‘सरकार कारोबार के नए मानक स्थापित करना चाहती है’

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2021 04:35 AM

government wants to set new standards of business

केंद्रीय बजट 2021-22 विचारधारा और विजन के अनूठे संगम का प्रतीक है-जो इसे अतीत के बंधनयुक्त विरासतों से अलग एक निर्णायक अवसर प्रदान करता है। यह भारत को जीवंत पुनरुत्थान के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए भारतीय उद्यमशीलता की योग्यता और क्षमता में

केंद्रीय बजट 2021-22 विचारधारा और विजन के अनूठे संगम का प्रतीक है-जो इसे अतीत के बंधनयुक्त विरासतों से अलग एक निर्णायक अवसर प्रदान करता है। यह भारत को जीवंत पुनरुत्थान के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए भारतीय उद्यमशीलता की योग्यता और क्षमता में अपने विश्वास को दोहराता है। बजट में आधुनिक भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को फिर से परिभाषित करने की क्षमता है इस नीति-स्पष्टता के साथ कि ‘‘आत्मनिर्भर भारत का निर्माण निष्क्रिय संपत्ति की नींव पर नहीं किया जा सकता है।’’ 

भारत सरकार द्वारा नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं-सरकार का कहना है कि कारोबार करना सरकार का काम नहीं है और इसे ही नया नियम माना जाना चाहिए तथा कारोबार में सरकार की भागीदारी अपवाद के तौर पर होनी चाहिए। आत्मनिर्भर पैकेज की घोषणा के अनुरूप, बजट में गैर-रणनीतिक और रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक उद्यमों (पी.एस.ई.) के विनिवेश के लिए एक स्पष्ट रोडमैप है। 

पी.एस.ई. की न्यूनतम उपस्थिति के लिए पहचान किए गए रणनीतिक क्षेत्रों में शामिल हैं-(क) परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा; (ख) परिवहन और दूरसंचार; (ग) बिजली, पैट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज; एवं (घ) बैंकिंग, बीमा और वित्तीय सेवाएं। यह कदम स्वतंत्रता के बाद से भारत द्वारा अपनाई गई विचारधारा में एक निश्चित बदलाव का प्रतीक है। इससे पी.एस.ई. के अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर रहने की स्थिति में बदलाव आएगा और सार्वजनिक उद्यमों को अपनी विरासत निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। 

यदि हम विनिवेश की दिशा में अब तक किए गए प्रयासों पर गौर करें, तो पाते हैं कि भारत की नई विनिवेश नीति की निर्भीकता की सराहना की जानी चाहिए। पी.एस.ई., 1956 के औद्योगिक नीति संकल्प से लेकर 1980 के दशक की शुरूआत तक, भारतीय अर्थव्यवस्था के शीर्ष पर थी। विनिवेश, शुरू में नीलामी के जरिए अल्पसंख्यक हिस्सेदारी की बिक्री के माध्यम से किया गया था, इसके बाद के वर्षों में, 1999-2000 तक लोकप्रिय तरीके को  अपनाते हुए प्रत्येक कंपनी के लिए अलग-अलग बिक्री की गई। रणनीतिक  विनिवेश, पहली बार 1999-2000 में एक नीतिगत उपाय के रूप में उभरा, जिसमें सार्वजनिक उपक्रमों में 50 प्रतिशत या अधिक की सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री की गई तथा इसके साथ ही प्रबंधन नियंत्रण का भी हस्तांतरण किया गया। 

2004 के बाद विनिवेश, ज्यादातर नीलामी की विधि की बजाय एक सार्वजनिक प्रस्ताव के माध्यम से किया गया। 2014 के बाद रणनीतिक बिक्री पर नए सिरे से जोर दिया गया, जिससे कुल आय का लगभग एक तिहाई 2016-2017 से 2018-2019 के दौरान हुए विनिवेश से प्राप्त हुआ। जिन विभिन्न विनिवेश तरीकों को हाल में अपनाया गया है, उनमें शामिल हैं-बड़े पी.एस.ई. द्वारा शेयरों की पुनर्खरीद और एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ई.टी.एफ.)। 

नवंबर, 2019 में, भारत ने एक दशक से अधिक समय का अपना सबसे बड़ा निजीकरण अभियान शुरू किया, जिसमें केंद्रीय पी.एस.ई. (सी.पी.एस.ई.) में भारत सरकार की शेयर पूंजी को 51 प्रतिशत से कम करने के लिए ‘सिद्धांत’ के तौर पर स्वीकृति दी गई थी। तीन दशकों तक अपनाए गए विनिवेश के इन प्रयासों को टुकड़ों में बंटे प्रयासों के रूप में ही देखा जा सकता है। इसके विपरीत हाल के बजट में विनिवेश के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है। 

निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि पारंपरिक रास्ते से अलग होकर सरकार, कारोबार के नए मानक स्थापित करना चाहती है। इसके लिए सरकार ने यह दृष्टिकोण अपनाया है कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं है और अपवाद के तौर पर ही सरकार व्यवसाय में हिस्सा लेगी। इससे सभी हितधारकों को सही संकेत जाएगा और सभी सार्वजनिक और निजी उद्यमों से उत्पादकता और दक्षता लाभ को अधिकतम करने में मदद मिलेगी। (लेखक-द्वय वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग में अधिकारी हैं।)-सुरभि जैन और तुलसीप्रिया राजकुमारी    

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