श्रम और भूमि सुधार की राह पर सरकार

Edited By ,Updated: 03 Jun, 2019 03:31 AM

government on the path of labor and land reform

नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के साथ-साथ अर्थव्यवस्था से संबंधित दो समाचार सामने आए। पहला था पिछले 5 वर्ष में भारत की आॢथक वृद्धि दर का सबसे कम 6 प्रतिशत तक पहुंचना और बेरोजगारी का स्तर 6 प्रतिशत अधिक होना। दूसरी खबर यह थी कि नई सरकार अगले 100...

नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के साथ-साथ अर्थव्यवस्था से संबंधित दो समाचार सामने आए। पहला था पिछले 5 वर्ष में भारत की आॢथक वृद्धि दर का सबसे कम 6 प्रतिशत तक पहुंचना और बेरोजगारी का स्तर 6 प्रतिशत अधिक होना। 

दूसरी खबर यह थी कि नई सरकार अगले 100 दिन में ऐसी नीतियां बनाएगी जिससे भारत में श्रम कानूनों में काफी बदलाव होगा (विशेषतौर पर इसका मतलब होगा कम्पनियों को कर्मचारियों को निकालने की क्षमता प्रदान करना)। इसके अलावा सरकार भूमि के बड़े टुकड़ों का अधिग्रहण करेगी ताकि वह सिंगूर जैसे आंदोलनों का सामना किए बगैर कम्पनियों को भूमि दे सके। यह एक ऐसा सुधार होगा जो निवेशकों, खासतौर पर विदेशी निवेशकों को काफी रास आएगा। 

भाजपा के लिए सकारात्मक बात यह है कि मोदी को विशाल जनादेश मिला है जिसके बलबूते वह बड़े सुधारों को तेजी से लागू कर सकते हैं। इस तरह के बदलाव की समस्या यह है कि इससे जिन लोगों का हित (उदाहरण के लिए श्रमिक यूनियनें और राजनीतिक दल) प्रभावित होता है वे इसका विरोध भी करते हैं। यही कारण है कि पिछले समय में इस तरह के सुधार नहीं हो सके। 

यद्यपि मोदी को मिली बड़ी जीत और भारतीय राजनीति पर उनका सम्पूर्ण नियंत्रण होने का अर्थ है कि वह तेजी से इस तरह के बदलाव ला सकते हैं। हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि अगले कुछ हफ्तों में ये बदलाव हो जाएंगे। आज आइए यह देखते हैं कि सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति में कौन-कौन लोग शामिल हुए हैं, यानी प्रधानमंत्री और 4 वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री। वित्त, गृह, रक्षा और विदेश मंत्रालय का कार्यभार संभालने वाले मंत्रियों के बारे में कोई भी नहीं बता पाया था। इससे पता चलता है कि सरकार द्वारा इस सूचना को कितना गुप्त रखा गया था। 

विदेश मंत्री के तौर पर एस. जयशंकर के चयन का अनुमान मीडिया को भी नहीं था। यह भी अध्यक्षीय स्टाइल की राजनीति का ही एक उदाहरण है जिसके बारे में आम चुनावों के दौरान चर्चा होती रही है। अमरीका में कैबिनेट में राष्ट्रपति द्वारा विशेषज्ञ लोगों को शामिल किया जाता है और उन्हें चुने जाने की जरूरत नहीं होती। जिस आसानी से मोदी ने कुछ लोगों को एक मंत्रालय से दूसरे में ट्रांसफर किया है वह उनके कार्य करने की शैली को दर्शाता है। मोदी  व्यक्तिगत तौर पर मंत्रालय को एक दिशा प्रदान करते हैं और फिर मंत्री नौकरशाहों की सहायता से उसे लागू करता है। 

जयशंकर का चयन मेरे लिए दिलचस्प और असाधारण है क्योंकि वह एक बुद्धिजीवी हैं (उन्होंने पी.एचडी. की है और वह विद्वानों के परिवार से संबंध रखते हैं)। उन्हें पाकिस्तान जैसे मामलों में भाजपा के भावनात्मक रवैये के अनुसार या तो खुद को बदलना होगा अथवा उन्हें रवैया बदलने के लिए लाया गया है। मेरा अनुमान है कि पहली बात के अनुसार ही चीजें होंगी। 

वित्त मंत्रालय में निर्मला सीतारमण को एक और पदोन्नति मिली है। पिछली लोकसभा में उन्हें रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी और अब उन्हें कैबिनेट में सबसे महत्वपूर्ण पद दिया गया है। इस मामले में उनकी चुप्पी और लो प्रोफाइल ने इनकी काफी मदद की है। राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। ये तीन मंत्रालय -विदेश, वित्त और रक्षा ऐसे हैं जिनके कामकाज में मोदी व्यक्तिगत तौर पर सबसे ज्यादा रुचि लेते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट जैसे मामलों में तथा कुछ विदेशी स्थलों के दौरों और शी जिनपिंग और बेंजामिन नेतान्याहू जैसे नेताओं से संबंध जोडऩे में उनका स्टाइल नजर आता है। वित्त मंत्रालय में 2014 के बाद कम बदलाव हुआ है जब इस बारे में कुछ समय पूर्व पूछा गया तो मोदी ने कहा था कि भारत ने पहले ही कई बड़े आर्थिक सुधार किए हैं और अब नीति में परिवर्तन की बजाय गवर्नैंस की जरूरत है। श्रम और भूमि कानूनों में नियोजित बदलाव के मामले में वह इस प्रक्रिया के पूरा होने तक उस पर नजर रखेंगे। 

पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अधिक सफल रहे शाह
गृह मंत्रालय में अमित शाह मोदी के लिए उसी तरह काम करेंगे जैसा उन्होंने उनके लिए गुजरात में किया था। शाह गुजरात में लगभग एक दशक तक गृह राज्यमंत्री रहे हैं। तब वह मोदी को रिपोर्ट करते थे। अब वह सरकार में नम्बर दो की स्थिति में हैं। वह केवल 55 साल के करीब हैं और अगले कुछ वर्षों में उनका कद और ऊंचा हो सकता है। अमित शाह को शामिल करने के मामले में अंतिम ध्यान देने योग्य बात यह है कि पार्टी के विकास के मामले में भाजपा के लिए इसके क्या मायने हैं। पश्चिम बंगाल जैसे मुश्किल राज्य में पार्टी का प्रसार और 2014 में जीती अधिकतर सीटों को दोबारा हासिल करने का श्रेय अमित शाह की रणनीति और ऊर्जा को जाता है। वह अपने पूर्ववर्ती भाजपाध्यक्षों नितिन गडकरी और वेंकैया नायडू जैसे नेताओं के मुकाबले अलग और अधिक सफल रहे हैं। अमित शाह ने पार्टी की सदस्यता और फंड इकट्ठा करने की क्षमता को बढ़ाकर आर.एस.एस. पर भाजपा की निर्भरता को कम किया है। 

भाजपा में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत रहा है। कई बार इस सिद्धांत को नजरअंदाज किया गया लेकिन शाह जैसे गुणी व्यक्ति के लिए भी पार्टी अध्यक्ष और मंत्री पद दोनों के साथ न्याय कर पाना संभव नहीं होगा। ऐसे में जो भी नया पार्टी अध्यक्ष बनेगा वह इन चार वरिष्ठ मंत्रियों के साथ काफी हद तक न केवल सरकार और पार्टी बल्कि देश के भविष्य को भी प्रभावित करेगा।-आकार पटेल 

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