अग्निपथ : सरकार धन बचाने के लिए देश की सुरक्षा से समझौता न करे

Edited By ,Updated: 24 Jun, 2022 04:54 AM

govt should not compromise on the security of the country to save money

भारत सरकार ने राष्ट्र की शक्तिशाली एवं युद्ध कौशल निपुणता में सर्वश्रेष्ठ और हैरतअंगेज कारनामों को सरअंजाम देने वाली पुरानी सैनिक व्यवस्था के स्थान पर एक नई ‘अग्निपथ’ योजना को शुरू किया है। इसके

भारत सरकार ने राष्ट्र की शक्तिशाली एवं युद्ध कौशल निपुणता में सर्वश्रेष्ठ और हैरतअंगेज कारनामों को सरअंजाम देने वाली पुरानी सैनिक व्यवस्था के स्थान पर एक नई ‘अग्निपथ’ योजना को शुरू किया है। इसके परिणामस्वरूप भारत के बहुत सारे प्रदेशों में जबरदस्त विरोध होने लगा है। अग्निपथ योजना का बहुत-से पूर्व अति अनुभवी जरनैलों ने भी विरोध किया है। यह योजना अनिश्चित, असमझपूर्ण, दुविधापूर्ण, खामियों से भरपूर, दिशाहीन और पूरी तरह अव्यावहारिक है। विश्व में मकबूलियत हासिल करने वाली भारतीय सेना ने यूरोप, अफ्रीका और अरब देशों में अपने युद्ध कौशल के झंडे बुलंद किए हैं। इसमें बदलाव करना हिमालय पहाड़ से भी बड़ी गलती होगी। 

देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वालों का प्रति महीने वेतन किसी छोटे निगम के एक क्लर्क से भी कम है, जो वास्तव में इन अग्निवीरों के साथ एक भद्दा मजाक है। भर्ती किए गए अग्निवीरों में से 75 प्रतिशत को 4 वर्ष बाद रिटायर कर दिया जाएगा और केवल 25 प्रतिशत ही सेना में पक्के तौर पर काम कर सकेंगे। यही अग्निवीरों के लिए सबसे बड़ी दुविधा होगी, कि वे शेष जिंदगी में कौन सा काम करके अपना जीवनयापन करेंगे? उनसे शादी करने के लिए भी कोई तैयार नहीं होगा। 

पुरानी व्यवस्था के अनुसार 40 वर्ष तक एक सैनिक अपनी जिम्मेदारी को सरअंजाम देता है और रिटायरमैंट के बाद उसे प्रति महीने पैंशन भी मिलती है और किसी अन्य स्थान पर नौकरी पाने में भी कामयाब हो जाता है। अक्सर उनके बच्चे भी पढ़-लिखकर किसी न किसी काम में लग जाते हैं। रिटायरमैंट के बाद सरकार ने अग्निवीरों को किसी अन्य स्थान पर लगाने की कोई पुख्ता गारंटी का प्रावधान नहीं किया, जिससे नौजवानों में गुस्से की लहर चल रही है। भारत को सुरक्षा प्रदान करने वाली आम्र्ड फोर्स केवल 14 लाख है, जो भारत को चारों तरफ से विदेशी आक्रमणकारियों से सुरक्षित भी रखती है और आवश्यकता पडऩे पर राष्ट्र की एकता के लिए कई बार प्रदेशों में भी इन्हें भेजा जाता है। 

सरकार ने कुछ देशों में प्रचलित प्रक्रिया को अपने राष्ट्र की आवश्यकताओंं को नजरअंदाज करके अपनाया है। कई छोटे-छोटे देश, जिनकी आबादी बहुत कम है, वे नौजवानों को सैन्य प्रशिक्षण देते हैं, ताकि जरूरत पडऩे पर उन्हें युद्ध भूमि में भेजा जा सके। रूस में भी इस तरह की प्रक्रिया प्रचलित है, जिसका खामियाजा वह यूक्रेन युद्ध में भुगत रहा है। 100 दिन से अधिक समय की लड़ाई में रूस के सैनिक यूक्रेन को तबाह करने के सिवाय कुछ हासिल नहीं कर सके। वहीं भारतीय फौज ने 1965, 1971 और कारगिल के युद्ध में पाकिस्तान को नाकों चने चबवा दिए थे। इसलिए 4 वर्ष की सेना में सेवा अग्निवीरों के लिए न मुनासिब है, न उचित और न ही राष्ट्र के लिए न्याय संगत है। 

हकीकत में भारत सरकार ने सेना पर भारी खर्च को कम करने के लिए ऐसी योजना का निर्माण किया है। वर्तमान समय में भारत में 6 लाख से अधिक सैनिकों की विधवाएं पैंशन लेती हैं और 20 लाख के करीब सेवानिवृत्त सैनिक पैंशन ले रहे हैं। वहीं 52 लाख के करीब सैंट्रल सिविलियन पैंशन हासिल कर रहे हैं। राष्ट्र के लिए अपना जीवन बलिदान करने वालों के लिए इतनी पैंशन कोई महत्व नहीं रखती। भारत का 2022-23 का डिफैंस बजट 5.25 लाख करोड़ है और इसका 22 प्रतिशत पैंशन पर खर्च होता है जो 1.19 लाख करोड़ बनता है। जबकि चीन का बजट 3.3 बिलियन डॉलर है, जो भारत से बहुत अधिक है। एक तरफ तो भारत विश्व गुरु बनने के सपने ले रहा हैै और दूसरी तरफ एशिया के इस इलाके में एक अति मजबूत शक्ति बनकर उभरना चाहता हैै। 

भारत अमरीका, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड की शक्ल में चीन का मुकाबला करने के लिए तैयार बैठा है, तो सेना पर खर्च कम करके यह सपना कैसे पूरा किया जा सकता है? भारत में वर्तमान में रक्षा पर जी.डी.पी. का केवल 2 प्रतिशत खर्च होता है, जबकि राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए कम से कम 4 प्रतिशत खर्च करना चाहिए। संसद की कई समितियों ने भी इस पर जी.डी.पी. का 2 से 3 प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश की है, परंतु अभी तक सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया। 

नई अग्निपथ योजना के अनुसार रैजीमैंटल सिस्टम के समाप्त होने का भी खतरा मंडरा रहा है। एक रैजीमैंट में काम करने वाले करीब-करीब एक ही स्वभाव, आपसी सहयोग वाले होते हैं और युद्ध के समय बड़े जोशो-खरोश के साथ अपनी रैजीमैंट और राष्ट्र का नाम रोशन करने के लिए हर तरह की कुर्बानी देने के लिए डट जाते हैं।

सियाचिन जैसी हाड़ जमा देने वाली -42 डिग्री ठंड में भी हमारे सैनिक बहादुरी से मुकाबला करते हैं, क्योंकि उन्हें लंबा अनुभव हासिल होता है। इन अग्निवीरों के लिए अनुभव हासिल करना इतनी जल्दी संभव नहीं होगा। अगर वर्तमान योजना में तबदीली नहीं की जाती तो नेपाल पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। भारतीय सेना में हजारों की तादाद में गोरखा सैनिक भर्ती होते हैं और हकीकत में वे भारत के नेपाल में दूत हैं और उन्हीं की वजह से आज तक भारत और नेपाल के रिश्ते बड़े मधुर बने हुए हैं। 

केंद्र सरकार को विदेशों से भारत को सुरक्षित रखने के लिए एक सुदृढ़ और आधुनिक हथियारों से लैस सेना की आवश्यकता हैै। सरकार धन बचाने के लिए कोई ऐसा फैसला न ले जिससे राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा पैदा हो, क्योंंकि चीन की विस्तारवादी नीति सबके सामने है। भारत की घेराबंदी के लिए वह लगातार कोई न कोई साजिश रचता रहता है। चीन ने म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान में अपने अड्डे स्थापित किए हुए हैं और हर समय भारत पर नजर टिकाए हुए है। उधर पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध तनावपूर्ण हैं। इसलिए सरकार किसी भी कीमत पर सेना के लिए बजट को कम न करे। अग्निपथ योजना अपने आप में एक बड़ी दुविधा है, क्योंकि 4 वर्ष सेवा करने के बाद अग्निवीर सड़कों पर बेकार नौजवानों की तरह घूमते नजर आएंगे।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 

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