सरकार समझे ‘भांग के फायदे’

Edited By ,Updated: 25 Jan, 2021 04:06 AM

government should understand  benefits of cannabis

आम शहरी भांग को नशा मान कर हिकारत से देखता है। पर भोलेनाथ शंकर और भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जी के भक्त भांग का भोग लगा कर उसका प्रसाद पाते हैं। भांग से हमारे देश की गरीब जनता और अर्थव्यवस्था को कितना लाभ

आम शहरी भांग को नशा मान कर हिकारत से देखता है। पर भोलेनाथ शंकर और भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जी के भक्त भांग का भोग लगा कर उसका प्रसाद पाते हैं। भांग से हमारे देश की गरीब जनता और अर्थव्यवस्था को कितना लाभ हो सकता है इसका नीति-निर्धारकों को शायद एहसास ही नहीं है। भांग एक अकेला एेसा दैवीय पौधा है जिससे हमें भोज्य पदार्थ, कपड़ा, भवन और औषधि प्राप्त होती है। 

इसके औषधीय गुण वेदों से लेकर चरक संहिता तक में वॢणत है। भारत में भांग की खेती पर अंग्रेजी हुकूमत ने जो कुठाराघात किया था, उसकी मार हम आजतक झेल रहे हैं। जबकि चीन भांग पर आधारित उत्पादनों का निर्यात कर अरबों रुपए कमा रहा है। इसराईल, अमरीका और कनाडा में भांग से बनी औषधि पर मोटा मुनाफा कमाया जा रहा है। आज इसराईल की भांग से सर्वश्रेष्ठ औषधीय कैनाबिस निकल रहा है जबकि हम इन दवाआें का 5000 साल से उपयोग कर रहे हैं। भांग के पौधे से 25000 तरह के उत्पाद बनते हैं जिसमें कपड़े से लेकर ईंट, दवा, प्रोटीन, एमिनो एसिड्स, कागज, प्लाईवुड, बायो फ्यूल और प्लास्टिक तक शामिल है। इसलिए भांग बिलियन डालर फसल है। 

शिवप्रिया भांग, समुद्र मंथन के बाद शिव जी द्वारा विश्व को दिया गया प्रसाद है। भारत की शिवालिक पर्वतमालाआें से ही भांग पूरे विश्व में फैली और भांग जिस-जिस देश में गई  उस देश के हिसाब से उसने पिछली सदियों में अपने डी.एन.ए. में परिवर्तन किया। जिससे उसके औषधीय गुण बदलते चले गए, पर भारत में उपलब्ध भांग आज भी अपने मूल वैदिक रूप में ही है। इससे औषधियां बनती हैं। भारत सरकार का आयुष मंत्रालय ही भांग से 400 तरह की औषधियां बनाने का लाइसैंस देता है। 

उत्तराखंड राज्य की भांग नीति और एफ. एस. एस. ए. आई की भांग उत्पाद की लाइसैंस नीति में औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त अधिकारियों की गलती से हमारी देसी शिवप्रिया भांग, जिसे यजुर्वेद में विजया कहा गया है, उसे नष्ट करने की साजिश रची गई है, जो राष्ट्रहित और हमारी सनातनी विचारधारा के खिलाफ है। यह नीति जी.एम. (आनुवांशिक परिवर्तित) बीज को प्रोत्साहित कर रही है, जो देश के लिए अति घातक है। 

भारतीय भांग की कोई भी प्रजाति, उत्तराखंड सरकार और एफ.एस.एस.ए.आई की भांग नीति के मानकों को पूरा नहीं करती। जिससे भारत के भांग उत्पादक विदेशी भांग के बीज आयात करके बोने के लिए बाध्य हैं। मजबूरी में उन्हें जी.एम. बीज लगाने पड़ रहे हैं। अगर यह बीज भारत आया तो परागण करके हमारी सदियों पुरानी शुद्ध देसी भांग को नष्ट कर देगा। एेसे ही बीजों से हमारी देसी भांग क्रॉस पोलिनेट हो रही है। अगले तीन वर्षों में हमारी औषधि युक्त भांग नष्ट हो जाएगी और खरपतवार रूपी विदेशी भांग भारत की नियति होगी। 

प्रश्न है कि देसी भांग नष्ट क्यों होगी? अन्य पौधों की तरह भांग भी परागण करती है। दस किलोमीटर तक नर पौधे का पराग हवा में उड़ कर मादा पौधे को निषेचित करता है। इस तरह भारत अपनी सर्वश्रेष्ठ भांग को अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार कर नष्ट कर देगा। जैसे हमने अपनी देसी गाय को कृत्रिम गर्भाधान करवा कर उसकी शुद्ध नस्लों को खत्म कर दिया वैसे ही भांग का यह विदेशी पौधा हमारी देसी भांग को बर्बाद कर देगा। गाय की पीढ़ी तो कम से कम चार साल में बदलती है। एक गाय के गर्भाधान के लिए एक इंजैक्शन जरूरी है, मतलब जितने इंजैक्शन उतनी गाय की अगली पीढ़ी वर्ण संकर होगी। पर भांग का एक पौधा दस किलोमीटर की भांग को निषेचित कर सकता है। भांग की एक पीढ़ी सिर्फ तीन महीने में बदल जाती है और भांग साल में तीन बार उगती है। जबकि गेहूं या चावल साल में एक बार ही पैदा होते हैं। 

चूंकि गुणवत्ता की दृष्टि से हमारी भांग दुनिया की सर्वश्रेष्ठ भांग है, जिसको विदेशी कम्पनियां नष्ट कर अपने जीएम बीज बेच कर मोटा फायदा कमाना चाहती हैं। आयुर्वेद की फार्मोकोपिया में जिस भांग से दवा बनाने की विधियां है, वह देसी भांग है। विदेशी भांग से वही दवा बनाने पर हमारी आयुर्वेदिक दवाएं प्रभावी नहीं रहेंगी जिससे हमारे आयुर्वेद को भी बहुत नुक्सान होगा। जबकि देशी भांग को बचाने से हमारी जैव विविधता बचेगी। बेहतरीन भांग के उत्पादों के निर्माण से लघु व मध्यम उद्योग क्षेत्र, निर्यात, रोजगार और राजस्व बढ़ेंगे। हमारे उत्पाद के लाभ को विदेशी कम्पनियां प्रभावित नहीं कर पाएंगी। जबकि भांग की देसी प्रजाति को बचा कर और विदेशी प्रजाति को भारत में आने से रोक कर ही सरकार की ‘किसानों की आय दो गुना’ करने की नीति, ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘लघु व मध्यम उद्योग क्षेत्र संवर्धन’ की नीति साकार हो पाएगी। 

इसलिए सरकार को इस विषय पर देसी विशेषज्ञों का पैनल बना कर इस समस्या का तुरंत हल करना चाहिए। जिससे न सिर्फ देश में रोजगार बढ़ेगा बल्कि गांवों से शहरों की आेर पलायन भी रुकेगा और केंद्र व राज्य सरकार के राजस्व में भारी वृद्धि होगी। हम भारत की श्रेष्ठ भांग का संरक्षण कर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीन के एकाधिकार को भी समाप्त कर सकते हैं। भारत के नीति-निर्धारकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले 74 सालों में हमने कृषि, बागवानी व दुग्ध उत्पादन के क्षेत्रों में भारत की समृद्ध वैदिक ज्ञान परम्परा की उपेक्षा की है। ज्यादा उत्पादन के लालच में हम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रभाव में अपनी गुणवत्ता और जीवन शक्ति को लगातार खोते जा रहे हैं। 

आज कोरोना से जहां यूरोप और अमरीका में लाखों मौतें हो रही हैं वहीं भारत जीतने में इसलिए सफल रहा है क्योंकि हमारा भोजन और जीवन आज भी मूलत: वैदिक परम्पराआें से ही संचालित होता है। इसलिए शिवप्रिया भांग को बचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।-विनीत नारायण

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