अनुप्रयुक्त रही है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की विभिन्न रिपोर्टों में कहा गया है कि यह राशि जनकल्याण के लिए है किंतु इसका एक बड़ा हिस्सा लोगों की जेब में चला जाता है। 

2009 से 2014 के बीच इस राशि का उपयोग 37 से 52 प्रतिशत तक रहा है। 23 राज्यों में इस योजना के अंतर्गत कार्यों की जांच नहीं की गई। 90 प्रतिशत जिला मैजिस्ट्रेट परिसम्पत्ति या कार्य रजिस्टर नहीं रखते हैं। छह राज्यों के 12 जिलों में भी अग्रिम जारी राशि को उपयोगिता प्रमाण पत्र में उपयोग की गई राशि दिखाया गया, जिसके चलते व्यय के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर दर्शाया गया। 106 निर्वाचन क्षेत्रों की लेखा परीक्षा में पाया गया कि जिला कलैक्टरों ने 265 करोड़ रुपए के कुल व्यय की सूचना दी जिसमें से 31 प्रतिशत अर्थात 82 करोड़ रुपया खर्च ही नहीं किया गया। 

इसकी कार्य विधि सरल है। सांसद और विधायक जिला मैजिस्ट्रेट के साथ सांठ-गांठ कर यह सुनिश्चित करता है कि लागत को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाकर प्रत्येक योजना में ठेकेदारों द्वारा उसे कमीशन दिया जाए। इससे बाबू खुश रहता है और सांसद उससे अधिक खुश रहता है। एक स्मार्ट सांसद 5 करोड़ रुपए में से अढ़ाई करोड़ और एक ईमानदार सांसद 1 करोड़ रुपए बना जाता है। एक सांसद के शब्दों में ‘यह राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के लिए उनके संरक्षण या उनकी अन्य सेवाओं के लिए वित्तीय पुनर्वास पैकेज की तरह है।’ 

कई मामलों में पाया गया कि राशि उन सड़कों के रख-रखाव पर खर्च की गई जो थीं ही नहीं। योजना के अंतर्गत कम मजदूरी दी जाती है, फर्जी मस्टर रोल बनाया जाता है। 30 प्रतिशत तक फर्जी खर्च होता है। यह भी पाया गया कि इस योजना के अंतर्गत ऐसी परियोजनाओं पर भी राशि खर्च की गई जिन पर इस योजना के अधीन खर्च नहीं किया जा सकता था। जैसे स्मारक, कार्यालय या आवास भवन, व्यावसायिक संगठन, निजी या सहकारी संस्था, धार्मिक स्थल आदि और इस बात के प्रमाण भी हैं कि संसद ने स्वयं ऐसे उल्लंघनों को स्वीकार किया है। 

वस्तुत: यह लूट प्रणाली इस तरह बनाई गई है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक भी केवल 13 मामलों में धोखाधड़ी और गबन का पता लगा पाया है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने एम.पी. लैड को खत्म करने और यह राशि स्थानीय स्वशासन को अंतरित करने की सिफारिश की है और राष्ट्रीय सलाहकार समिति ने भी ऐसा ही सुझाव दिया था। ऐसी कोई एजैंसी नहीं है जो सरकारी पैसे के दुरुपयोग को रोक सके हालांकि विभिन्न समितियों ने इस संबंध में अपनी सिफारिशें दी हैं। 

वर्ष 2002 में संविधान समीक्षा आयोग ने एम.पी. लैड योजना को तुरंत बंद करने की सिफारिश की थी और आयोग का मानना था कि यह योजना कई तरह से संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है। वर्ष 2007 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा था कि एम.पी. लैड और एम.एल.ए. लैड जैसी योजनाएं बंद की जानी चाहिएं। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वेंकटाचलैया ने इस योजना को संविधान पर हमला कहा था। उन्होंने कहा था यह योजना न केवल संघीय ढांचे में हस्तक्षेप करती है अपितु शक्तियों के विभाजन के संवैधानिक सिद्धांत में भी हस्तक्षेप करती है। 

संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके अंतर्गत सांसदों को व्यक्तिगत रूप से सरकारी पैसा खर्च करने की शक्ति दी गई हो या किसी अधिकारी विशेषकर राज्य लोक सेवा के अधिकारी को किसी मामले में निर्देश देने का प्रावधान नहीं है। वास्तव में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर सांसद और विधायकों को पैसा खर्च करने की शक्ति प्राप्त है। अमरीका में सरकार के वित्तीय अधिकारियों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है जो सरकारी पैसे का दुरुपयोग करते हैं। उन्हें न केवल पद से हटा दिया जाता है अपितु 4 वर्ष तक सरकारी पद धारण करने से भी रोका जाता है और उसके बाद जब तक शेष राशि का भुगतान नहीं किया जाता तब तक उन्हें किसी पद को धारण करने की अनुमति नहीं दी जाती। 

एक सीनेटर के अनुसार जब किसी अधिकारी को करदाताओं का पैसा खर्च करने के लिए चैक बुक मिल जाती है तो वह खतरनाक होता है। इसलिए महत्वपूर्ण है कि लोग स्थिति को सही परिप्रेक्ष्य में समझें। किंतु हमारे नेता आधुनिक सामंती महाराजाओं की तरह कार्य करते हैं। जहां पर वे अपेक्षा करते हैं कि आम जनता उनके समक्ष साष्टांग करे। इसलिए अन्नदाता सर्वोपरि के वातावरण में ऐसी योजनाओं पर अंकुश नहीं लगाया जाता है। 

अत: समय आ गया है कि हमारी जनता ऐसी लूट को रोके। फिर समस्या का समाधान क्या है? मोदी ने मार्ग दिखा दिया है। भले ही वह मार्ग कोरोना की वजह से ही क्यों न खुला हो। समय आ गया है कि हम एम.पी. लैड योजना को जारी रखने के बारे में पुनर्विचार करें। नैतिक दृष्टि से संसद को इस योजना के बारे में सफाई देनी होगी। जनता को यह जानने का अधिकार है कि गत वर्षों में इस योजना के अंतर्गत किस तरह पैसे का उपयोग-दुरुपयोग किया गया और इसमें सुधार के लिए क्या कदम उठाने की योजना है? ब्रेक लगाने का समय आ गया है। लूट के खुले लाइसैंस पर रोक लगनी चाहिए।-पूनम आई. कौशिश

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